tag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post1731192168494991672..comments2023-10-21T20:39:48.010+05:30Comments on महफ़िल-ए-नाशाद: नरेश चन्द्र बोहराhttp://www.blogger.com/profile/02704671927129198311noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-58317540152579774482010-05-18T20:09:28.630+05:302010-05-18T20:09:28.630+05:30बेहतरीन ग़ज़ल. जैसा कि आप इन दिनों अपनी पुरानी ग...बेहतरीन ग़ज़ल. जैसा कि आप इन दिनों अपनी पुरानी गज़लें फिर से पोस्ट कर रहे हैं; मैंने पुरानी वाली ग़ज़लें भी पढ़ी. नाशाद साहब मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपकी शायरी में गज़ब का निखार आ रहा है.Shakeel Jaunpurihttp://shakjaun@yahoo.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-4502059669122473632010-05-18T20:05:26.829+05:302010-05-18T20:05:26.829+05:30Once again an excellent creation. Mazaa aa gaya.बे...Once again an excellent creation. Mazaa aa gaya.बेहद पसंद आई. आपकी खासियत "वो" और "किसी" शब्दों को बार बार यूज करने की बहुत अच्छी लगती है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17964101510621432330noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-91758898939376049782010-05-18T19:55:56.934+05:302010-05-18T19:55:56.934+05:30बहुत ही खूब.
जब अपना दिल मुझे दे दिया तो
वो ज़मान...बहुत ही खूब.<br />जब अपना दिल मुझे दे दिया तो <br />वो ज़माने से घबराता क्यों हैAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/05797957138645183745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-16587101029255177912010-05-18T16:22:54.370+05:302010-05-18T16:22:54.370+05:30नरेशजी; आप दिल से लिखते हैं. आपकी समस्त रचनाओं से ...नरेशजी; आप दिल से लिखते हैं. आपकी समस्त रचनाओं से यह साफ़ उजागर होता है. थोड़ी कमी नजर आती है कभी कभी. लेकिन यह कमी भी अपने आप दूर हो जाएगी. यह कमी है भाषा की. आप हिंदी और उर्दू का जो मिलान करते हो; उससे यह समस्या पैसा होती है. लेकिन आप इसे अन्यथा नहीं लें कभी कभी ऐसी कमीयां एक अलग तरह की शैली का रूप ले लेती है जो अच्छी लगती है. हमरी तरफ से आपको ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनाएं.Dayanad Tripathi "Pushp"http://dayatripath@yahoo.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-35673580423252286882010-05-18T16:11:37.143+05:302010-05-18T16:11:37.143+05:30आप सही भी हो सकते हैं पुखराज जी .यह जरुरी नहीं कि ...आप सही भी हो सकते हैं पुखराज जी .यह जरुरी नहीं कि लिख हुआ सब ठीक हो. अगर आप अपनी टिप्पणी में कमी को उजागर नहीं करोगे तो मुझे पता कैसे चलेगा. आपकी टिप्पणीयों का स्वागत है. गहराई से सोचने पर मुझे भी ये पंक्तियाँ कुछ अधूरी लग रही है.नरेश चन्द्र बोहराhttps://www.blogger.com/profile/02704671927129198311noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-41982503955352127762010-05-18T16:04:02.604+05:302010-05-18T16:04:02.604+05:30मौहब्बत की हकीकत बयान करता है ये शेर -
इश्क में नह...मौहब्बत की हकीकत बयान करता है ये शेर -<br />इश्क में नहीं मिला करते गुलाब तो वो काँटों से घबराता क्यों है <br />रोज़ मुझसे मिलता है तो फ़िर वो मेरे ख्वाबों में आता क्यों है<br /><br />शुभकामना नरेशजी.Sunanda Sharmahttp://sunanda@yahoomail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-29579957463222758072010-05-18T16:01:26.905+05:302010-05-18T16:01:26.905+05:30बहुत खुबसूरत ग़ज़ल. ढेर सारी बधाईयाँबहुत खुबसूरत ग़ज़ल. ढेर सारी बधाईयाँAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/04358682465096494737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-28876640650436078072010-05-18T15:47:27.273+05:302010-05-18T15:47:27.273+05:30क्या खूब लिखा है नरेशजी! बहुत ही खूब. क्या शेर है...क्या खूब लिखा है नरेशजी! बहुत ही खूब. क्या शेर है ये -<br />उसके दिल में है तस्वीर मेरी तो वो उसे मुझसे छुपाता क्यों है<br />प्यार जब उसने मुझसे किया है तो वो ज़माने को बताता क्यों हैUnknownhttps://www.blogger.com/profile/12573639224070966302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-23996749573776284032010-05-18T15:32:55.964+05:302010-05-18T15:32:55.964+05:30नरेश बोहरा जी, आपके ब्लाग का नाम पसंद आया. बेहद ही...नरेश बोहरा जी, आपके ब्लाग का नाम पसंद आया. बेहद ही क्रिएटिव. प्रेम साझा चाहता है. विचारों का, ख्यालों का और आदतों का भी. वैसे भी यह परिपक्वता में किया जाने वाला कोई काम तो है नहीं कि सबकुछ सोच-समझकर ही किया जाए. वह चाहें कुछ भी नहीं लेकिन प्रेम हो ही यह कोई जरुरी तो नहीं. दरअसल यह स्वछंदता से, एक उम्र से जुड़ा यूटोपिया ही अधिक ठरता है. ऐसा मुझे लगता है. जो धीरे-धीरे यथार्थ रूप लेता जाता है. और मजबूत होता जाता है. इसीलिए वह प्रारंभ में कागजों पर नाम लिखकर मिटा देता है.मुकुराहत का जवाब सेने पर शर्मा जाता है. क्योंकि उसे डर है कि कहीं खुदा उसे उसे छीन ला ले. चूँकि वह ज़माने की हकीकत से वाकिफ नहीं है. डराने पर डर जाता है. इसीलिए वह काँटों से घबराता है. आकी अंतिम पंक्तियाँ पहले कास्वाभाविक अंत नहीं लगती. या मेरे समझने में कोई भूल हुई हो? आपका पुखराज जांगिड़.PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिडhttps://www.blogger.com/profile/12780240720269882294noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-163394964992398375.post-78583718896127235122010-05-18T14:18:01.130+05:302010-05-18T14:18:01.130+05:30waah ustaad waaah...waah ustaad waaah...दिलीपhttps://www.blogger.com/profile/15304203780968402944noreply@blogger.com