अपना गलियारा
है याद मुझे वो गलियारा
वो आँगन वो चौबारा
वो घर वो गाँव
वो बा बाउजी का चेहरा
उस आँगन में बा तुम
मुझको खूब खिलाती थी
अच्छाई का सच्चाई का
मुझको पाठ सिखाती थी
सीधी सीधी बातों में तुम
मुझे सीख अच्छी दे जाती थी
हर इंसान में भगवान् है
मुझे तुम रोज़ समझाती थी
वहां सरल जीवन मैं जीता था
भोलेपन की मिटटी में दिल रहता था
गाँव की गलियों में जीवन जी रहा था
बा - बाउजी की मुस्कानों में सारा जहाँ था
फ़िर वो दिन भी आया जब दूर जाना पड़ा
सब कुछ छोड़ सब कुछ भूल दूर जाना पड़ा
बाउजी को हमेशा हमेशा के लिए खोना पड़ा
गाँव गलियां चौबारा ना जाने क्यों छोड़ना पड़ा
कुछ लम्हे फ़िर भी बाकी बिताने को मिले
बा की जिंदगी से कुछ हिस्से मुझे और मिले
कितना खुशनसीब था मैं ; मुझे तीन माँओं ने पाला था
सब कुछ पाकर भी जैसे सब कुछ मैंने खो दिया है
ना जाने मुझे आज फ़िर क्यों मेरा गाँव याद आया है
ना जाने बा बाउजी ने उसे कहाँ छुपाया है
कोई मुझे आज ये बताये मैं क्यों जीवन हूँ हारा
क्यों छूटा है मेरा वो गाँव गलियां वो चौबारा
अपने आँगन से प्यार करो ; अपने गलियारों में खेलो
खुशीयों के तीर चलाओ ; सुख की लहरों से खेलो
जो वक्त आज गुजर रहा है फ़िर ना आएगा दोबारा
तुम तरसोगे आँगन को ; खोजोगे अपना गलियारा