मंगलवार, 14 जुलाई 2009

अपना गलियारा

है याद मुझे वो गलियारा

वो आँगन वो चौबारा

वो घर वो गाँव

वो बा बाउजी का चेहरा

उस आँगन में बा तुम

मुझको खूब खिलाती थी

अच्छाई का सच्चाई का

मुझको पाठ सिखाती थी

सीधी सीधी बातों में तुम

मुझे सीख अच्छी दे जाती थी

हर इंसान में भगवान् है

मुझे तुम रोज़ समझाती थी

वहां सरल जीवन मैं जीता था

भोलेपन की मिटटी में दिल रहता था

गाँव की गलियों में जीवन जी रहा था

बा - बाउजी की मुस्कानों में सारा जहाँ था

फ़िर वो दिन भी आया जब दूर जाना पड़ा

सब कुछ छोड़ सब कुछ भूल दूर जाना पड़ा

बाउजी को हमेशा हमेशा के लिए खोना पड़ा

गाँव गलियां चौबारा ना जाने क्यों छोड़ना पड़ा

कुछ लम्हे फ़िर भी बाकी बिताने को मिले

बा की जिंदगी से कुछ हिस्से मुझे और मिले

कितना खुशनसीब था मैं ; मुझे तीन माँओं ने पाला था

सब कुछ पाकर भी जैसे सब कुछ मैंने खो दिया है

ना जाने मुझे आज फ़िर क्यों मेरा गाँव याद आया है

ना जाने बा बाउजी ने उसे कहाँ छुपाया है

कोई मुझे आज ये बताये मैं क्यों जीवन हूँ हारा

क्यों छूटा है मेरा वो गाँव गलियां वो चौबारा

अपने आँगन से प्यार करो ; अपने गलियारों में खेलो

खुशीयों के तीर चलाओ ; सुख की लहरों से खेलो

जो वक्त आज गुजर रहा है फ़िर ना आएगा दोबारा

तुम तरसोगे आँगन को ; खोजोगे अपना गलियारा


आराधना


पहाडों के आँचल में ; नदियों की कलकल में

पक्षियों की कलरव में ; तारों की झिलमिल में


पलकों की छाँव में ; सपनों के गाँव में

शहरों की गलियों में ; यादों के बसेरों में

फूलों की कलियों में ; सावन के झूलों में

डायरी के भरे पन्नों में ; धुंधली होती तस्वीरों में

याद आती मुलाकातों में ; भूलती हुई यादों में

कभी जो किए थे वादों में ; अटल हमारे इरादों में


किसी को तलाश है तेरी

लौट आने की आस है तेरी

तुम बिन कोई आज भी अधूरा है

सूना किसी का बसेरा है


हर जगह तुझे कोई तलाशता है

हर दुआ में तुझे कोई मांगता है

हर रोज़ तेरी आराधना करता है

हर रोज़ तेरी तलाश करता है

लोग मुझे तेरी तलाश कहते हैं

लोग तुझे मेरी आराधना कहते हैं