भूल ना जाना
पीपल की छाँव को
बचपन के गाँव को
सावन के झूलों को
कागज़ की नांव को
भूल ना जाना
बाबा की डांट को
मां की लोरीयों को
दादा की सीख को
दादी की दुलार को
भूल ना जाना
धुल उड़ाती गलीयों को
फूलों पर बैठी तितलीयों को
खेतों में लहराती फसलों को
पनघट पर बतियाती सखियों को
भूल ना जाना
बचपन के यारों को
मुस्कुराते दरीचों को
अपनों की महफ़िलों को
सपनों की दुनिया को
भूल ना जाना
शहर की भीड़ - भाड़ में
दौलत पाने की चाह में
रोज़ नई मंजिल की तलाश में
पुरानी सुहानी यादों को
भूल ना जाना
लोगों की भीड़ में कहीं खो ना जाना
खुद को ही कहीं भूल ना जाना
अपनों से दूर नहीं हो जाना
घर लौट आने की राह भूल ना जाना
" नाशाद " कहीं भटक ना जाना
जिंदगी को कहीं भूल ना जाना
शुक्रवार, 26 मार्च 2010
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