शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

सपनों में आया करो 

जब सामने आते हो तुम
तो शरमा जाती हूँ मैं
साजन, तुम सपनों में आया करो

बहुत कुछ कहना है तुम्हें
तुम्हें देख सब भूल जाती हूँ
तुम सपनों में आया करो

खुद को देखना चाहती हूँ तुम्हारी आंखों में
मिलते ही तुमसे नज़र आंखें झुक जाती है
तुम सपनों में आया करो

थाम कर तुम्हारा हाथ दूर तलक जाना चाहती हूँ मैं
पर ज़माने से घबराती हूँ
तुम सपनों में आया करो

रोजाना मिलने के बहाने अब खोजना मुश्किल है
पर तुम बिन रहना भी अब मुश्किल है
तुम सपनों में आया करो

साजन, तुम सपनों में आया करो 

गुरुवार, 14 जनवरी 2010


तुमने कहा था 



मेरी आँखों के जंगल में राह भूल जाते थे तुम
तुमने कहा था

अपनी किताबों में  मेरा नाम लिखते थे तुम
तुमने कहा था

मेरा ज़िक्र आते ही फूल से खिल उठते थे तुम
तुमने कहा था
मेरी राहों में अक्सर पलकें बिछाये रहते थे तुम
तुमने कहा था

मुझे ख़त लिखते थे और खुद ही पढ़ते थे तुम
तुमने कहा था
अपनी हर नींदों में ख्वाब मेरे देखते  थे तुम
तुमने कहा था

हर अजनबी आहट को मेरा ही आना समझते थे तुम
तुमने कहा था
हर खिलते हुए फूल में मेरा चेहरा तलाशते थे तुम
तुमने कहा था

मेरी तस्वीर लेकर शाम को छत पे खड़े रहते थे तुम
तुमने कहा था
मुझे मिल कर हमेशा खुद को भूल जाया करते थे तुम
तुमने कहा था

मेरा ख़याल दिल में आते ही "नाशाद" कहीं खो जाते थे तुम
तुमने कहा था "नाशाद"
तुमने ही  कहा था

सोमवार, 11 जनवरी 2010

                      काश कभी मैं समझ पाता


तुम्हारी आंखों में उठते सवालों को
हमारे दिल में उठती हुई  लहरों को
काश कभी मैं समझ पाता

उदास होती हुई उन शामों को
लम्बी होती हुई उन रातों को
काश कभी मैं समझ पाता

अधूरी लगती हर मुलाकातों को
होठों पर रूकती हुई उन बातों को
काश कभी मैं समझ पाता

हमारे दिल में बढती हुई उस घबराहट  को
मुलाकातों के लिए बढती हुई चाहतों को
काश कभी मैं समझ पाता

तुम्हारी आँखों में बरसते सावन को
हर  चेहरे  में  तुम्हारी  तलाश  को
काश कभी मैं समझ पाता

हर बात में तुम्हारे उस रूठ जाने को
मेरे मनाते  ही तुम्हारे मान जाने को
काश कभी मैं समझ पाता

तुम्हारी किताबों में लिखे मेरे नामों को
तुम तक ना पहुंचे मेरे उन पयामों को
काश कभी मैं समझ पाता

हमारी मुलाकातों पर उठती उंगलीयों को
मुझ पर हंसती तुम्हारी उन सहेलीयों को
काश कभी मैं समझ पाता

तुम्हारी गलियों की तरफ बढ़ते हमारे कदमों को
सुनते ही हमारा नाम तुम्हारा शरमाने को
काश कभी मैं समझ पाता

अलसाई हुई उन दोपहरों को
जलती हुई बरसात की बूंदों को
काश कभी मैं समझ पाता

अंतिम मिलन पर हमारी आँखों के सावन को
जो हम ना कह सके उन सभी बातों को
काश कभी मैं समझ पाता
काश कभी मैं समझ पाता