बेटीयाँ
हर घर की रौनक होती है बेटीयाँ
हर घर की शान होती है बेटीयाँ
खुद का घर छोड़कर
सभी अपनों को छोड़कर
दूसरों के घरों को
बसाती संभालती है बेटीयाँ
अपने आंसुओं को
अपनी आरजुओं को
मन ही मन में हरदम
दफ़न करती है बेटीयाँ
भेदभाव देखती है
अत्याचार सहती है
फिर भी चेहरे पर शिकन
नहीं आने देती है बेटीयाँ
सबके गम सहती है
सबके दुःख हरती है
खुद के लिए कभी भी
कुछ नहीं मांगती है बेटीयाँ
हर किसी को चाहिये
इन्हें घर की इज्जत समझें
इन्हें खुदा का वरदान समझें
बहुत ही किस्मत वालों को
मिलती है बेटीयाँ
कितना सूनापन लगता है
घर अधुरा सा लगता है
उन्हें हर कोई जाकर पूछे
जिनके नहीं होती बेटीयाँ
हर घर की रौनक होती है बेटीयाँ
हर घर की शान होती है बेटीयाँ