शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मुझे टूट कर बिखर जाने दो
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बचपन में जाना चाहता हूँ
दादा की ऊंगली पकड़कर चलना चाहता हूँ
दादी की गोद में सिर रखकर सोना चाहता हूँ
पापा की डांट खाकर कुछ सीखना चाहता हूँ
माँ के आँचल में छुपकर सब गम भुला देना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बचपन की गलीयों से गुजरना चाहता हूँ
दोस्तों के साथ खेलना झगड़ना चाहता हूँ
सावन की फुहारों में भीगना चाहता हूँ
पेड़ों पे बंधे झूलों में झुलना चाहता हूँ
छोटे भाईयों को अपना रौब दिखाना चाहता हूँ
लाला की दूकान से कुछ चुराकर भागना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
रेत के टीलों पर चढ़ना चाहता हूँ
स्कूल से नजरें चुराना चाहता हूँ
मास्टरजी की डांट खाकर रोना चाहता हूँ
खेतों में बेमतलब दौड़ना चाहता हूँ
गाँव के मेलों में घूमना चाहता हूँ
जिंदगी के झमेलों से दूर भागना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
जो भी अधूरे रह गए थे वे काम पूरे करना चाहता हूँ
जो भी रह गई मुझमे कमीयां उन्हें दूर करना चाहता हूँ
दादा-दादी माँ-पिताजी के सपने पूरे करना चाहता हूँ
अधुरा लग रहा है जीवन उसे पूरा करना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
महक गई हवा
ना जाने किस की याद से महक गई हवा
मेरे आँचल को फिर से छेड़ गई हवा
सावन की घटा को जैसे लेकर आती है हवा
पयाम फिर से किसी का लेकर आई है हवा
मैं भी थी गुमसुम चुपचाप सी थी हवा
ज़िक्र किसी का आते ही मचल गई हवा
दिल था खोया खोया और कहीं गुम थी हवा
बेसाख्ता किसी की याद बन बहने लगी हवा
एक गाँव से दूसरे गाँव तू तो बहती है हवा
मुझे भी अपने संग पी के गाँव उड़ा ले चल हवा
ना जाने किस की याद से महक गई हवा
मेरे आँचल को फिर से छेड़ गई हवा
सावन की घटा को जैसे लेकर आती है हवा
पयाम फिर से किसी का लेकर आई है हवा
मैं भी थी गुमसुम चुपचाप सी थी हवा
ज़िक्र किसी का आते ही मचल गई हवा
दिल था खोया खोया और कहीं गुम थी हवा
बेसाख्ता किसी की याद बन बहने लगी हवा
एक गाँव से दूसरे गाँव तू तो बहती है हवा
मुझे भी अपने संग पी के गाँव उड़ा ले चल हवा
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
याद आऊँगा मैं
जितना तुम भुलाना चाहो
उतना ही याद आऊँगा मैं
सोने ना दूंगा चैन से कभी
तेरे हर ख्वाब में आऊँगा मैं
जब भी बहारें आयेंगी
हर फूल में नज़र आऊँगा मैं
सावन की भीगी फुहारों में
एक मीठी अगन लगाऊंगा मैं
चाहे जितनी राहें बदल लो
हर मोड़ पर नज़र आऊँगा मैं
चाहे अपना लो किसी गैर को
हर चेहरे में नज़र आऊँगा मैं
जब भी देखोगे तस्वीर मेरी
तुम्हारी साँसें मह्काऊँगा मैं
जब रातों में लेटोगे छत पर
चाँद में भी नज़र आऊँगा मैं
मौहब्बत की है मैंने तुमसे
तुम्हें ही अपनाऊँगा मैं
नहीं आसान "नाशाद" को भुलाना
हर सांस में याद आऊँगा मैं
जितना तुम भुलाना चाहो
उतना ही याद आऊँगा मैं
सोने ना दूंगा चैन से कभी
तेरे हर ख्वाब में आऊँगा मैं
जब भी बहारें आयेंगी
हर फूल में नज़र आऊँगा मैं
सावन की भीगी फुहारों में
एक मीठी अगन लगाऊंगा मैं
चाहे जितनी राहें बदल लो
हर मोड़ पर नज़र आऊँगा मैं
चाहे अपना लो किसी गैर को
हर चेहरे में नज़र आऊँगा मैं
जब भी देखोगे तस्वीर मेरी
तुम्हारी साँसें मह्काऊँगा मैं
जब रातों में लेटोगे छत पर
चाँद में भी नज़र आऊँगा मैं
मौहब्बत की है मैंने तुमसे
तुम्हें ही अपनाऊँगा मैं
नहीं आसान "नाशाद" को भुलाना
हर सांस में याद आऊँगा मैं
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
जहाँ हमने बचपन गुजारा था
वो बचपन हमें पुकारता है
जिसमे हम ने खूब मेले देखे थे
वो मेले हमें लुभाते हैं
जिनमें हम दोस्तों के साथ घूमे थे
वो दोस्त हमें याद करते हैं
जिनके साथ महफिलें सजाई थीं
वो महफ़िलें हम बिन सुनी हैं
जिनमें हम ने कई गज़लें पढी थीं
वो गज़लें पढ़े जाने को तरसती हैं
जिनमे कोई नाम छुपा हुआ था
कोई हमें आज भी चाहता है
जिसे हम दरीचे में खड़ा पाते थे
वो दरीचे आज भी खुले हैं
जिनमे खड़ा कोई आवाजें देता था
वो आवाजें आज भी पीछा करती हैं
जिनसे गलीयाँ गुलज़ार रहती थीं
वो गलीयाँ आज भी हमें बुलाती हैं
शायद कोई आज भी हमें याद करता है
कोई आज भी दरीचे से पुकार रहा है
"नाशाद" शायद कोई बुला रहा है
शायद कोई इंतज़ार कर रहा है
कोई आज भी ......
कोई आज भी .....
वो गलीयाँ हमें बुलाती हैं
जहाँ हमने बचपन गुजारा था
वो बचपन हमें पुकारता है
जिसमे हम ने खूब मेले देखे थे
वो मेले हमें लुभाते हैं
जिनमें हम दोस्तों के साथ घूमे थे
वो दोस्त हमें याद करते हैं
जिनके साथ महफिलें सजाई थीं
वो महफ़िलें हम बिन सुनी हैं
जिनमें हम ने कई गज़लें पढी थीं
वो गज़लें पढ़े जाने को तरसती हैं
जिनमे कोई नाम छुपा हुआ था
कोई हमें आज भी चाहता है
जिसे हम दरीचे में खड़ा पाते थे
वो दरीचे आज भी खुले हैं
जिनमे खड़ा कोई आवाजें देता था
वो आवाजें आज भी पीछा करती हैं
जिनसे गलीयाँ गुलज़ार रहती थीं
वो गलीयाँ आज भी हमें बुलाती हैं
शायद कोई आज भी हमें याद करता है
कोई आज भी दरीचे से पुकार रहा है
"नाशाद" शायद कोई बुला रहा है
शायद कोई इंतज़ार कर रहा है
कोई आज भी ......
कोई आज भी .....
रविवार, 18 अप्रैल 2010
शनिवार, 17 अप्रैल 2010
दूरीयाँ ना कम हो सकी
चाहा तुमको हमने बहुत मगर
ये चाहत पूरी ना हो सकी
ख्वाब तेरे देखे हमने मगर
उनकी ताबीर ना मिल सकी
खुद को मिटा डाला मगर
दूरीयाँ ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर
सिसकियाँ ना कम हो सकी
ख्वाब टूट गए मगर
उम्मीदें ना कम हो सकी
तुम से ना मिल सके मगर
मौहब्बत ना कम हो सकी
तुम ना समझ सके हमें
गलतफहमीयाँ ना दूर हो सकी
दिल में तो था बहुत कुछ मगर
जुबां ही बस कुछ कह ना सकी
तुम को मनाया बहुत मगर
कोशिशें ना सफल हो सकी
तुम को चाहा पाना हमने मगर
ये आरज़ू ना पूरी हो सकी
तुम्हें मान लिया खुदा हमने
पर बंदगी क़ुबूल ना हो सकी
सदायें तो दीं तुम को बहुत
पर तुम तक कभी ना पहुँच सकी
नाशाद रहे इस उम्मीद में
वो लौट आयेंगे एक दिन
उम्र गुज़र गई मगर
हिज्र की घडीयाँ ना ख़त्म हो सकी
चाहा तुमको हमने बहुत मगर
ये चाहत पूरी ना हो सकी
ख्वाब तेरे देखे हमने मगर
उनकी ताबीर ना मिल सकी
खुद को मिटा डाला मगर
दूरीयाँ ना कम हो सकी
आंसू सूख गए मगर
सिसकियाँ ना कम हो सकी
ख्वाब टूट गए मगर
उम्मीदें ना कम हो सकी
तुम से ना मिल सके मगर
मौहब्बत ना कम हो सकी
तुम ना समझ सके हमें
गलतफहमीयाँ ना दूर हो सकी
दिल में तो था बहुत कुछ मगर
जुबां ही बस कुछ कह ना सकी
तुम को मनाया बहुत मगर
कोशिशें ना सफल हो सकी
तुम को चाहा पाना हमने मगर
ये आरज़ू ना पूरी हो सकी
तुम्हें मान लिया खुदा हमने
पर बंदगी क़ुबूल ना हो सकी
सदायें तो दीं तुम को बहुत
पर तुम तक कभी ना पहुँच सकी
नाशाद रहे इस उम्मीद में
वो लौट आयेंगे एक दिन
उम्र गुज़र गई मगर
हिज्र की घडीयाँ ना ख़त्म हो सकी
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह बंध गया ये बंधन
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह हम हार गए दिल
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह मिल गई निगाहें
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह मिल गई दो राहें
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे थामा मैंने तेरा आँचल
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे माना तुमने मुझे साजन
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे धूप लगने लगी है छाँव
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे हिज्र भी लगने लगा मिलन
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे आते हो तुम मेरे ख्वाबों में
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे बस गए हो तुम मेरे दिल में
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह बंध गया ये बंधन
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह हम हार गए दिल
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह मिल गई निगाहें
ना तुम जानो ना मैं जानू
किस तरह मिल गई दो राहें
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे थामा मैंने तेरा आँचल
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे माना तुमने मुझे साजन
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे धूप लगने लगी है छाँव
ना तुम जानो ना मैं जानू
कैसे हिज्र भी लगने लगा मिलन
ना तुम जानो ना मैं जानू
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
मुझ से मौहब्बत कर ले
खुद को आज़ाद तू कशमकश-ए-जिंदगी से कर ले
भुला दे इस जहाँ को और मुझ से मौहब्बत कर ले
दूर बहुत है मंजिल और कठिन है बहुत रहगुज़र भी
मंजिल खुद ही मिल जायेगी तू मुझे हमसफ़र कर ले
काली लम्बी रातों में यादों के चिराग भी काम ना आयेंगे
जला ले मेरी मौहब्बत के चिराग रोशन अपनी राहें कर ले
भर दूंगा हर रंग जिंदगी का तेरी महफिलें सज जायेंगी
खुद को बना ले तू शम्मां और मुझे तू परवाना कर ले
जो गुज़र गए हैं लम्हे "नाशाद" वो ना कभी लौट कर आयेंगे
ढूंढ मुझमे खुशनुमा लम्हा खुद को ख़ुशी से तरबतर कर ले
खुद को आज़ाद तू कशमकश-ए-जिंदगी से कर ले
भुला दे इस जहाँ को और मुझ से मौहब्बत कर ले
दूर बहुत है मंजिल और कठिन है बहुत रहगुज़र भी
मंजिल खुद ही मिल जायेगी तू मुझे हमसफ़र कर ले
काली लम्बी रातों में यादों के चिराग भी काम ना आयेंगे
जला ले मेरी मौहब्बत के चिराग रोशन अपनी राहें कर ले
भर दूंगा हर रंग जिंदगी का तेरी महफिलें सज जायेंगी
खुद को बना ले तू शम्मां और मुझे तू परवाना कर ले
जो गुज़र गए हैं लम्हे "नाशाद" वो ना कभी लौट कर आयेंगे
ढूंढ मुझमे खुशनुमा लम्हा खुद को ख़ुशी से तरबतर कर ले
मंगलवार, 13 अप्रैल 2010
मेरी तरह चाहेगा कौन
दूसरों की महफिलों में जानेवाले
मेरी नज़रों से तुम्हें देखेगा कौन
किसी और को दिल में बसाने वाले
मेरी तरह से तुझे चाहेगा कौन
मुझ से बेखबर होकर सोनेवाले
मेरी तरह ख्वाबों में आयेगा कौन
मिल जायेंगे तुम्हें कई हमसफ़र लेकिन
मेरी तरह राहों में फूल बिछाएगा कौन
हर तरफ मौहब्बत के दुश्मन है फैले हुए
ज़माने की नज़रों से तुम्हें बचाएगा कौन
अनजाने लोग है फरेब है हर मोड़ पर
ऐसे सफ़र में सही राह दिखायेगा कौन
आयेंगे तेरी महफिलों में सुखनवर बहुत अच्छे
"नाशाद" की तरह लेकिन ग़ज़ल पढ़ेगा कौन
दूसरों की महफिलों में जानेवाले
मेरी नज़रों से तुम्हें देखेगा कौन
किसी और को दिल में बसाने वाले
मेरी तरह से तुझे चाहेगा कौन
मुझ से बेखबर होकर सोनेवाले
मेरी तरह ख्वाबों में आयेगा कौन
मिल जायेंगे तुम्हें कई हमसफ़र लेकिन
मेरी तरह राहों में फूल बिछाएगा कौन
हर तरफ मौहब्बत के दुश्मन है फैले हुए
ज़माने की नज़रों से तुम्हें बचाएगा कौन
अनजाने लोग है फरेब है हर मोड़ पर
ऐसे सफ़र में सही राह दिखायेगा कौन
आयेंगे तेरी महफिलों में सुखनवर बहुत अच्छे
"नाशाद" की तरह लेकिन ग़ज़ल पढ़ेगा कौन
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
बेटीयाँ
हर घर की रौनक होती है बेटीयाँ
हर घर की शान होती है बेटीयाँ
खुद का घर छोड़कर
सभी अपनों को छोड़कर
दूसरों के घरों को
बसाती संभालती है बेटीयाँ
अपने आंसुओं को
अपनी आरजुओं को
मन ही मन में हरदम
दफ़न करती है बेटीयाँ
भेदभाव देखती है
अत्याचार सहती है
फिर भी चेहरे पर शिकन
नहीं आने देती है बेटीयाँ
सबके गम सहती है
सबके दुःख हरती है
खुद के लिए कभी भी
कुछ नहीं मांगती है बेटीयाँ
हर किसी को चाहिये
इन्हें घर की इज्जत समझें
इन्हें खुदा का वरदान समझें
बहुत ही किस्मत वालों को
मिलती है बेटीयाँ
कितना सूनापन लगता है
घर अधुरा सा लगता है
उन्हें हर कोई जाकर पूछे
जिनके नहीं होती बेटीयाँ
हर घर की रौनक होती है बेटीयाँ
हर घर की शान होती है बेटीयाँ
मंजिल मिल गई हो जैसे
वो मुझे देख रहे हैं कुछ ऐसे
उन्हें मंजिल मिल गई हो जैसे
उनकी तस्वीर लग रही है कुछ ऐसे
बस मुझसे अभी बोल पड़ेगी वो जैसे
उसने मेरा हाथ थाम लिया कुछ ऐसे
जनम जनम का हमारा साथ हो जैसे
बरसों बाद उसे देख लगा कुछ ऐसे
पहली बार ही हम मिल रहे हों जैसे
दिल में है बहुत बातें पर वो खामोश है कुछ ऐसे
ज़जीरों ने उनकी जुबां को जकड लिया हो जैसे
उनकी गलीयों की तरफ कदम बढे कुछ ऐसे
हम अपने ही घर की तरफ जा रहे हों जैसे
"नाशाद" ना आये महफिलों में तो लगे कुछ ऐसे
शाम-ए-ग़ज़ल है पर शम्मा ही ना जली हो जैसे
वो मुझे देख रहे हैं कुछ ऐसे
उन्हें मंजिल मिल गई हो जैसे
उनकी तस्वीर लग रही है कुछ ऐसे
बस मुझसे अभी बोल पड़ेगी वो जैसे
उसने मेरा हाथ थाम लिया कुछ ऐसे
जनम जनम का हमारा साथ हो जैसे
बरसों बाद उसे देख लगा कुछ ऐसे
पहली बार ही हम मिल रहे हों जैसे
दिल में है बहुत बातें पर वो खामोश है कुछ ऐसे
ज़जीरों ने उनकी जुबां को जकड लिया हो जैसे
उनकी गलीयों की तरफ कदम बढे कुछ ऐसे
हम अपने ही घर की तरफ जा रहे हों जैसे
"नाशाद" ना आये महफिलों में तो लगे कुछ ऐसे
शाम-ए-ग़ज़ल है पर शम्मा ही ना जली हो जैसे
रविवार, 11 अप्रैल 2010
वो मेरा हो जाएगा
देखना एक दिन वो भी मेरा हो जाएगा
मेरे घर का पता उसका पता हो जाएगा
आज चुरा रहा है नज़र पर देखना एक दिन
वो मुझे देखकर शरमायेगा मुस्कुराएगा
आज कर रहा है वो मुझसे नफ़रत पर देखना
मेरी याद में तड़पता फिर वो भी नजर आयेगा
इस कदर छा जाएगा मेरा भी जादू उस पर
जागती आँखों से मेरे सपने देखने लग जाएगा
चल रहा है आज वो अकेला अपने ही रास्ते पर
एक दिन शामिल वो मेरे कारवां में हो जाएगा
उसको बसा लूँगा "नाशाद" दिल में इस कदर
देखना वो हो जाएगा मैं और मैं वो हो जाऊंगा
देखना एक दिन वो भी मेरा हो जाएगा
मेरे घर का पता उसका पता हो जाएगा
आज चुरा रहा है नज़र पर देखना एक दिन
वो मुझे देखकर शरमायेगा मुस्कुराएगा
आज कर रहा है वो मुझसे नफ़रत पर देखना
मेरी याद में तड़पता फिर वो भी नजर आयेगा
इस कदर छा जाएगा मेरा भी जादू उस पर
जागती आँखों से मेरे सपने देखने लग जाएगा
चल रहा है आज वो अकेला अपने ही रास्ते पर
एक दिन शामिल वो मेरे कारवां में हो जाएगा
उसको बसा लूँगा "नाशाद" दिल में इस कदर
देखना वो हो जाएगा मैं और मैं वो हो जाऊंगा
शनिवार, 10 अप्रैल 2010
तेरी निशानीयाँ
हर तरफ फ़ैली है तेरी ही निशानीयाँ
मेर प्यार की निशानीयाँ
वो ख़त जो पहले पहल
तुमने मुझे लिखे थे
वो तस्वीरें जो मैंने चुपके से
तुमसे चुरा ली थी
वो बातें जो अक्सर तुम
मुझसे करती रहती थी
वो खुशबू जो हमेशा
तुमसे पहले आ जाती थी
वो सुकून जो तुम्हारी
एक झलक से मिलता था
वो पहला एहसास जब तुमने
मेरे बालों को छुआ था
वो यादगार लम्हा जब तुमने
मेरा प्यार कुबूला था
वो तड़प जो तेरे जाने के बाद
मुझे महसूस होती थी
वो तेरे ख्वाब जो अक्सर
मुझे रातों में आते थे
हर तरफ फ़ैली है तेरी ही निशानीयाँ
मेर प्यार की निशानीयाँ
वो ख़त जो पहले पहल
तुमने मुझे लिखे थे
वो तस्वीरें जो मैंने चुपके से
तुमसे चुरा ली थी
वो बातें जो अक्सर तुम
मुझसे करती रहती थी
वो खुशबू जो हमेशा
तुमसे पहले आ जाती थी
वो सुकून जो तुम्हारी
एक झलक से मिलता था
वो पहला एहसास जब तुमने
मेरे बालों को छुआ था
वो यादगार लम्हा जब तुमने
मेरा प्यार कुबूला था
वो तड़प जो तेरे जाने के बाद
मुझे महसूस होती थी
वो तेरे ख्वाब जो अक्सर
मुझे रातों में आते थे
हर तरफ फ़ैली है तेरी ही निशानीयाँ
मेर प्यार की निशानीयाँ
मेरे चारों ओर फ़ैली तेरी खुशबु
हर तरफ गूंजती तेरी आवाज़
तुम्हारे क़दमों की मीठी आहट
रह रहकर जैसे कह रही है
तुम अभी अभी शायद गई हो
नहीं ; नहीं
रह रहकर यह कह रही है
तुम बस अभी आनेवाली हो
बस अभी आनेवाली हो
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
अभी बाकी है
सूखे हुए उन फूलों में अभी भी खुशबूएं बाकी है
जिनमे रखे थे फूल वे किताबें खुलना अभी बाकी है
लौट आया सावन पर घटाओं का छा जाना अभी बाकी है
बरस रही है घटाएं पर तेरी जुल्फों का बिखरना अभी बाकी है
ढल गई है शाम पर तेरी यादों का आना अभी बाकी है
दिल लगा है डूबने पर अश्कों का आना अभी बाकी है
आ गई है बहारें मगर कलियों का चटकना अभी बाकी है
खिलने लगे है फूल मगर तेरा मुस्कुराना अभी बाकी है
मिल तो गई हैं राहें मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी है
आ गई तेरी गलीयाँ मगर तेरा दरीचा खुलना अभी बाकी है
थक गया है मुसाफिर मगर उम्मीदों का टूटना अभी बाकी है
ढलती जा रही है शाम मगर सूरज का डूबना अभी बाकी है
हो गए हैं ज़ख्म बहुत पुराने मगर उनका भरना अभी बाकी है
दिल में लगी है बहुत चोटें मगर उसका टूटना अभी बाकी है
तोड़ लिए हों लोगों ने नाते मगर तेरा साथ अभी बाकी है
आजमाए सभी दोस्त मगर रकीबों को आजमाना अभी बाकी है
सज संवर गईं हैं महफिलें मगर तेरा आना अभी बाकी है
पढ़ लिए सभी ने शेर मगर "नाशाद" का पढना अभी बाकी है
सूखे हुए उन फूलों में अभी भी खुशबूएं बाकी है
जिनमे रखे थे फूल वे किताबें खुलना अभी बाकी है
लौट आया सावन पर घटाओं का छा जाना अभी बाकी है
बरस रही है घटाएं पर तेरी जुल्फों का बिखरना अभी बाकी है
ढल गई है शाम पर तेरी यादों का आना अभी बाकी है
दिल लगा है डूबने पर अश्कों का आना अभी बाकी है
आ गई है बहारें मगर कलियों का चटकना अभी बाकी है
खिलने लगे है फूल मगर तेरा मुस्कुराना अभी बाकी है
मिल तो गई हैं राहें मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी है
आ गई तेरी गलीयाँ मगर तेरा दरीचा खुलना अभी बाकी है
थक गया है मुसाफिर मगर उम्मीदों का टूटना अभी बाकी है
ढलती जा रही है शाम मगर सूरज का डूबना अभी बाकी है
हो गए हैं ज़ख्म बहुत पुराने मगर उनका भरना अभी बाकी है
दिल में लगी है बहुत चोटें मगर उसका टूटना अभी बाकी है
तोड़ लिए हों लोगों ने नाते मगर तेरा साथ अभी बाकी है
आजमाए सभी दोस्त मगर रकीबों को आजमाना अभी बाकी है
सज संवर गईं हैं महफिलें मगर तेरा आना अभी बाकी है
पढ़ लिए सभी ने शेर मगर "नाशाद" का पढना अभी बाकी है
तू और ........
तेरी मुस्कान से होती है सुबहें
तेरी खुशबु को तरसती है दोपहरें
तेरे नाम से महकती है शामें
तेरी यादों से सजती है रातें
तेरे क़दमों से चलता है ज़माना
तेरी अदाओं से बदलते हैं मौसम
तेरी हया से अदब है ज़माने में
तेरी आँखों से नशा है पैमाने में
तेरे आने से सजती है महफ़िलें
तेरे इशारे से जलती है शम्में
तेरी आवाज से शायरी है जिंदा
तेरे होने से ही "नाशाद" है जिंदा
तेरी मुस्कान से होती है सुबहें
तेरी खुशबु को तरसती है दोपहरें
तेरे नाम से महकती है शामें
तेरी यादों से सजती है रातें
तेरे क़दमों से चलता है ज़माना
तेरी अदाओं से बदलते हैं मौसम
तेरी हया से अदब है ज़माने में
तेरी आँखों से नशा है पैमाने में
तेरे आने से सजती है महफ़िलें
तेरे इशारे से जलती है शम्में
तेरी आवाज से शायरी है जिंदा
तेरे होने से ही "नाशाद" है जिंदा
गुरुवार, 8 अप्रैल 2010
जिंदगी जैसी जिंदगी
वो जिंदगी ही शायद जिंदगी जैसी लगती थी
हर तरफ ख़ुशी ही ख़ुशी औ रौनकें होती थी
दिन भी थे सुहाने और रातें भी हसीन होती थी
तेरे साथ जब रहगुज़र एक खुशनुमा सफ़र थी
फरिश्तों जैसे लोग थे मौहब्बत सबके दिल में थी
नफरतें जैसे कोई किसी दूसरे जहाँ में बसती थी
तेरी खुशबू से गलीयाँ जैसे गुलज़ार रहती थी
हर महफ़िल तेरी शिरकत से रोशन रहती थी
खयाल हवाओं में उड़ते मंजिलें राहें देखती थी
जुबां खामोश रहती थी निगाहें बात करती थी
बारिशों की बूंदें संगीत स्वर लहरीयाँ लगती थी
सर्दीयों के सन्नाटों से दिलों में हूक सी उठती थी
तुम्हें देखे बगैर हमारी जिंदगी अधूरी लगती थी
नाशाद हर चेहरे में तुम्हारी सूरत ही दिखती थी
वो जिंदगी ही शायद जिंदगी जैसी लगती थी
हर तरफ ख़ुशी ही ख़ुशी औ रौनकें होती थी
दिन भी थे सुहाने और रातें भी हसीन होती थी
तेरे साथ जब रहगुज़र एक खुशनुमा सफ़र थी
फरिश्तों जैसे लोग थे मौहब्बत सबके दिल में थी
नफरतें जैसे कोई किसी दूसरे जहाँ में बसती थी
तेरी खुशबू से गलीयाँ जैसे गुलज़ार रहती थी
हर महफ़िल तेरी शिरकत से रोशन रहती थी
खयाल हवाओं में उड़ते मंजिलें राहें देखती थी
जुबां खामोश रहती थी निगाहें बात करती थी
बारिशों की बूंदें संगीत स्वर लहरीयाँ लगती थी
सर्दीयों के सन्नाटों से दिलों में हूक सी उठती थी
तुम्हें देखे बगैर हमारी जिंदगी अधूरी लगती थी
नाशाद हर चेहरे में तुम्हारी सूरत ही दिखती थी
वो मेरे होते जा रहे हैं
हालात अब हमारे बदलते नज़र आ रहे हैं
धीरे धीरे अब वो मेरे होते जा रहे है
हमें देखते ही उन्हें हम पर आता था गुस्सा
अब हमें देखकर वो धीरे से मुस्कुरा रहे हैं
उन्हें नहीं मालूम था कभी हमारे घर का पता
वो अब हमारी गलीयों की तरफ आ रहे हैं
वो हमें देखते ही कर लेते थे बंद हर दरीचा
वो खड़े अब उन्ही दरीचों में हमें निहार रहे हैं
ना करते थे वो कभी ज़िक्र अपनी महफिलों में
वहां अब वो नाशाद के शेर पढ़े जा रहे हैं
हालात अब हमारे बदलते नज़र आ रहे हैं
धीरे धीरे अब वो मेरे होते जा रहे है
हमें देखते ही उन्हें हम पर आता था गुस्सा
अब हमें देखकर वो धीरे से मुस्कुरा रहे हैं
उन्हें नहीं मालूम था कभी हमारे घर का पता
वो अब हमारी गलीयों की तरफ आ रहे हैं
वो हमें देखते ही कर लेते थे बंद हर दरीचा
वो खड़े अब उन्ही दरीचों में हमें निहार रहे हैं
ना करते थे वो कभी ज़िक्र अपनी महफिलों में
वहां अब वो नाशाद के शेर पढ़े जा रहे हैं
मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
हवाओं में उडती जा रही हूँ मैं
सपनों में खोती जा रही हूँ मैं
एक कदम यहाँ तो
एक कदम वहां जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
दिल में उठ रही ये कैसी उमंग है
बदन में दौड़ रही ये कैसी तरंग है
मेरे हाथों से आँचल क्यूँ
आज फिसल फिसल जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
दूर कहीं दूर जाने को जी चाहता है
सब कुछ भुलाने को जी चाहता है
ना जाने क्यूँ मेरा दिल
संभले फिर बहक बहक जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
हवाओं में ना जाने ये कैसी महक है
नजारों में ना जाने ये कैसी चमक है
यूँ ना मुस्कुराओ तुम
कदम ना कहीं बहक जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
इन राहों में ना अकेली छोड़ जाना
दूर बहुत दूर अब हमसे है ज़माना
ना जाने क्यूँ मेरा दिल आज
रह रह कर घबराये
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
हवाओं में उडती जा रही हूँ मैं
सपनों में खोती जा रही हूँ मैं
एक कदम यहाँ तो
एक कदम वहां जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
दिल में उठ रही ये कैसी उमंग है
बदन में दौड़ रही ये कैसी तरंग है
मेरे हाथों से आँचल क्यूँ
आज फिसल फिसल जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
दूर कहीं दूर जाने को जी चाहता है
सब कुछ भुलाने को जी चाहता है
ना जाने क्यूँ मेरा दिल
संभले फिर बहक बहक जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
हवाओं में ना जाने ये कैसी महक है
नजारों में ना जाने ये कैसी चमक है
यूँ ना मुस्कुराओ तुम
कदम ना कहीं बहक जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
इन राहों में ना अकेली छोड़ जाना
दूर बहुत दूर अब हमसे है ज़माना
ना जाने क्यूँ मेरा दिल आज
रह रह कर घबराये
ये तुम मुझे कहाँ ले आये
बचपन कहीं खो ना जाये
किताबों के भारी बोझ तले
किताबों के भारी बोझ तले
ऊंचे ख्वाबों के दबाव तले
ये मासूम कहीं दब ना जाये
इनका बचपन कहीं खो ना जाए
तुम्हें अव्वल ही आना है
नहीं किसी से पीछे रहना है
हर माँ-बाप का यही कहना है
माँ-बापों की इन इच्छाओं से
ये मासूम कहीं सहम ना जाए
इनका बचपन कहीं खो ना जाए
सबसे ऊंचा हो ओहदा तुम्हारा
सामान्य जीवन नहीं पालकों को गंवारा
ढेर सा पैसा मोटर गाडी और एक बंगला न्यारा
चाहतों की इस ऊंची दौड़ में
ये मासूम कहीं जीना ना भूल जाए
इनका बचपन कहीं खो ना जाए
खिलौने कम होते जा रहे
मैदानी खेल लुप्त होते जा रहे
मैदान घरों में बदलते जा रहे
किस्से कहानियों से बढ़ती दूरी से
ये बचपन से कहीं दूर ना हो जाए
इनका बचपन कहीं खो ना जाये
आओ हम इनका बचपन बचाएं
इनके चेहरे की मुस्कान लौटाएं
इनके चेहरे की मासूमियत लौटाएं
हम ही इनके दोस्त बन जाए
संग इनके साबुन के बुलबुले उड़ायें
आसमानों में ऊंची पतंगे उड़ायें
संग इनके खेलें हम भी बचपन में लौट जाएँ
इनको फिर से जीना सीखाएं
इनको फिर से इनका बचपन लौटाएं
इनको फिर से इनका बचपन लौटाएं
इनका बचपन कहीं खो ना जाएँ
सोमवार, 5 अप्रैल 2010
रविवार, 4 अप्रैल 2010
हमसाया
तुम्हारी आँखों में अपना मुकद्दर देखा है मैंने
तेरे चेहरे में जैसे कोई अपना ही देखा है मैंने
मंजिल को अक्सर बहुर दूर देखा है मैंने
साथ तेरे चल कर उसे करीब पाया है मैंने
जब भी सामने आये हो तो अक्सर ये सोचा है मैंने
जागती आँखों से जैसे कोई ख्वाब सा देखा है मैंने
गम-ए-दौरां में खुद को तनहा पाया हो मैंने
साथ तेरा पाकर ज़माना साथ पाया है मैंने
अक्सर खुद से जुदा सा अपना साया पाया है मैंने
साथ जब से हुए हो तुम में ही हमसाया पाया है मैंने
तुम्हारी आँखों में अपना मुकद्दर देखा है मैंने
तेरे चेहरे में जैसे कोई अपना ही देखा है मैंने
मंजिल को अक्सर बहुर दूर देखा है मैंने
साथ तेरे चल कर उसे करीब पाया है मैंने
जब भी सामने आये हो तो अक्सर ये सोचा है मैंने
जागती आँखों से जैसे कोई ख्वाब सा देखा है मैंने
गम-ए-दौरां में खुद को तनहा पाया हो मैंने
साथ तेरा पाकर ज़माना साथ पाया है मैंने
अक्सर खुद से जुदा सा अपना साया पाया है मैंने
साथ जब से हुए हो तुम में ही हमसाया पाया है मैंने
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
हिज्र के दिन
जिनकी तस्वीर थी निगाहों में
उन्हें देखा सिर्फ हमने ख़्वाबों में
ना मिलूँगा अब मैं तुझे खजानों में
गर चाहता है तो ढूंढ खराबों में
ना जंगल में मिले ना ही बागों में
वे सूखे फूल जो रखे थे किताबों में
दरिया में रहकर भी हम रहे प्यासे
अब ढूंढते हैं हम आब सराबों में
शबो- रोजो- माहो-साल इसके आगे क्या गिनुं
तेरे हिज्र के दिनों की गिनती नहीं हिसाबों में
तुझसे मिलूं या बिछुड़ जाऊं हमेशा के लिए
गुज़र गई जिंदगी "नाशाद" इसी दोराहे में
जिनकी तस्वीर थी निगाहों में
उन्हें देखा सिर्फ हमने ख़्वाबों में
ना मिलूँगा अब मैं तुझे खजानों में
गर चाहता है तो ढूंढ खराबों में
ना जंगल में मिले ना ही बागों में
वे सूखे फूल जो रखे थे किताबों में
दरिया में रहकर भी हम रहे प्यासे
अब ढूंढते हैं हम आब सराबों में
शबो- रोजो- माहो-साल इसके आगे क्या गिनुं
तेरे हिज्र के दिनों की गिनती नहीं हिसाबों में
तुझसे मिलूं या बिछुड़ जाऊं हमेशा के लिए
गुज़र गई जिंदगी "नाशाद" इसी दोराहे में
खुदा को भी ले आऊँ
जिंदगी का ये गीत मैं यूहीं गाता चला जाऊं
हर किसी को मैं बस खुश रखता चला जाऊं
गर पड़े कभी पीना किसी दिन कोई ज़हर
बन के नीलकंठ मैं वो ज़हर भी पी जाऊं
गर मिले सभी को कोई भी तरह की सज़ा
बन के राम मैं हँसते हुए वनवास चला जाऊं
गर बरसे कोई आफत सब पर आसमानों से
बन के कृष्ण मैं अपने ऊपर गोवर्धन उठा जाऊं
ना आने दूं कोई भी ग़म मेरे अपनों की तरफ
हर ग़म को हँसते हुए गले लगाता चला जाऊं
गर दे दे खुदा मुझे किसी दिन अपनी जादूगरी
जो भी बिछुड़े हैं हमसे मैं उन्हें फिर लौटा लाऊँ
बाँध लूं मैं खुद को रिश्तों की ऐसी जंजीरों में
गर बुलाए खुदा भी तो मैं उसके पास ना जाऊं
सब को रख लूं एक बनाकर ज़हान को बना दूं मैं ज़न्नत
फिर एक दिन "नाशाद" जाकर खुदा को भी यहाँ ले आऊँ
दूर पिया का गाँव है
दूर बहुत दूर सखि मेरे पिया का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है
सावन की ऋतू जब जब है आई
डसी है दिल को और भी तन्हाई
पिया क्या कभी मेरी याद ना आई
आने में फिर काहे इतनी देर लगाईं
ठहर सा गया जैसे मन का बहाव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है
जब से गए है मेरे पिया परदेस
ना कोई चिट्ठी ना कोई सन्देश
कुछ तो खबर दो कब आओगे
इस बिरहन को कितना तड़पाओगे
जीवन में जैसे आ गया कोई ठहराव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है
क्या युहीं गुज़रेगी अब सारी उमरिया
ना दिन होंगे सुहाने और ना ही रतियाँ
ताना मारती है अब तो सारी सखियाँ
दिल का गया करार और आँखों से निंदिया
आ जाओ पिया जीवन में बढ़ रहा उलझाव है
दूर बहुत दूर सखि मेरे पिया का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है
दूर बहुत दूर सखि मेरे पिया का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है
सावन की ऋतू जब जब है आई
डसी है दिल को और भी तन्हाई
पिया क्या कभी मेरी याद ना आई
आने में फिर काहे इतनी देर लगाईं
ठहर सा गया जैसे मन का बहाव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है
जब से गए है मेरे पिया परदेस
ना कोई चिट्ठी ना कोई सन्देश
कुछ तो खबर दो कब आओगे
इस बिरहन को कितना तड़पाओगे
जीवन में जैसे आ गया कोई ठहराव है
दूर बहुत दूर मेरे पिया का गाँव है
क्या युहीं गुज़रेगी अब सारी उमरिया
ना दिन होंगे सुहाने और ना ही रतियाँ
ताना मारती है अब तो सारी सखियाँ
दिल का गया करार और आँखों से निंदिया
आ जाओ पिया जीवन में बढ़ रहा उलझाव है
दूर बहुत दूर सखि मेरे पिया का गाँव है
राह में ना कोई पनघट ना पीपल की छाँव है
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
तुम थी तो सब रौनक थी
ये दुनिया जैसे कोई जन्नत थी
तुम बिन अब कुछ रास ना आए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
तुम्हारी एक मुस्कान से जैसे
सारा जहाँ खिल उठता था
तुम्हारी आँखों की चमक से जैसे
मेरी राहें रोशन रहती थी
मंजिल लगने लगी है अब दूर
तुम बिन एक कदम भी ना चला जाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
हवाएं तुम्हारे इशारे पर बहती थी
कलियाँ तुम्हें देख खिलती थी
कोयल तुम्हारे संग गाती थी
तुम क्या गई गुलशन से जैसे
बहारे भी अब रूठ गई
तुम नहीं तो जीवन में मेरे
अब कौन बहारें लाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
फागुन अब फिर से आने को है
बौछारें अब रंगों की फिर उड़ने को है
हर प्रीतम के गालों पर
लाल हरा कोई रंग लगाएगा
लेकिन फागुन के दिन साथी
अब मेरा मन बहुत तरसेगा
तुम बिन कौन अब मेरी दुनिया में
फिर से रंग भरे और बरसाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
तुम थी तो सब रौनक थी
ये दुनिया जैसे कोई जन्नत थी
तुम बिन अब कुछ रास ना आए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
तुम्हारी एक मुस्कान से जैसे
सारा जहाँ खिल उठता था
तुम्हारी आँखों की चमक से जैसे
मेरी राहें रोशन रहती थी
मंजिल लगने लगी है अब दूर
तुम बिन एक कदम भी ना चला जाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
हवाएं तुम्हारे इशारे पर बहती थी
कलियाँ तुम्हें देख खिलती थी
कोयल तुम्हारे संग गाती थी
तुम क्या गई गुलशन से जैसे
बहारे भी अब रूठ गई
तुम नहीं तो जीवन में मेरे
अब कौन बहारें लाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
फागुन अब फिर से आने को है
बौछारें अब रंगों की फिर उड़ने को है
हर प्रीतम के गालों पर
लाल हरा कोई रंग लगाएगा
लेकिन फागुन के दिन साथी
अब मेरा मन बहुत तरसेगा
तुम बिन कौन अब मेरी दुनिया में
फिर से रंग भरे और बरसाए
कैसे कोई तुम्हें भुलाए
अब मैं जीना सीख गया हूँ
मैं अपनी धुन में रहता था
जो दिल चाहे वो करता था
मैं नहीं किसी की सुनता था
मैं यहाँ वहां भटकता था
सभी कहते थे कि मैं आवारा हूँ
जिसे कुछ ना मिला वो बेचारा हूँ
खुद अपनी किस्मत का मारा हूँ
नहीं किसी काम का मैं नाकारा हूँ
तुम क्या आई मेरे जीवन में
तुमने मुझे बदल डाला
प्रेम के दो घूँट पिला कर तुमने
बन दिया मुझे प्रेम मतवाला
अब मैं सब कुछ भूल गया हूँ
तेरी आँखों की झील में डूब गया हूँ
अब मैं तुम में खोया रहता हूँ
अब तेरी बातें ही सुनता हूँ
तेरी गलीयों में ही भटकता हूँ
तेरे ही सपने देखता हूँ
कहते हैं ये लोग सभी
मैं पहले भी आवारा था
और अब भी आवारा हूँ
मैं तेरे इश्क का मारा हूँ
मैं किसी का आशिक हूँ
और इसलिए नाकारा हूँ
अब दुनिया को कैसे समझाऊँ
अब लोगों को मैं क्या समझाऊँ
कैसे कहूँ मैं आवारा नहीं
कैसे कहूँ मैं नाकारा नहीं
मैं कितना अब बदल गया हूँ
मैं यहाँ वहां की बातें भूल गया हूँ
अब मैं संभालना सीख गया हूँ
किसी को अपना बनाना सीख गया हूँ
हर सांस को जीना सीख गया हूँ
मैं प्रेम करना सीख गया हूँ
मैं अब जीना सीख गया हूँ
मैं अब जीना सीख गया हूँ
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
किसी ने भुला दिया है मुझे
शायद किसी ने भुला दिया है आजकल मुझे
तभी तो आती नहीं हिचकियाँ आजकल मुझे
शायद कोई नहीं पुकारता है नींदों में अब मुझे
तभी तो आते नहीं है किसी के ख्वाब अब मुझे
शायद कोई नहीं पढ़ता है अब मेरे लिखे ख़त
तभी तो नामावर नहीं मुस्कुराता है अब देख मुझे
शायद कोई नहीं करता है मेरा ज़िक्र अब कहीं
तभी तो नहीं सुनाता कोई नया अफसाना मुझे
शायद नहीं करता है अब कोई राहों में मेरा इंतज़ार
तभी तो मंजिल नहीं नज़र आती अब करीब मुझे
शायद नहीं पढता है कोई मेरे लिखे शेर महफिलों में
तभी तो "नाशाद" वहां रौनक नहीं नज़र आती मुझे
शायद किसी ने भुला दिया है आजकल मुझे
तभी तो आती नहीं हिचकियाँ आजकल मुझे
शायद कोई नहीं पुकारता है नींदों में अब मुझे
तभी तो आते नहीं है किसी के ख्वाब अब मुझे
शायद कोई नहीं पढ़ता है अब मेरे लिखे ख़त
तभी तो नामावर नहीं मुस्कुराता है अब देख मुझे
शायद कोई नहीं करता है मेरा ज़िक्र अब कहीं
तभी तो नहीं सुनाता कोई नया अफसाना मुझे
शायद नहीं करता है अब कोई राहों में मेरा इंतज़ार
तभी तो मंजिल नहीं नज़र आती अब करीब मुझे
शायद नहीं पढता है कोई मेरे लिखे शेर महफिलों में
तभी तो "नाशाद" वहां रौनक नहीं नज़र आती मुझे
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