शुक्रवार, 28 मई 2010


















तलाशती है आँखें

बीते लम्हे भूली बिसरी यादें
यही सब तलाशती है आँखें

अपनों की भीड़ में अक्सर
ख़ुद को तलाशती है ऑंखें
दुनिया भर के वीरानों में
खुशीयाँ तलाशती है आँखें

तन्हाईयों खामोशियों में
आवाजें तलाशती है आँखें

हर बेगाने चेहरे में
अपनों को तलाशती है आँखें

बंद पड़े उस दरीचे में
किसी  को तलाशती है आँखें

सूनी हो चुकी गलियों में
बिछुडे यार तलाशती है आँखें


हैवानों की इस दुनिया में
इंसान तलाशती है ऑंखें

दम तोड़ती हुई जिंदगी में
साँसें तलाशती है आँखें

टूटते हुए सभी रिश्तों में
करीबीयाँ तलाशती है आँखें

शाम ए ग़ज़ल है यारों
नाशाद को तलाशती है आँखें