मंगलवार, 1 जून 2010
तुझ में बसी है मेरी जान रे
तोहे कैसे भुलाऊँ सजनवा
तुझ में बसी है मेरी जान रे
मोहे ना तू बिसराना कभी
तुझ बिन तज दूंगी प्राण रे
मोहे ना आए एक पल भी चैन
तारे गिन गिन काटू मैं रात रे
होरी खेले सखियाँ पिय के संग
मोरा साजन नहीं मोरे साथ रे
गए हो जब से परदेस सजनवा
आया ना कोई संदेस रे
भेजो अब अपनी कोई खबरिया
तन से उखड रही सांस रे
आ गई फिर रुत बरखा की
बरस रहा आसमान रे
ताना मारे हैं सारी सखियाँ
तन मन में लग रही आग रे
राह तोहरी निहारते सजनवा
पथरा गई है अब आँख रे
लौट आओ नहीं तो चल दूंगी
अब लेकर मैं चार कहार रे
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