मुझ से मौहब्बत कर ले
खुद को आज़ाद तू कशमकश-ए-जिंदगी से कर ले
भुला दे इस जहाँ को और मुझ से मौहब्बत कर ले
दूर बहुत है मंजिल और कठिन है बहुत रहगुज़र भी
मंजिल खुद ही मिल जायेगी तू मुझे हमसफ़र कर ले
काली लम्बी रातों में यादों के चिराग भी काम ना आयेंगे
जला ले मेरी मौहब्बत के चिराग रोशन अपनी राहें कर ले
भर दूंगा हर रंग जिंदगी का तेरी महफिलें सज जायेंगी
खुद को बना ले तू शम्मां और मुझे तू परवाना कर ले
जो गुज़र गए हैं लम्हे "नाशाद" वो ना कभी लौट कर आयेंगे
ढूंढ मुझमे खुशनुमा लम्हा खुद को ख़ुशी से तरबतर कर ले
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
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