किसी ने भुला दिया है मुझे
शायद किसी ने भुला दिया है आजकल मुझे
तभी तो आती नहीं हिचकियाँ आजकल मुझे
शायद कोई नहीं पुकारता है नींदों में अब मुझे
तभी तो आते नहीं है किसी के ख्वाब अब मुझे
शायद कोई नहीं पढ़ता है अब मेरे लिखे ख़त
तभी तो नामावर नहीं मुस्कुराता है अब देख मुझे
शायद कोई नहीं करता है मेरा ज़िक्र अब कहीं
तभी तो नहीं सुनाता कोई नया अफसाना मुझे
शायद नहीं करता है अब कोई राहों में मेरा इंतज़ार
तभी तो मंजिल नहीं नज़र आती अब करीब मुझे
शायद नहीं पढता है कोई मेरे लिखे शेर महफिलों में
तभी तो "नाशाद" वहां रौनक नहीं नज़र आती मुझे
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