गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

किसी ने भुला दिया है मुझे

शायद किसी ने भुला दिया है आजकल  मुझे
तभी तो आती नहीं हिचकियाँ आजकल मुझे

शायद कोई नहीं पुकारता है नींदों में अब मुझे
तभी तो आते नहीं है किसी के ख्वाब अब मुझे

शायद  कोई  नहीं  पढ़ता है  अब  मेरे लिखे ख़त
तभी तो नामावर नहीं मुस्कुराता है अब देख मुझे 

शायद कोई नहीं करता है मेरा ज़िक्र अब कहीं
तभी तो नहीं सुनाता कोई  नया अफसाना मुझे

शायद नहीं करता है अब कोई राहों में मेरा इंतज़ार
तभी तो मंजिल  नहीं नज़र  आती  अब करीब मुझे

शायद नहीं पढता है कोई मेरे लिखे शेर महफिलों में
तभी तो "नाशाद" वहां रौनक  नहीं नज़र आती मुझे 

धीरे धीरे

आ रहे हैं वो मेरे करीब
धीरे धीरे
बढ़ रही है धडकनें मेरी
धीरे धीरे

महकने लगी है हवाएं
धीरे धीरे
बरसने लगी है घटाएं
धीरे धीरे

वो भी समझेंगे मुझे
धीरे धीरे
इश्क का होगा असर
धीरे धीरे

अच्छा लगने लगूंगा उन्हें
धीरे धीरे
हो जायेंगे एक दिन वो मेरे
धीरे धीरे