रविवार, 25 जुलाई 2010
इश्क इबादत है खुदा की
इश्क इबादत है खुदा की बस इश्क ही इश्क कीजै
ता उम्र नाशाद बस इश्क ही लीजै इश्क ही दीजै
हर दिल में है नफ़रत परेशां है हर शख्स यहाँ
हर शख्स को यहाँ बस पैगाम-ए-इश्क ही दीजै
ना जाने कब कोई हम से बेसाख्ता दूर हो जाए
जब भी मिले कोई तो उसे सलाम-ए-इश्क दीजै
बहुत हुए जुदाई के किस्से; टूटे दिल औ' हिज्र की बातें
सजाइये अपनों की महफ़िल औ' इश्क की बातें कीजै
चार दिनों की जिंदगी है आरजुओं में कहीं निकल ना जाए
खोजिये कोई हमखयाल औ' दिल पर उसके इश्क लिख दीजै
सफ़र जिंदगी का नहीं आसां कब तक चलोगे अकेले तुम
करिए किसी से सच्चा इश्क औ' साथ उसे अपने ले लीजै
नफरतें फैलाओगे तो नहीं रखेगा ये जहां तुम्हें याद
फैलाइये हर सू इश्क औ' जहाँ में अपना नाम कर लीजै
पढ़े होंगे कई सुखनवर और भी कई जहाँ में मिल जायेंगे
महफ़िल खूब जम जायेगी यारों बस नाशाद को बुला लीजै
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