
तेरी यादों को मैं गंगा किनारे भुला आया
तेरे लिखे खतों को मैं आज जला आया
तेरे वादों को ताज के सामने भुला आया
तेरी तस्वीर को आज हवाओं में उड़ा आया
तेरी मुस्कान को मैं फूलों को लौटा आया
तेरी चाहत को मैं पैमाने में मिला आया
तेरी आहट को मैं वीरानों में छोड़ आया
अब ना सजेगी कभी तेरी महफ़िल ए सनम
"नाशाद" शम्मां-ए-महफ़िल ही बुझा आया