दरख़्त पर तेरा नाम
उस दरख़्त पर मैंने तेरा नाम लिखा था
जो अब शायद सुख चुका है
नहीं आते उस पर अब हरे पत्ते
नहीं बैठते उस पर अब परिंदे
नहीं आता कोई अब उसकी छाँव के लिए
तुम भी नहीं देखते उस सूखे दरख़्त को
एक नाकामयाब मौहब्बत के निशानी को
नाशाद मैं आज भी वहीँ खडा हूँ
वो सूखा दरख़्त भी वहीँ खडा है
लेकिन उस पर तुम्हारा नाम आज भी खुदा है
मैं हर रोज पढता हूँ तुम्हारे नाम को
मैं हर रोज देखता हूँ उस दरख़्त को
जो शायद एकमात्र निशानी है हमारी मौहब्बत की
वो दरख़्त जिस पर मैंने तुम्हारा नाम लिखा था
तेरे नाम के साथ अपना मुकद्दर भी लिख दिया था