सोमवार, 25 जून 2012

       वो कोई और था 

वो कोई और था  जिसे तुमने देखा था
जो हर बात में मुस्कुराता
हर वक्त चहकता रहता था
हर ख्वाब को सच करने का हौसला रखता था

वो कोई और था जिसे तुमने देखा था
हर राह पर वो मंजिल पा लेता
हर सवाल का जवाब दे देता
हर मुसीबत का हल अपने दिमाग में रखता था

वो कोई और था जिसे तुमने देखा था
जो एक उदहारण था
जो एक निशाँ था जीत का
हर जीत के बाद एक नयी जंग की राह ताकता था

वो कोई और था जिसे तुमने देखा था
आज वो खुद जूझ रहा है
अपने वजूद को बचाने में
अपने लिए कोई मंजिल तलाशने में
वो शायद वो ही है जिसे तुमने देखा था

मगर आज वो वो नहीं रहा
वो बहुत बदल गया है
इक इमारत हुआ करता था वो
अब एक खंडहर बन गया है
एक खंडहर बन गया है
= नरेश नाशाद