शनिवार, 10 सितंबर 2011


उठ कर चल दे जानिब-ए-मंजिल तू 

उठ कर चल दे जानिब-ए-मंजिल तू 
किसी ईशारे का इंतज़ार ना कर तू 
खुद ही तराश पहाड़ों में उसकी सूरत
किसी करिश्मे का इंतजार ना कर तू 

हर तरफ पथरीली राहें  ही मिलेगी
खुशनुमा राह का इंतजार ना कर तू 
बढा अपने हाथों को आस्मां की तरफ 
उसके आने का इंतजार ना कर तू  

लिख ले अपने हाथों में खुद अपनी किस्मत 
लकीरों को पढने का इंतज़ार ना कर तू
लिख कोई नई ग़ज़ल और पढ़ ले नाशाद 
शम्मां के जलने का इंतज़ार ना कर तू 

खुद ही रोशन हो सज जायेगी महफ़िल  
जब गूंजेगी तेरी आवाज़ हर तरफ 
ढूंढ कोई लाजवाब शेर औ ग़ज़ल नाशाद
किसी और के पढने का इंतज़ार ना कर तू