सोमवार, 28 मई 2012

मैं ढूंढता हूँ खुद को  मगर मुझे  मैं खुद  ही नहीं मिलता
ये कैसा जहाँ है नाशाद जहाँ कोई खुद से ही नहीं मिलता

जिंदगी तो जी रहा हूँ   मगर मैं  जिंदगी से  नहीं मिलता 
सांसे चलती है मेरी मगर इनका कोई सबब नहीं मिलता

है रास्ते मेरे सामने मगर  मंजिल का पता नहीं मिलता
जो बढे हैं आगे उनके क़दमों का कोई निशाँ नहीं मिलता


किस किस को अब पुकारूँ नाशाद कोई हमखयाल नहीं मिलता
मिल जाता खुदा में ही मगर आजकल तो खुदा भी नहीं मिलता 


 

बुधवार, 23 मई 2012


मन अब इक जंगल सा हो गया



मन अब इक जंगल सा हो गया 

सिर्फ  यादों का  बसेरा रह गया 

नहीं रही अब तेरी आवाजें 

तेरा अहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 



बीते हुए वक्त से बादल 

तेरी यादों की तरह बरसता सावन 

तेरी बातों सी शीतल पवन 

तेरा एहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 



तेरी आहटों सी पगडंडीयाँ
तेरी मुस्कराहट से खिलते फूल 

तेरे आँचल सी खिलती बहारें 

तेरा एहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 



तेरे खतों से बिखरे हुए सूखे पत्ते 

तेरी हंसी की तरह बहती कोई नदी 

मेरे मन की तरह ढलती हुई शाम 

तेरा एहसास ही रह गया 

मन अब इक जंगल सा हो गया 


मन अब इक जंगल सा हो गया 



= नरेश नाशाद