गुरुवार, 18 मार्च 2010

गरीबों का मज़ाक उड़ाती मायावती 

पिछले दो दिनों से मायावती ने जो कुछ भी किया है वो सिर्फ और सिर्फ गरीबों का मज़ाक उड़ाया है. जिस देश में आज भी लगभग बीस फीसदी लोग दो वक्त कि रोटी भी ठीक ढंग से नहीं जुटा पाते. लगभग तीस फीसदी लोगों के पास अपने तन को ठीक ढंग से ढकने के लिए कपडे नहीं है ; एक तिहाई जनता के पास अपना कोई मकान नहीं है और बेरोजगारी को कोई हिसाब नहीं है औए भ्रस्टाचार की फांस दिन दूनी रात चौगुनी कसती जा राही है   उस देश के सबसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री अगर ऐसी हरकत करे तो ये बड़े ही शर्म की बात है. कहने को वो खुद को दलित की बेटी कहती है लेकिन सारा खेल दौलत का ही खेलती है. खुले आम लोगों से चंदा लेने में इन्हें कोई शर्म महसूस नहीं होती. कृपालुजी महाराज के आश्रम  में हुई भगदड़ से मरे लोगों को मुआवजा ठुकराते हुए उसने यह कहा कि सरकारी खजाने में पैसे नहीं है और कल की रैली पर करोड़ों खर्च  हुए हैं.  ये रुपये कहाँ से आये. बरेली जल रहा है .कत्ले आम मचा हुआ है लेकिन मायावती नोटों की माला पहनने में और अपना स्वागत - सत्कार कराने में मशगूल है . मुख्यमंत्री के तलुए चाटने वाले प्रदेश के मंत्री उपर से यह कह  रहे हैं कि अब वे हमेशा बहनजी ( ? ) को नोटों की ही माला पहनाएंगे. हद हो गई पद लोलुपता और जी हुजूरी की.
इसी मायावती ने कभी ब्राह्मणों को लात मारने की बात कही थी और आज वही ब्राह्मण वर्ग उसी मायावती के पैरों में शरण लिए हुए हैं. कम से कम ब्राह्मन समाज से यह उम्मीद किसी को भी ना थी . यह महिला किसी भी सरकारी कर्मचारी को जब चाहे तब थप्पड़ मार देती है और कोई चूं तक नहीं करता. इस प्रदेश के मंत्री और एम् एल ए खुले आम सरकारी कर्मचारियों को धमकाते हैं और कभी कभी उनका क़त्ल भी कर देते हैं और प्रदेश कि जनता खामोश देखती रह जाती है. विरोधी पार्टीयाँ भी केवल एक दो दिन थोडासा हंगामा करने के पश्चात वापस जैसे कि सो जाती है. 
आजकल के नेता कितने ढीठ और उद्दंड हो चुके हैं कि उन्हें किसी बात की कोई फ़िक्र नहीं है ; कानून  का कोई डर नहीं है. कहते हैं ना कि नंगे को किस बात की शर्म.  हमारे नेता तो इसके भी एक कदम आगे निकल चुके हैं . वे नंगे होकर सडकों पर उतरते हैं और लोगों  को यह कहते हैं कि अपनी आँखें बंद कर लो हम नंगे होकर निकल रहे हैं .
भारत का लोकतंत्र ऐसे नेताओं के हवाले रहा तो फिर इस देश का भगवान् ही मालिक है . करोड़ों रुपये खर्च कर के खुद के पुतले बनवाना हमारे देश की लोकतंत्र व्यवस्था पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाता है. गंगा तथा यमुना जैसी महान नदीयाँ जिस प्रदेश में एक गंदे नाले का रूप ले चुकी है उस प्रदेश की मुख्यमंत्री के ऐसे कृत्य गरीब लोगों की बेबसी के साथ लिया गया एक क्रूर मजाक है. उत्तर प्रदेश में रोजगार के अवसर ना के बराबर है तभी तो हर साल लाखों लोग देश के अन्य दूसरे राज्यों में जा जाकर रोजगार तलाश रहे हैं और मायावती अखबारों में करोडो रुपये खर्च कर के विज्ञापन देती है कि राज्य का चौमुखा विकास हो चुका है और जनता खुशहाल है . 
क्या यही भारत देश का भविष्य है ? क्या अब भारत इन भ्रष्ट और उद्दंड नेताओं का गुलाम हो चुका है ? क्या इस देश की जनता जो पहले अंग्रेजों की गुलाम थी और  अब इन नेताओं की  गुलामी हमेशा के लिए करती रहेगी ? इन सवालों का जवाब जनता को खुद तलाशना होगा और खुद ही कुछ करना होगा क्योंकि हम किसी भी राजनितिक दल से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वो इस व्यवस्था में कोई सुधार ला पायेगा.