अब कुछ नहीं
जब बिखर गई सारी दुनिया
अब सिवाय पछतावे के कुछ नहीं
जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं
जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं
जब बिछुड़ गया कोई हमसे
अब सिवाय यादों के कुछ नहीं
जब दूर हो गई सभी आहटें
तो सिवाय सन्नाटों के कुछ नहीं
जब ओझल हो गई हैं मंजिलें
अब सिवाय सहरा के कुछ नहीं
जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं
जब सूनी हो गई हैं सभी महफिलें
"नाशाद" सिवाय तनहाईयों के कुछ नहीं
गुरुवार, 10 जून 2010
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