जुबां खामोश रहती है और निगाहें बात करती है
मैं उठकर चल देता हूँ मंजिल मिलने को तरसती है
हवाएं झूम जाती है और घटाएं खुलकर बरसती है
जब मैं मुस्कुराता हूँ सभी कलियाँ खिल जाती है
धूप भी छाँव बन जाती है और तपिश सुकून दे जाती है
देख लूँ आसमां की तरफ तो उस की मेहरबानी हो जाती है
जब भी कारवां-ए-नाशाद किसी भी गली से गुज़रता है
हर दरीचा खुल जाता है गलीयाँ गुलज़ार हो जाती है
शम्मां खुद रोशन हो जाती है हर महफ़िल जवां हो जाती है
जब भी नाशाद की उस महफ़िल में ग़ज़लें गूँज जाती है