बुधवार, 2 जून 2010
तुम यकीन करोगी !
तुम यकीन करोगी !
क्या तुम यकीन करोगी !!
तुम्हारे लिए,
मैं हर रात एक नया ख्वाब देखता था
हर दरख़्त पर तुम्हारा नाम लिखता था
तुम्हारी किताबों में फूल रखता था
तुम्हारे नाम की पतंग उड़ाता था
तुम्हे पाने की कल्पना करता था
तेरे ही ख्यालों में खोया रहता था
रेत पर अपनी किस्मत लिखता था
तुम्हें ख़त हर रोज़ एक लिखता और
फिर उन्हें खुद ही पढ़ा करता था
सितारों में तुम्हारी तस्वीर तलाशता था
हर मोड़ पर तुम्हारी राह तकता था
खुद के साये को तेरा साथ समझता था
तेरी तस्वीर से हर दिल की बात कहता था
हर सांस तुम्हारे नाम की लेता था
क्योंकि मैं तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
उस वक्त भी नहीं किया
अब क्या करोगी
क्या तुम यकीन करोगी ?
तुम यकीन नहीं करोगी
कभी नहीं करोगी
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