सुनो सजना
सुनो सजना
तुमरे बिना
मोरा जिया
अब लागे ना
जबसे हमने देखा तुम्हें
चाहा तुम्हें माँगा तुम्हें
आ भी जाओ
अब तुम तड़पाओना
मोरा जिया अब लागे ना
ख़्वाबों में आते हो
बस तुम ही तुम
ख्यालों में छाए हो
बस तुम ही तुम
तुम बिन एक पल भी
चैन आए ना
मोरा जिया अब लागे ना
निभायेंगे तुम्हारा साथ
हम जीवन भर
होंगे ना तुमसे जुदा
कभी भी पल भर
अब तो सजना मान भी जाओ ना
मोरा जिया अब लागे ना
मंगलवार, 29 जून 2010
गुरुवार, 24 जून 2010
मंगलवार, 22 जून 2010
तू मेरे सामने हैं
अब और कहीं मैं क्या देखूं
जब तू मेरे सामने हैं
अब राहों के बारे में क्यों सोचूं
जब मंजिल मेरे सामने हैं
अब सितारों के बारे में क्यों सोचूं
जब चाँद खुद मेरे सामने है
अब कड़क धूप से क्यों घबराऊं
जब तेरी जुल्फों के साये मेरे सामने हैं
अब बहारों का इंतज़ार मैं क्यों करूँ
जब तेरा नजारा मेरे सामने है
अब ग़मों की मैं परवाह क्यों करूँ
जब तेरा हाथ मेरे हाथ में है
अब कोई ख्वाब मैं क्यों देखूं
जब हकीकत मेरे सामने हैं
नाशाद किसी महफ़िल में क्यों जाऊं
जब ग़ज़ल खुद मेरे सामने हैं
अब और कहीं मैं क्या देखूं
जब तू मेरे सामने हैं
अब राहों के बारे में क्यों सोचूं
जब मंजिल मेरे सामने हैं
अब सितारों के बारे में क्यों सोचूं
जब चाँद खुद मेरे सामने है
अब कड़क धूप से क्यों घबराऊं
जब तेरी जुल्फों के साये मेरे सामने हैं
अब बहारों का इंतज़ार मैं क्यों करूँ
जब तेरा नजारा मेरे सामने है
अब ग़मों की मैं परवाह क्यों करूँ
जब तेरा हाथ मेरे हाथ में है
अब कोई ख्वाब मैं क्यों देखूं
जब हकीकत मेरे सामने हैं
नाशाद किसी महफ़िल में क्यों जाऊं
जब ग़ज़ल खुद मेरे सामने हैं
रविवार, 20 जून 2010
आज फादर्स डे है. आज हम यह फादर्स डे हमारे पापा के बिना पहली बार मना रहे हैं. हमारे पापा; हमारे जन्मदाता भले ही आज हमारे बीच में जिस्मानी तौर से मौजूद नहीं है लेकिन वो हममे; हमारे जिस्म में मौजूद हैं. उनकी रूह हममे समां चुकी है. हर सांस में हमें उनका एहसास होता है. हर धड़कन में उनकी मौजूदगी महसूस होती है. वे हमसे कभी जुदा नहीं होंगे. जो दिल में बस जाता है / जो रूह में समां जाता है; वो कभी भी जुदा नहीं हो सकता. हमारी आँखें उनके ही ख्वाब देखती हैं. उनके लिए एक बहुत ही छोटा सा प्रयास भर है ये कविता. जो मैं उनके चरणों में श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत कर रहा हूँ.
ओ हमारे जन्मदाता
मैं आपको नमन करता हूँ
शीश को अपने झुकाकर
मैं आपका वंदन करता हूँ
भरकर आँखों में आंसू
मैं स्मरण आपको करता हूँ
सदा रहना हम में समाये
मैं आपसे निवेदन करता हूँ
अपनी सारी खुशीयाँ
अपनी सारी इच्छाएं
अपने सारे सपने
अपना शेष जीवन
मैं आपको अर्पण करता हूँ
हर जनम आपसे हम मिलें
हर जनम हमें आपसे मिलें
हर जनम हम यूहीं साथ रहें
हर जनम ये घर यूहीं आबाद रहे
हे परम पिता परमेश्वर
मैं तुमसे आज ये मांगता हूँ
आपकी बतलाई राह पर चलेंगे
आपकी हर सीख याद रखेंगे
जो भी रह गए आपके ख्वाब अधूरे
उन्हें पूरा करने का
मैं आज प्रण करता हूँ
जो भी राह दिखलाई थी आपने
उसकी ओर मैं आज गमन करता हूँ
ओ हमारे जन्मदाता
मैं आपको नमन करता हूँ
शीश को अपने झुकाकर
मैं आपका वंदन करता हूँ
शनिवार, 12 जून 2010
मैं तोहे पुकारूं
सांवरे तोरी सुरतिया
ले गयी मोरी निंदिया
ना रहो मोसे दूर
ओ मोरे मन बसिया
बिन तोरे मोहे चैन ना आवे
जागूं सारी रैन मोरा जी घबरावे
दिन कट जावे पर कटे ना रतियाँ
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया
कासे कहूँ अब मैं मन की पीरा
लगूं मैं बिरहन जैसे श्याम बिन मीरां
नीर बहे नैनों से जैसे कोई नदिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया
कब से खड़ी राह मैं तोरी निहारूं
पवन संग दे आवाज मैं तोहे पुकारूं
ना आ सको तो भेजो अपनी कोई खबरिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया
सांवरे तोरी सुरतिया
ले गयी मोरी निंदिया
ना रहो मोसे दूर
ओ मोरे मन बसिया
बिन तोरे मोहे चैन ना आवे
जागूं सारी रैन मोरा जी घबरावे
दिन कट जावे पर कटे ना रतियाँ
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया
कासे कहूँ अब मैं मन की पीरा
लगूं मैं बिरहन जैसे श्याम बिन मीरां
नीर बहे नैनों से जैसे कोई नदिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया
कब से खड़ी राह मैं तोरी निहारूं
पवन संग दे आवाज मैं तोहे पुकारूं
ना आ सको तो भेजो अपनी कोई खबरिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया
गुरुवार, 10 जून 2010
अब कुछ नहीं
जब बिखर गई सारी दुनिया
अब सिवाय पछतावे के कुछ नहीं
जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं
जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं
जब बिछुड़ गया कोई हमसे
अब सिवाय यादों के कुछ नहीं
जब दूर हो गई सभी आहटें
तो सिवाय सन्नाटों के कुछ नहीं
जब ओझल हो गई हैं मंजिलें
अब सिवाय सहरा के कुछ नहीं
जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं
जब सूनी हो गई हैं सभी महफिलें
"नाशाद" सिवाय तनहाईयों के कुछ नहीं
जब बिखर गई सारी दुनिया
अब सिवाय पछतावे के कुछ नहीं
जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं
जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं
जब बिछुड़ गया कोई हमसे
अब सिवाय यादों के कुछ नहीं
जब दूर हो गई सभी आहटें
तो सिवाय सन्नाटों के कुछ नहीं
जब ओझल हो गई हैं मंजिलें
अब सिवाय सहरा के कुछ नहीं
जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं
जब सूनी हो गई हैं सभी महफिलें
"नाशाद" सिवाय तनहाईयों के कुछ नहीं
बुधवार, 9 जून 2010
सामने भी आया कर
मेरे खयालों ही में ना रह तू
हकीकत में सामने भी आया कर
लबों पे नहीं आती दिल की हर बात
कभी मेरी ख़ामोशी भी समझा कर
मेरे महबूब ज़िन्दगी संवर जायेगी तेरी
युहीं आकर मुझसे हर रोज़ मिला कर
ना रख जिंदगी के सफहों को खाली
हर सफ़हे पर मेरा नाम लिखा कर
तेरी मुस्कान से बहारें है मेरे जीवन में
बस हर वक्त युहीं तू मुस्कुराया कर
रविवार, 6 जून 2010
जुदा कर सकता नहीं
जिस्म को जान से जुदा कर सकता नहीं
तेरी याद को खुद से जुदा कर सकता नहीं
मंजिल को राहों से जुदा कर सकता नहीं
तेरी गलीयों से राह अपनी बदल सकता नहीं
साये को खुद से जुदा कर सकता नहीं
तेरी तस्वीर को आँखों से हटा सकता नहीं
दिल को दर्द से जुदा कर सकता नहीं
तेरे लिखे खतों को मैं जला सकता नहीं
सावन को घटाओं से जुदा कर सकता नहीं
तेरे नाम को अपने से जुदा कर सकता नहीं
खुद को भुला सकता हूँ मगर तुम्हे भुला सकता नहीं
अपने इश्क का कोई और वास्ता मैं दे सकता नहीं
जिस्म को जान से जुदा कर सकता नहीं
तेरी याद को खुद से जुदा कर सकता नहीं
मंजिल को राहों से जुदा कर सकता नहीं
तेरी गलीयों से राह अपनी बदल सकता नहीं
साये को खुद से जुदा कर सकता नहीं
तेरी तस्वीर को आँखों से हटा सकता नहीं
दिल को दर्द से जुदा कर सकता नहीं
तेरे लिखे खतों को मैं जला सकता नहीं
सावन को घटाओं से जुदा कर सकता नहीं
तेरे नाम को अपने से जुदा कर सकता नहीं
खुद को भुला सकता हूँ मगर तुम्हे भुला सकता नहीं
अपने इश्क का कोई और वास्ता मैं दे सकता नहीं
शुक्रवार, 4 जून 2010
मौहब्बत ये क्या रंग लाई है देखो
मौहब्बत ये क्या रंग लाई है देखो
हर सिम्त तुम ही नज़र आते हो देखो
ख़त तो लिखा था हमने तुम्हे मगर
लिफाफे पर अपना ही पता लिख दिया है देखो
तुम्हारे चेहरे से नज़र नहीं हटती मगर
अब तुम्हारी तस्वीर से शरमा रही हूँ देखो
हर वक्त जुबां पर रहता था नाम तुम्हारा मगर
अब कहते हुए तुम्हारा नाम जुबां काँप रही है देखो
हर रोज़ तेरा नाम ऊंगलीयाँ लिखती थी मगर
अब लिखते हुए नाम तुम्हारा ऊंगलीयाँ काँप रही है देखो
बुधवार, 2 जून 2010
तुम यकीन करोगी !
तुम यकीन करोगी !
क्या तुम यकीन करोगी !!
तुम्हारे लिए,
मैं हर रात एक नया ख्वाब देखता था
हर दरख़्त पर तुम्हारा नाम लिखता था
तुम्हारी किताबों में फूल रखता था
तुम्हारे नाम की पतंग उड़ाता था
तुम्हे पाने की कल्पना करता था
तेरे ही ख्यालों में खोया रहता था
रेत पर अपनी किस्मत लिखता था
तुम्हें ख़त हर रोज़ एक लिखता और
फिर उन्हें खुद ही पढ़ा करता था
सितारों में तुम्हारी तस्वीर तलाशता था
हर मोड़ पर तुम्हारी राह तकता था
खुद के साये को तेरा साथ समझता था
तेरी तस्वीर से हर दिल की बात कहता था
हर सांस तुम्हारे नाम की लेता था
क्योंकि मैं तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
उस वक्त भी नहीं किया
अब क्या करोगी
क्या तुम यकीन करोगी ?
तुम यकीन नहीं करोगी
कभी नहीं करोगी
मंगलवार, 1 जून 2010
तुझ में बसी है मेरी जान रे
तोहे कैसे भुलाऊँ सजनवा
तुझ में बसी है मेरी जान रे
मोहे ना तू बिसराना कभी
तुझ बिन तज दूंगी प्राण रे
मोहे ना आए एक पल भी चैन
तारे गिन गिन काटू मैं रात रे
होरी खेले सखियाँ पिय के संग
मोरा साजन नहीं मोरे साथ रे
गए हो जब से परदेस सजनवा
आया ना कोई संदेस रे
भेजो अब अपनी कोई खबरिया
तन से उखड रही सांस रे
आ गई फिर रुत बरखा की
बरस रहा आसमान रे
ताना मारे हैं सारी सखियाँ
तन मन में लग रही आग रे
राह तोहरी निहारते सजनवा
पथरा गई है अब आँख रे
लौट आओ नहीं तो चल दूंगी
अब लेकर मैं चार कहार रे
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