शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
सोमवार, 16 नवंबर 2009
लौट कर आऊँगा
अगर चला गया हूँ तो लौट कर भी आऊँगा
तुम मेरी राहों में नज़रें बिछाकर देखना
ना भूला सकोगे मुझे तुम उम्र भर
मुझे अपनी यादों में बसाकर देखना
हर दरीचे में नज़र आएगा चेहरा मेरा
हर बंद दरीचे को तुम खुलाकर देखना
जब भी खडा पाओ किसी दोराहे तुम खुद को
चला आऊँगा तुम्हें राह दिखलाने
मुझे आवाज़ लगाकर देखना
जिस्म से दूर हो गया हूँ तो क्या
रूह में तुम्हारी समां चुका हूँ मैं
हर कदम पर तुम्हारे साथ रहूँगा
हर जनम में मैं तुम्हें मिलूंगा
मेरा इंतज़ार कर के देखना
महसूस करोगे अपनी हर सांस में तुम सभी
अपने दिल की धडकनों को सुन कर देखना
फिर जनम लेंगे हम
हर जनम मिलेंगे हम
सोमवार, 2 नवंबर 2009
कोई है मेरे दिल में रहता है
दिल ये जानता है कि वो आपको नहीं पा सकता
फिर भी वो मानता नहीं है
कदम ये जानते हैं कि आप तक नहीं पहुँच सकते
फिर भी वे रुकते नहीं हैं
हाथ ये जानते हैं कि उनकी दुआओं में वो असर नहीं
फिर भी वे झुकते नहीं है
ऑंखें ये जानती है कि उनकी किस्मत में अब आपका नज़ारा नहीं
लेकिन वे बंद होती नहीं है
हर किसी को उसकी चाहत नहीं मिलती है
हर किसी को ग़मों से राहत नहीं मिलती नहीं है
ऐ खुदा गर ये तेरी दुनिया है
तो ऐसी दुनिया मिटती क्यों नहीं है
गर तू हर वक़्त खुश रहता है तो
हमें हमारी खुशियाँ मिलती क्यूँ नहीं है
रविवार, 1 नवंबर 2009
यादें
मंगलवार, 4 अगस्त 2009
शनिवार, 1 अगस्त 2009
नज़रों में तो था मगर दिल से दूर था
वो मेरा होकर भी कभी मेरा ना था
बे चराग गलियों में उसकी आवाजें तो थी
दरीचों से झाँका मगर गलियों में कोई न था
उसके जाने के बाद दिल तो बहुत रोया
मगर आंखों में उसके एक आंसू ना था
दूर तलक फैले तो थे उसकी यादों के काले साये
मगर धूप का कहीं नाम ओ निशान तक ना था
रविवार, 19 जुलाई 2009
बीते लम्हे भूली बिसरी यादें
यही सब तलाशती है आँखें
अपनों की भीड़ में अक्सर
ख़ुद को तलाशती है ऑंखें
दुनिया भर के वीरानों में
खुशीयाँ तलाशती है आँखें
तन्हाईयों खामोशियों में
आवाजें तलाशती है आँखें
हर बेगाने चेहरे में
किसी को तलाशती है आँखें
बंद पड़े तमाम दरीचों में
अपनों को तलाशती है आँखें
सूनी हो चुकी गलियों में
बिछुडे यार तलाशती है आँखें
दम तोड़ती हुई जिंदगी में
साँसें तलाशती है आँखें
टूटते हुए सभी रिश्तों में
करीबीयाँ तलाशती है आँखें
शाम ए ग़ज़ल है यारों
नाशाद को तलाशती है आँखें
चल कहीं चल
चल कहीं चल जहाँ कुछ देर ताज़ा हवा चले
चल कहीं चल जहाँ ग़मों की आंधी ना चले
चल कहीं चल जहाँ खुशियों का उजाला हो
चल कहीं चल जहाँ हर किसी पर ऐतबार हो
चल कहीं चल जहाँ ज़ज्बातों की कदर हो
चल कहीं चल जहाँ बचपन खिलखिलाता हो
चल कहीं चल जहाँ लोरियां सुलाती हों
चल कहीं चल जहाँ जिंदगी की हर साँस ताज़ा हो
चल कहीं चल जहाँ इंसानों में दूरीयाँ ना हो
चल कहीं चल जहाँ रिश्तों में करीबियां हो
चल कहीं चल जहाँ जिंदगी का बसेरा हो
चल कहीं चल जहाँ मौत का सन्नाटा ना हो
चल कहीं चल जहाँ गलियां और चौबारा हो
चल कहीं चल जहाँ नदियाँ और पहाड़ हो
चल कहीं चल जहाँ खुशियाँ बुलाती हो
चल कहीं चल जहाँ उदासीयाँ मुंह छुपाती हो
चल कहीं चल जहाँ अपनों का बसेरा हो
चल कहीं चल जहाँ पुर सूकून लम्हे हो
चल कहीं चल जहाँ करब अंगेज़ उजाले हो
चल कहीं चल जहाँ मुस्कानें बुलाती हो
चल वहीँ चल नाशाद चल वहीँ चल
शनिवार, 18 जुलाई 2009
बचपन का गाँव
वो जो बचपन का गाँव जिसे हम कहीं दूर छोड़ आए
चलो आज फ़िर से उसी गाँव की तरफ़ चला जाए
वो जो पीपल जिसके साए में गुजरती थी हर दोपहर
चलो आज फ़िर उसी पीपल की छाँव में बैठा जाए
वो जो गाँव की गलियां जहाँ हम दौड़ा करते थे दिन भर
चलो फ़िर उन्ही गलियों में बेमतलब घूमा जाए
वो जो अमराइयाँ जिनमे हम चुराया करते थे आम हर रोज़
चलो आज फ़िर उन्ही अमराइयों की तरफ़ चला जाए
वो जो बचपन का साथी हर खेल में जिससे होता था झगडा
चलो आज चलकर उससे गले मिलकर रोया जाए
बहुत हो चुका बेदिल बदिन्तिजाम आज का शहर
चलो फ़िर लौटकर नाशाद अपने गाँव बसा जाए
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
अपना गलियारा
है याद मुझे वो गलियारा
वो आँगन वो चौबारा
वो घर वो गाँव
वो बा बाउजी का चेहरा
उस आँगन में बा तुम
मुझको खूब खिलाती थी
अच्छाई का सच्चाई का
मुझको पाठ सिखाती थी
सीधी सीधी बातों में तुम
मुझे सीख अच्छी दे जाती थी
हर इंसान में भगवान् है
मुझे तुम रोज़ समझाती थी
वहां सरल जीवन मैं जीता था
भोलेपन की मिटटी में दिल रहता था
गाँव की गलियों में जीवन जी रहा था
बा - बाउजी की मुस्कानों में सारा जहाँ था
फ़िर वो दिन भी आया जब दूर जाना पड़ा
सब कुछ छोड़ सब कुछ भूल दूर जाना पड़ा
बाउजी को हमेशा हमेशा के लिए खोना पड़ा
गाँव गलियां चौबारा ना जाने क्यों छोड़ना पड़ा
कुछ लम्हे फ़िर भी बाकी बिताने को मिले
बा की जिंदगी से कुछ हिस्से मुझे और मिले
कितना खुशनसीब था मैं ; मुझे तीन माँओं ने पाला था
सब कुछ पाकर भी जैसे सब कुछ मैंने खो दिया है
ना जाने मुझे आज फ़िर क्यों मेरा गाँव याद आया है
ना जाने बा बाउजी ने उसे कहाँ छुपाया है
कोई मुझे आज ये बताये मैं क्यों जीवन हूँ हारा
क्यों छूटा है मेरा वो गाँव गलियां वो चौबारा
अपने आँगन से प्यार करो ; अपने गलियारों में खेलो
खुशीयों के तीर चलाओ ; सुख की लहरों से खेलो
जो वक्त आज गुजर रहा है फ़िर ना आएगा दोबारा
तुम तरसोगे आँगन को ; खोजोगे अपना गलियारा
आराधना
पहाडों के आँचल में ; नदियों की कलकल में
पक्षियों की कलरव में ; तारों की झिलमिल में
पलकों की छाँव में ; सपनों के गाँव में
शहरों की गलियों में ; यादों के बसेरों में
फूलों की कलियों में ; सावन के झूलों में
डायरी के भरे पन्नों में ; धुंधली होती तस्वीरों में
याद आती मुलाकातों में ; भूलती हुई यादों में
कभी जो किए थे वादों में ; अटल हमारे इरादों में
किसी को तलाश है तेरी
लौट आने की आस है तेरी
तुम बिन कोई आज भी अधूरा है
सूना किसी का बसेरा है
हर जगह तुझे कोई तलाशता है
हर दुआ में तुझे कोई मांगता है
हर रोज़ तेरी आराधना करता है
हर रोज़ तेरी तलाश करता है
लोग मुझे तेरी तलाश कहते हैं
लोग तुझे मेरी आराधना कहते हैं
शुक्रवार, 10 जुलाई 2009
मंगलवार, 7 जुलाई 2009
बरसों बाद अपने गाँव पहुँचा तो रात भर
बचपन के सारे गीत मुझे सुनाती रही हवा
गाँव उजड़ चुका था हर दोस्त बिछुड़ चुका था
फ़िर भी इन सभी का अहसास कराती रही हवा
हर दोपहर का साथी वो बरगद सूख चुका था
उसके सूखे ठूंठ से टकराती फिरती रही हवा
सावन रूठ चुका था तालाब सूख चुका था
कागज़ की कश्तियों को ख़ुद ही उडाती रही हवा
वो आँगन सूना था जहाँ दादा दादी का बसेरा था
नाम उनका मेरे संग पुकारती रही हवा
मैं अकेला ही खड़ा था बचपन के उजडे गाँव में
नाम मेरा पुकारती और मुझे ही ढूंढती रही हवा
उजडा गाँव फ़िर से बसाकर क्या नाशाद यहीं रहोगे
अपने सवाल के ज़वाब का इंतज़ार करती रही हवा
सोमवार, 6 जुलाई 2009
आज मैं तुम पर दिल हार आया
चाहे तुम मेरी चंचलता कह लो
चाहे मन की दुर्बलता कह लो
ना जाने दिल क्यूँ मजबूर हो गया
देखा तुम्हें तो सब भूल गया
अज मैं तुम पर दिल हार आया
मैं आंसू हूँ तू आँचल है
मैं प्यासा हूँ तू सावन है
तुम चाहे मुझे दीवाना कह लो
या कोई पागल मस्ताना कह लो
अपना सब कुछ मैं छोड़ आया
मैं अपनी मंजिल तक भुला आया
आज मैं तुम पर दिल हर गया
मैं दिल हूँ तुम धड़कन हो
मैं प्रीत तुम तड़पन हो
तुम चाहे मुझे प्रेम रोगी कह लो
तुम चाहे मुझे मनो रोगी कह लो
तुम्हें याद करते करते सब भूल गया
मैं अपना नाम पता सब भूल गया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
मैं जिस्म हूँ तुम जीवन हो
मैं चेहरा हूँ तुम दर्पण हो
तुम चाहे इसे पागलपन कह लो
या इश्क का मतवालापन कह लो
अपने नाम की जगह मैं तेरा नाम बता आया
अपने घर की जगह मैं तेरा पता बता आया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
गली गली मैं भटका हूँ
पनघट पनघट मैं तरसा हूँ
तेरी कजरारी आंखों मैं भटका हूँ
अब तुम न मुझे ठुकराना
अब तुम न मुझे तरसाना
तुम चाहे इसे पागलपन कह लो
या तुम्हारे प्रेम का पूजन कह लो
तेरी मुस्कानों पर मैं अपना होश गवां आया
तेरी मासूम अदाओं पर मैं अपना सब कुछ गवां आया
आज मैं तुम पर दिल हार गया
मैं हूँ खुशबू हवाओं में बिखर जाऊँगा
मैं हूँ ख्वाब तेरी आंखों में बस जाऊँगा
मैं ग़ज़ल हूँ तेरी किताबों में लिखा जाऊँगा
दास्ताँ-ऐ-इश्क हूँ तेरी ; हर महफिल में सुना जाऊँगा
मैं हूँ सफर तेरी राह बन जाऊँगा
देखना किसी दिन तेरा बन जाऊँगा
मैं तलाश हूँ तेरी मंजिल बन जाऊंगा
ना भुला सकोगे मुझे तेरी यादों में बस जाऊँगा
शनिवार, 20 जून 2009
चले जाना फ़िर सदा के लिए
बस एक पल ठहर जाओ
तुम्हारी आंखों में झाँक तो लूँ
अपनी किस्मत जान तो लूँ
जिसे तुमने कभी लिया था बड़े प्यार से
मेरे उस नाम को फ़िर से सुन तो लूँ
जिसे कभी पकड़ा था मैंने जनम जनम के लिए
उस हाथ को फ़िर से थाम तो लूँ
जिसे तुमने रखा था बड़े प्यार से
उस आँचल में कुछ देर आंसू बहा तो लूँ
दिल में बनाई थी मैंने जो तस्वीर तुम्हारी
उस तस्वीर को सदा के लिए मिटा तो दूँ
जिन में बाँधा था तुमने मुझे सदा के लिए
उन बंधनों को मैं ख़ुद खोल तो दूँ
कभी जो लिखे तुमने मुझे बड़े प्यार से
उन नामों को तुम्हें लौटा तो दूँ
कभी जो किए थे हमने जनम जनम साथ चलने के
उन वादों से आजाद आज तुम्हें कर तो दूँ
जिसे रखा था अब तक सीने से लगाकर
तुम्हारे उस दिल को आज लौटा तो दूँ
फ़िर चले जन फ़िर सदा के लिए ...... .....