बातें तेरी जब से हम हर दिन याद करने लगे हैं
भीड़ में सबसे अलग अब हम नज़र आने लगे हैं
तुम्हारे पुराने ख़त जब से हम फिर पढने लगे हैं
जिंदगी को इक नये मायने में हम पाने लगे हैं
तेरी तस्वीरों को छुप छुपकर जबसे देखने लगे हैं
हर तरफ लोगों को अब मुस्कुराता पाने लगे हैं
तेरी महफ़िलों के किस्से जब से हम सुनाने लगे हैं
नाशाद लोग हमारी गजलों को भी गुनगुनाने लगे हैं
= नरेश नाशाद