गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

फासले

जिंदगी से फासले भी कितने अजीब होते हैं
जिन्हें हबीब समझते हैं वो ही रकीब होते हैं

चाहे कोई कितना ही सोचे चाहे कितना समझाये
चेहरे वही खिलते हैं जिनके अच्छे नसीब होते हैं

कभी खुद से ही दूर रहकर हम अक्सर खुश रहते हैं
खुद से खुद के फासले भी कितने अजीब होते हैं

कभी जो याद आती है किसी की लम्बी काली रातों में
लगता है जो बिछुड़े हैं हमसे क्या वो ही हबीब होते हैं

सफ़र लगता है लंबा जिंदगी का कुछ भी नज़र नहीं आता
नाशाद कभी कभी ये जिंदगी के रास्ते बदनसीब भी होते हैं

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ कोई अपना भी बेगाना सा लगता है
क्यूँ हर कोई दिल तोड़ने की बात करता है 
क्यूँ हर कोई खुद को अलग समझता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल  में ख़याल आता है
क्यूँ अब रिश्तों गहराईयाँ कम है
क्यूँ अब इंसानों में मौहब्बतें कम है
क्यूँ अब हरसू रंजिशों का मौसम है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ अब हर दिन एक बोझ है
क्यूँ हर रात एक काला साया है
क्यूँ खुद से ही जुदा अब अपना साया है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
अब जब कोई आरज़ू बाकी नहीं
अब जब कोई रौशनी नज़र आती नहीं
तो क्यूँ ये निगाहें कुछ तलाशती हैं
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर तरफ जब रास्ते ही रास्ते हैं
जब कोई मंजिल नज़र नहीं आती
तो बेवजह क्यूँ ये राहें चल रही है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर नाता अब झूठा क्यूँ लगता है
हर धागा अब कच्चा क्यूँ लगता है
हर सांस अब बोझ क्यूँ लगती है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
नाशाद ये दिल अब डूबता जाता है
देखते हैं कोई मसीहा कब नजर आता है
हर मंज़र खौफज़दा नज़र आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

 

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

जब से वो दूर हो गया

जब से वो दूर हो गया
यादों के सिलसिले हो गए
नींद किसी की हो गई
ख्वाब किसी के हो गए

जब कोई नामाबर आया
हौसले फिर बुलंद हो गए
उसके खतों में मेरे नाम से
फिर से चश्मतर हो गए

जब भी कहीं कोई तारा टूटा
दिल डूब कर बहुत रोया
उसकी कही बातों से नाशाद
ग़ज़लों के शेर हो गए

उसकी गलीयाँ उसकी महफ़िल
अब तो बस किस्से हो गए
उसकी आँखों के नूर से
राहों के चिराग रोशन हो गए

पहले पहल जब उसे देखा था
दिल में वो तभी से बस गए
जब उसने मुस्कुराकर देखा तो
हम बस उसी के हो गए

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

तुम बिन सब अधूरा होगा

फिर वो ही चाँद होगा
वो ही सितारों का कारवां होगा
फिर वो ही बहारें होगी
वो ही फूलों का नजारा होगा
सब कुछ होगा मगर फिर भी
तुम बिन सब अधूरा होगा

फिर वो ही गाँव और चौबारा होगा
वो ही पनघट का नजारा होगा
फिर वो ही आपस में बतियाती सहेलीयां होगी
वो खिलखिलाहट और मुस्कानें होगी
सब कुछ होगा मगर फिर भी
एक चेहरा वहाँ नहीं होगा

फिर वो ही पीपल की छाँव होगी
वो ही इंतज़ार होगा
फिर वो ही दोपहर की धूप होगी
वो ही तेरी यादें होगी
सब कुछ होगा मगर फिर भी
जब तू नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा

फिर वो ही डायरी होगी
वो ही तेरा नाम होगा
मगर हाथ ना अब उठेंगे
आँखों से अश्कों का इक नया रिश्ता होगा
डूबते दिल को तेरी यादों का सहारा होगा

फिर वो ही महफिले  होगी
वो ही ग़ज़लों का सफ़र होगा
फिर वो ही शमा होगी
मगर इक आवाज ना होगी , जब
नाशाद उस महफ़िल में ना होगा

जब तू ही नहीं होगा तो
नाशाद अब कहाँ होगा
नाशाद कहीं नहीं होगा .......