शनिवार, 27 मार्च 2010

तेरा चेहरा नज़र आता है 

जब भी देखता हूँ मैं आईना
मुझे तेरा चेहरा नज़र आता है
मेरी मुस्कान में सनम अब
मुझे तेरा प्यार नज़र आता है

कोई भी लेता हूँ जब मैं नाम
तेरा ही नाम जुबां पर आता है
जिस गली से भी गुजरूँ मैं
मुझे तेरा ही घर नज़र आता है

जब भी किसी से करता हूँ बातें
मुझे तेरी आवाज़ सुने देती है
जब भी खनकती है कोई पायल
मुझे तेरी आहट सुनाई देती है

जब भी शाम को जाता हूँ छत पर
मुझे अपनी मुलाकातें याद आती है
जब भी झूम के बरसता है सावन
मुझे हमारी मोहब्बत याद आती है

जब भी पढता हूँ तेरे लिखे ख़त
मुझे उनमे से तेरी खुशबू आती है
देखता हूँ मैं जब भी तेरी तस्वीर
मुझे मेरा चेहरा नज़र आता है 

1 टिप्पणी:

V Singh ने कहा…

Nareshji; bahut hi shaandar prem geet mil rahe hain padhne ke liye. Aaj hi maine aapki is rachna ko apne dosto ki mehfil me sunaya to zabardast wah wah mili. Ye aapki wah wah hai; bhaisahab. Ek lambe arse se maine aise prem geet nahi padhe. Bas isi tarah se likhte rahiye. Bahut badhaaaiyaaan.