गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

फासले

जिंदगी से फासले भी कितने अजीब होते हैं
जिन्हें हबीब समझते हैं वो ही रकीब होते हैं

चाहे कोई कितना ही सोचे चाहे कितना समझाये
चेहरे वही खिलते हैं जिनके अच्छे नसीब होते हैं

कभी खुद से ही दूर रहकर हम अक्सर खुश रहते हैं
खुद से खुद के फासले भी कितने अजीब होते हैं

कभी जो याद आती है किसी की लम्बी काली रातों में
लगता है जो बिछुड़े हैं हमसे क्या वो ही हबीब होते हैं

सफ़र लगता है लंबा जिंदगी का कुछ भी नज़र नहीं आता
नाशाद कभी कभी ये जिंदगी के रास्ते बदनसीब भी होते हैं

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सफ़र लगता है लंबा जिंदगी का कुछ भी नज़र नहीं आता
नाशाद कभी कभी ये जिंदगी के रास्ते बदनसीब भी होते हैं

पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत लाजवाब और उम्दा लिखा है......गहरी बात आसानी से कह दी आपने