सोमवार, 18 अप्रैल 2011

मेरा गाँव कहीं खो गया है 


कभी कभी मुझे लगता है जैसे 
सुख तो मिला पर चैन खो गया है 

दोस्त तो मिलें है हमें बहुत मगर 
अपनापन जैसे कहीं खो गया है 

हर ऐश-ओ-आराम मिल गए हमें 
मगर मन जैसे कहीं भटक गया है 

दौलत शोहरत बहुत मिली सभी को 
इंसान का मोल लेकिन घट गया है
शहरों की चकाचोंध में ऐ नाशाद 
मेरा गाँव कही जैसे खो सा गया है 
मेरा गाँव कहीं जैसे खो सा गया है 


3 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सच ही अपनापन कहीं खो गया है ..अच्छी प्रस्तुति

S.N SHUKLA ने कहा…

सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत भाव