सोमवार, 11 नवंबर 2013

आवारा दोपहरें 

वो तेरी तलाश में सन्नाटों से भरी गलियाँ 
उनमे गूंजती पहचानी सी आहटें , 
खामोश लम्हे और 
खुद से ही टकराती साँसें ,
पसीने की बूँदें 
जैसे चमकते मोती ,
उनमे नज़र आता तेरा चेहरा 
हर मोड़ पर तेरा एहसास ,
हर वक़्त "नाशाद" तेरी करीबी का एहसास 
अब तक याद है वो अनजान राहें 
 भूलती है वो आवारा दोपहरें 

= नरेश नाशाद 


रविवार, 11 अगस्त 2013

हर तरफ तनहाई 
मेरे हिस्से में आई 

तेरी यादों की धूप खिली 
तो मेरी आँख भर आई 

फिर तेरी तस्वीर देखी 
फिर तेरी आवाज़ आई 

ख़ुशी की धूप खिली ही थी 
ग़मों की शाम ढल आई 

भीड़ भरे इस जहाँ में 
नाशाद रहे सहराई 

= नरेश नाशाद 

( सहराई - वीराने में रहनेवाले )

रविवार, 10 मार्च 2013

ना हो जुदा

मेरे हमसफ़र मेरे हमकदम
ना हो तू अब मुझसे जुदा
मेरे हमराज़ मेरे हमनशीं
तू ही है अब मेरा खुदा

मेरे हमराज़ मेरे हमराह
मुझको बस तेरी ही चाह
मेरे हबीब रह मेरे करीब
ना हो तू अब मुझसे जुदा

मेरे महजबीं मेरे राजदार
मेरे दिल को है तुझसे करार
मेरे माहताब तुझे मेरी कसम
ना हो तू अब मुझसे जुदा

मेरे राज-ऐ-दिल मेरी जुस्तजू
तू ही मेरी आखिरी आरजू
मेरे आफताब तुझे खुदा कसम
ना हो तू अब मुझसे जुदा
= नरेश नाशाद

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

अब तो हर मंज़र किसी साज़िश की ही खबर देता है 
फूलों के गुलिस्ताँ में अब बारूद अपनी महक देता है 

कभी रौशनी के  लिए जलती थी मशालें हर घर घर में 
इंसान अब तो मशाल से किसी का भी घर जला देता है 

लोग थे फ़रिश्ते जन्मों के थे नाते खुशियों के थे मेले 
अब दिखावे से मिल गले इन्सां इक रस्म निभा देता हैं 

घूमते हैं सरेआम कातिल लिए खंज़र हाथ में हरसू 
नहीं किया जिसने जुर्म वो सहमा सा दिखाई देता है 

नहीं फ़िक्र नेता संत मौल्ला को मरा जा रहा आदमी 
जिसे भी देखो वो कुर्सी के लिए अंधा दिखाई देता है 

= नरेश नाशाद 

मंगलवार, 24 जुलाई 2012


यादों के दरख़्त  अब  कितने बड़े हो गए 
हकीकतों के साये भी उनसे छोटे हो गए 

निगाहों में थे जो  हमारे  तमाम  जिंदगी 
एक एक कर वो आसमां के सितारे हो गए 

किस किस की याद में आंसू बहायें ऐ खुदा 
दरिया की तरह बह अश्क भी सहरा हो गए

जो थे शामिल अभी तक मेरे कारवां में नाशाद 
एक एक कर सभी मेरी यादों का हिस्सा हो गए 

= नरेश नाशाद 


सोमवार, 23 जुलाई 2012


वो कसमें वो वादे  और वो ईरादे क्या हुए 
वो बुजुर्गों की सीख  वो संस्कार क्या हुए 

वो माँ की गोद वो पिता का दुलार क्या हुए
वो हर सांस साथ लेने के ख्वाब क्या हुए 

वक्त के साथ सब कुछ बदलता है ये माना हमने 
वो एक दूजे के लिए हमारे ख्वाब नाशाद क्या हुए  

तिनके तिनके बिखरते जा रहे हैं अब परिवार 
वो लोगों में हमारे किस्से हमारे करार क्या हुए  

वो इक छत में रहे एक पूरा परिवार क्या हुए
वो रिश्ते-नाते, वो सुख-दुःख के साथ क्या हुए 

जिन्हें लेकर चले थे हम जिंदगी के सफ़र में साथ 
इक इक कर के नाशाद अब हमसे सब जुदा हुए
= नरेश नाशाद   



रविवार, 22 जुलाई 2012


बातें तेरी जब से हम हर दिन याद करने लगे हैं 
भीड़ में सबसे अलग अब हम नज़र आने लगे हैं 

तुम्हारे पुराने ख़त जब से हम फिर पढने लगे हैं 
जिंदगी को  इक नये  मायने में हम पाने लगे हैं

तेरी तस्वीरों को छुप छुपकर जबसे देखने लगे हैं 
हर तरफ लोगों को  अब  मुस्कुराता पाने लगे हैं 

तेरी महफ़िलों के किस्से  जब से  हम सुनाने लगे हैं 
नाशाद लोग हमारी गजलों को भी गुनगुनाने लगे हैं  

= नरेश नाशाद