अपना गाँव
बरसों बाद अपने गाँव पहुँचा तो रात भर
बचपन के सारे गीत मुझे सुनाती रही हवा
गाँव उजड़ चुका था हर दोस्त बिछुड़ चुका था
फ़िर भी इन सभी का अहसास कराती रही हवा
हर दोपहर का साथी वो बरगद सूख चुका था
उसके सूखे ठूंठ से टकराती फिरती रही हवा
सावन रूठ चुका था तालाब सूख चुका था
कागज़ की कश्तियों को ख़ुद ही उडाती रही हवा
वो आँगन सूना था जहाँ दादा दादी का बसेरा था
नाम उनका मेरे संग पुकारती रही हवा
मैं अकेला ही खड़ा था बचपन के उजडे गाँव में
नाम मेरा पुकारती और मुझे ही ढूंढती रही हवा
उजडा गाँव फ़िर से बसाकर क्या नाशाद यहीं रहोगे
अपने सवाल के ज़वाब का इंतज़ार करती रही हवा
11 टिप्पणियां:
उजडा गाँव फ़िर से बसाकर क्या नाशाद यहीं रहोगे
अपने सवाल के ज़वाब का इंतज़ार करती रही हवा
लाजवाब ............ बहुत उम्दा ........ स्वागत है आपका
achha laga
bahut khoob !
उम्दा रचना.बहुत सुन्दर.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
मैं अकेला ही खड़ा था बचपन के उजडे गाँव में
नाम मेरा पुकारती और मुझे ही ढूंढती रही हवा
ये पंक्तियां ज्यादा बेहतर लगीं...
पर आपके जडों की और झांकने के इस जज़्बे में काफ़ी कुछ बेहतर है..
shandar,jandar,damdar,manbhavan.narayan narayan
Bahut sundar rachana..really its awesome...
Regards..
DevSangeet
हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
aap sabhi ka bahut bahut dhanyavaad. aapki pratikriyaen mujhe aur achcha likhne ki prerna degi.
bahut Khoob, Mujhe mere gaon JODHPUR Ki yaad Dila gayi,
Wah.. Wah...
bahut hi aachi kavita h.bachpan jise hum kabhi nahi bhool sakte jiski yaad samay samay par aati h
bahut hi aachi kavita h.bachpan jise hum kabhi nahi bhool sakte jiski yaad samay samay par aati h
एक टिप्पणी भेजें