शनिवार, 1 अगस्त 2009


भूली बिसरी यादें

नज़रों में तो था मगर दिल से दूर था
वो मेरा होकर भी कभी मेरा ना था

बे चराग गलियों में उसकी आवाजें तो थी
दरीचों से झाँका मगर गलियों में कोई न था

उसके जाने के बाद दिल तो बहुत रोया
मगर आंखों में उसके एक आंसू ना था

दूर तलक फैले तो थे उसकी यादों के काले साये
मगर धूप का कहीं नाम ओ निशान तक ना था

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