मंगलवार, 4 अगस्त 2009


तुम्हें भी तो मेरी याद आती होगी


सोचता हूँ कभी कभी तुम्हें भी तो मेरी याद आती होगी

जब भी तुम सड़क के उस मोड़ से गुजरती होगी


जब भी तनहाइयों में तुम ख़ुद को अकेला पाती होगी

जब भी उस बंद दरीचे को तरसती आंखों से देखती होगी


जब भी मेरे लिखे खतों को तुम दोबारा पढ़ती होगी

जब भी मेरी तस्वीर को तुम चुपके से देखती होगी


इस उम्मीद से के कभी मैं फ़िर गुजरुंगा उस मोड़ से

गली के उस मोड़ पर तुम ठिठक कर रुक जाती होगी


जब भी देखती होगी आईना ख़ुद से ही शर्मा जाती होगी

फ़िर उसी आईने में तुम्हें मेरी शक्ल दिखाई देती होगी


सोचता हूँ कभी कभी तुम्हें भी मेरी याद आती होगी

1 टिप्पणी:

V Singh ने कहा…

bahut khoob nareshji. Yeh sach hai ki aksar yaadein isi tarah se aati hai. Mujhe bhi kisi ki yaad aati hai lekin main use bata nahin sakta.