गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

ये कैसी मौहब्बत है 

ये कैसी मौहब्बत है  जहाँ इज़हार करना मना है
ये कैसी तन्हाइयां है जहाँ यादों का आना मना है

ये कैसी नींद है जिसमे यादों का आना मना है
ये कैसे ख्वाब है जिनमे किसी का आना मना है

ये कैसा जहाँ है जिसमे ग़मों पर आंसू बहाना मना है
ये कैसा वक़्त है जहाँ हमें खुशीयाँ तलाशना  मना है

ये कैसी बहारें है जिनमे गुलों का भी खिलना मना है
ये कैसा जहाँ है जिसमे  दो दिलों का मिलना मना है

ये कैसा सावन है  जिनमे  बादलों का बरसना  मना है
ये कैसी महफ़िल है जिसमे "नाशाद" का आना मना है

   

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