गुरुवार, 14 जनवरी 2010


तुमने कहा था 



मेरी आँखों के जंगल में राह भूल जाते थे तुम
तुमने कहा था

अपनी किताबों में  मेरा नाम लिखते थे तुम
तुमने कहा था

मेरा ज़िक्र आते ही फूल से खिल उठते थे तुम
तुमने कहा था
मेरी राहों में अक्सर पलकें बिछाये रहते थे तुम
तुमने कहा था

मुझे ख़त लिखते थे और खुद ही पढ़ते थे तुम
तुमने कहा था
अपनी हर नींदों में ख्वाब मेरे देखते  थे तुम
तुमने कहा था

हर अजनबी आहट को मेरा ही आना समझते थे तुम
तुमने कहा था
हर खिलते हुए फूल में मेरा चेहरा तलाशते थे तुम
तुमने कहा था

मेरी तस्वीर लेकर शाम को छत पे खड़े रहते थे तुम
तुमने कहा था
मुझे मिल कर हमेशा खुद को भूल जाया करते थे तुम
तुमने कहा था

मेरा ख़याल दिल में आते ही "नाशाद" कहीं खो जाते थे तुम
तुमने कहा था "नाशाद"
तुमने ही  कहा था