मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

ये तुम मुझे कहाँ ले आये 

हवाओं में उडती जा रही हूँ मैं
सपनों में खोती जा रही हूँ मैं
एक कदम यहाँ तो
एक कदम वहां जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये

दिल में उठ रही ये कैसी उमंग है
बदन में दौड़ रही ये कैसी तरंग है
मेरे हाथों से आँचल क्यूँ
आज फिसल फिसल जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये

दूर कहीं दूर जाने को जी चाहता है
सब कुछ भुलाने को जी चाहता है
ना जाने क्यूँ मेरा दिल
संभले फिर बहक बहक जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये

हवाओं में ना जाने ये कैसी महक है
नजारों में ना जाने ये कैसी चमक है
यूँ ना मुस्कुराओ तुम
कदम ना कहीं बहक जाए
ये तुम मुझे कहाँ ले आये

इन राहों में ना अकेली छोड़ जाना
दूर बहुत दूर अब हमसे है ज़माना
ना जाने क्यूँ मेरा दिल आज
रह रह कर घबराये
ये तुम मुझे कहाँ ले आये

बचपन कहीं खो ना जाये



















किताबों के भारी बोझ तले
ऊंचे ख्वाबों के  दबाव तले
ये मासूम कहीं दब ना जाये 
इनका बचपन कहीं खो ना जाए 

तुम्हें अव्वल ही आना है 
नहीं किसी से पीछे रहना है 
हर माँ-बाप का यही कहना है 
माँ-बापों की इन इच्छाओं से 
ये मासूम कहीं सहम ना जाए 
इनका बचपन कहीं खो ना जाए 

सबसे ऊंचा हो ओहदा तुम्हारा 
सामान्य जीवन नहीं पालकों को गंवारा 
ढेर सा पैसा मोटर गाडी और एक बंगला न्यारा 
चाहतों की इस ऊंची दौड़ में
ये मासूम कहीं जीना ना भूल जाए 
इनका बचपन कहीं खो ना जाए 

खिलौने कम होते जा रहे 
मैदानी खेल लुप्त होते जा रहे
मैदान घरों में बदलते जा रहे 
किस्से कहानियों से बढ़ती दूरी से 
ये बचपन से कहीं दूर ना हो जाए 
इनका बचपन कहीं खो ना जाये 

आओ हम इनका बचपन बचाएं 
इनके चेहरे की मुस्कान लौटाएं 
इनके चेहरे की मासूमियत लौटाएं 

हम ही इनके दोस्त बन जाए 
संग इनके साबुन के बुलबुले उड़ायें 
आसमानों में ऊंची पतंगे उड़ायें 
संग इनके खेलें हम भी बचपन में लौट जाएँ   
इनको फिर से जीना सीखाएं 
इनको फिर से इनका बचपन लौटाएं
इनको फिर से इनका बचपन लौटाएं 
इनका बचपन कहीं खो ना जाएँ