गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

किस्मत ने हमें उलझनें दी अब उनका हल ढूंढते हैं
चलते रहे सहराओं में  अब  हर जगह जल ढूंढते हैं

काट डाले सभी पेड़ पौधे और घर बसा लिए इंसानों ने
अब भूख मिटाने के लिए बंज़र ज़मीं में फसल ढूंढते हैं

दिया था खुदा ने इक छोटा सा प्यारा सा घर गाँवों में
आकर हैवानों की बस्ती में अब रहने को महल ढूंढते है

थी हवाओं में अपनेपन की खुशबू दिलकश था नजारा
अब पत्थरों के इस शहर में इन्सां की चहल पहल ढूंढते हैं

छोड़ आए सभी अपनों को दूर अपने गाँव में हम कहीं
आकर शहर में नाशाद अब तो हम खुद को ही ढूंढते हैं