शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010















मैं फिर से बनना चाहता हूँ

मुझे टूट कर बिखर जाने दो
मैं फिर से बनना चाहता हूँ

मैं फिर से बचपन में जाना चाहता हूँ
दादा की ऊंगली पकड़कर चलना चाहता हूँ
दादी की गोद में सिर रखकर सोना चाहता हूँ
पापा की डांट खाकर कुछ सीखना चाहता हूँ
माँ के आँचल में छुपकर सब गम भुला देना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ




मैं फिर से बचपन की गलीयों से गुजरना चाहता हूँ
दोस्तों के साथ खेलना झगड़ना चाहता हूँ
सावन की फुहारों में भीगना चाहता हूँ
पेड़ों पे बंधे झूलों में झुलना चाहता हूँ
छोटे भाईयों को अपना रौब दिखाना चाहता हूँ
लाला की दूकान से कुछ चुराकर भागना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ












रेत के टीलों पर चढ़ना चाहता हूँ
स्कूल से नजरें चुराना चाहता हूँ
मास्टरजी की डांट खाकर रोना चाहता हूँ
खेतों में बेमतलब दौड़ना चाहता हूँ
गाँव के मेलों में घूमना चाहता हूँ
जिंदगी के झमेलों से दूर भागना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ

जो भी अधूरे रह गए थे वे काम पूरे करना चाहता हूँ
जो भी रह गई मुझमे कमीयां उन्हें दूर करना चाहता हूँ
दादा-दादी माँ-पिताजी के सपने पूरे करना चाहता हूँ
अधुरा लग रहा है जीवन उसे पूरा करना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ
मैं फिर से बनना चाहता हूँ