रविवार, 4 अप्रैल 2010

हमसाया 

तुम्हारी आँखों में अपना मुकद्दर देखा है मैंने
तेरे चेहरे में जैसे कोई अपना ही देखा है मैंने

मंजिल को अक्सर  बहुर  दूर देखा है मैंने
साथ तेरे चल कर उसे करीब पाया है मैंने

जब भी सामने आये हो तो अक्सर ये सोचा है मैंने
जागती आँखों से  जैसे  कोई ख्वाब सा देखा है मैंने

गम-ए-दौरां में खुद को तनहा पाया हो मैंने
साथ तेरा पाकर  ज़माना साथ पाया है मैंने

अक्सर खुद से जुदा सा अपना साया पाया है मैंने
साथ जब से हुए हो तुम में ही हमसाया पाया है मैंने