शनिवार, 3 जुलाई 2010

















बरखा की ऋतु  

बरखा की ऋतु आई है सजनिया
याद  तेरी संग लाई है सजनिया

जब जब तन पर पड़े पानी की बुंदिया
यूँ लगे जैसे तूने  हो  मुझे छु  लिया

ठंडी हवा जब जब है शोर मचाती
यूँ लगे तू आई है पायल छनकाती

नदिया जब जब है कल कल बहती
तेरी बातें हैं मुझे याद तब तब आती

दूर कहीं जब बोलती है कोयलिया
यूँ लगे जैसे तूने हो मेरा नाम लिया

यूँही ना चली जाए बरखा ओ सजनिया
अब तुम बिन ना रहा जाए ओ सजनिया