सोमवार, 20 दिसंबर 2010

कोई चेहरा

कोई चेहरा जो अब तक निगाहों में हैं
कोई ख्वाब जो अब तक नींदों  में है

कोई मुलाकात जो अब तक यादों में है
कोई जज्बात जो अब तक दिल में है

कोई चाहत जो आज भी यूँहीं ज़िंदा है
कोई दिल जो टूट जाने से शर्मिंदा है

कोई मोड़ जो आज भी वहीँ खडा है
कोई सफ़र जो आज भी वहीँ रुका है

कोई शाम जो आज भी उदास है
कोई जिसकी आज भी तलाश है

कोई जिस के आने की आज भी आस है
कोई चेहरा जो आज भी कहीं आसपास है

कोई चेहरा जो अब तक निगाहों में है
कोई ख्वाब जो अब तक नींदों में है

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

मैं तुम्हारी याद हूँ 

अभी भी तुम्हारी सांसों की महक
मेरे चारों ओर है
अभी भी तुम्हारी हंसी की आवाज़
मेरे जहाँ में समाई है

अभी भी तुम्हारी ना ख़त्म होनेवाली बातें
मेरे कानों में गूंजती है
अभी भी तुम्हारे दिल की धड़कन
मेरे दिल में धड़कती है

अभी भी तुम्हारे होने का अहसास
मेरी आँखों में बसा हुआ है
अभी भी मेरी छाया में
अक्स तुम्हारा छुपा हुआ है

अभी भी तुम्हरे लौट आने की आस
मेरी उम्मीद में जिंदा है

तुम्हारी साँसे लेता हूँ
तुम्हारी बातें बोलता हूँ
तुम्हारी हंसी हँसता हूँ
तुम्हारी याद में जिंदा हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारी याद हूँ
मैं तुम्हारी याद हूँ


रविवार, 12 दिसंबर 2010

छोटे छोटे लम्हात --

"अजब जहां है ये , सब कुछ मिलता है मगर प्यार नहीं मिलता
सारा शहर भरा है ऊंची ऊंची इमारतों से 
मगर इनमे कोई मुस्कुराता चेहरा नहीं मिलता 
लोग तो बहुत दिखते हैं यहाँ वहां मगर
कोई सच्चा दोस्त नहीं मिलता
चलो नाशाद गाँव ही चलकर रहा जाय
अब तो शहर में हमारा मन नहीं लगता " 
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जिंदगी को जिंदगी कहना आसां ना था 
पीकर ज़हर भी कहना पडा आब-ए-हयात 
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सजा लो ग़ज़लों की महफ़िल
दोस्ती की शमा जला लो
प्यार से पढ़ दो कोई भी ग़ज़ल
नाशाद खुद-ब-खुद आ जायेंगे
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"जिंदगी का सफ़र कभी इतना सख्त ना था
तेरे दर का रास्ता कभी इतना लंबा ना था
सूरज की रौशनी भी अन्धेरा लगने लगी है
नाशाद अब तो मंजिल ही ओझल होने लगी है "

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हर दरीचे में तुझे ही तलाशते हैं
हर चेहरे में तुझे ही देखते हैं
लोग कहते हैं दीवाना हमको
नाशाद हम तो जिंदगी को ढूंढते हैं 

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कोई ये बता दे उनके चेहरे पर नकाब का मतलब
क्या हमसे खुद को छुपाये जा रहे हैं  
या फिर हमपे नज़र रखी जा रही है
नाशाद यही उलझन दिन-रात खाए जा रही है

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ज़माने की हवा खराब है
नाशाद खुद को बचा कर रखिये 
लोगों की नज़रें खराब है
रुख पर अपने नकाब रखिये 
राह-ए-मंजिल में अन्धेरा है बहुत 
यादों के चराग जलाए रखिये

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मेरा सबसे पहला लिखा शेर आपको बताना चाहता हूँ-- 
कौन कहता है आजकल कि अकेले हैं हम
मेरे साथ हैं मेरी तनहाईयाँ और मेरे गम 
( लिखने का  समय - अगस्त १९८१ ) 
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किस से उम्मीद करें यहाँ ,  हर कोई उम्मीद में बैठा है
किस का इंतज़ार करें यहाँ ,हर कोई इंतज़ार में बैठा है 
किस को कहें अपना यहाँ , हर कोई जब खुद को ढूंढ रहा है
किस से पूछें अब राह-ए-मंजिल, हर कोई मंजिल भूल चुका है
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वो कोई और है जो मुझमे बसा है
मैं कोई और हूँ जो सामने आया हूँ
वक्त ने मुझे सताया है 
चाहत ने मुझे बहकाया है
कुछ और पाने की चाह में मैं बदल गया हूँ
कुछ अच्छा सा नाम था मेरा
जो अब बदल गया है
अपना नाम तक भूल गया हूँ 
बस नाशाद नाम याद आया है 
वो कोई और है जो मुझमे बसा है
मैं कोई और हूँ जो सामने आया हूँ
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दिल है बहुत ही छोटा-सा मगर ज़माने ने दिए हैं गम बहुत 
कोई ना समझ सका हमें, हमने तो सभी  को समझा बहुत 
दिल में है फिक्र और मौहब्बत और सभी को चाहते है बहुत 
नाशाद क्या कहें किसी से ज़माने ने हमको सताया बहुत

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जुबां खामोश रहती है
निगाहें बात करती है
जब मैं उठकर चलता हूँ
मंजिल मिलने को तरसती है
= नरेश नाशाद


शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010











कुछ छोटे छोटे सफ़हे --



और कुछ नहीं था अपना मेरे दिल के सिवा   
तेरे इश्क में नाशाद वो भी हार गया 
तेरी इक नजर क्या पड़ी मुझ पर
मैं तुझ पर आज सब कुछ हार गया  

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जब वो सामने होते हैं
हर मंज़र बहार होता है
जब वो करीब होते हैं
तो दिल को करार होता है
यूहीं होता है नाशाद जब
किसी को किसी से प्यार होता है 

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घटाओं में जिसका चेहरा छिपा है
हवाओं में जिसकी महक घुली है
बहारों में जिसकी मस्ती छाई है 
वो मौहब्बत किसी में नज़र आई है
जिसे देखा था अक्सर ख़्वाबों में
वो सूरत आज सामने नज़र आई है 

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यूँ सामने आकर ना 
तुम मिला करो हमसे
हमें हया आ जाती है
बस ख़्वाबों में आया करो 
जब हम नींद में सोये रहते हैं

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मैंने उनमे क्या देखा
बस अपना मुकद्दर देखा
मैंने उनकी आँखों में
प्यार का समंदर देखा
उनकी झील सी आँखों में
मैंने देखा और दिल डूब गया 
जंगल सी उनकी आँखों में
नाशाद जैसे राह ही भूल गया 

= नरेश नाशाद 









गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

 मेरी तरह अकेला

मेरी तरह वहाँ कोई अकेला ना था
धूप में मेरा कहीं साया तक नहीं था

सुनसान थी राहें उसके घर की मगर
उसकी यादों का कारवां  मेरे संग था

हर तरफ थी खामोशीयाँ और थी तन्हाईयाँ
याद आती उसकी बातों से सफ़र आसां था

वक्त की धूल ने मिटा दिए थे सभी रास्ते
उसके बदन की खुशबू उसके दर का रास्ता था 

बुझी हुई थी शम्मां महफ़िल में भी कोई ना था
फ़कत एक था नाशाद और एक खाली सफहा था

बुधवार, 8 दिसंबर 2010


धुंधली यादें 

यादें भी धुंधली हो जाती है
जब वक्त की धूल जम जाती है
किसी की याद का झोंका जब आता है
तस्वीरों से धूल उड़ जाती है

याद आते हैं कुछ चेहरे
जो कभी हमारे सामने थे
जो कभी हमारे साथ थे
एक एक लम्हा याद आता है
हर एक लम्हा रुला जाता है

वक्त क्यूँ बीत जाता है
आखिर कोई क्यूँ दूर हो जाता है
आखिर कोई क्यूँ दूर हो जाता है 


गुरुवार, 4 नवंबर 2010

मैं जब चलता हूँ

जुबां खामोश रहती है  और  निगाहें बात करती है
मैं उठकर चल देता हूँ मंजिल मिलने को तरसती है

हवाएं झूम जाती है और घटाएं खुलकर बरसती है
जब मैं मुस्कुराता हूँ सभी कलियाँ खिल जाती है  

धूप भी छाँव बन जाती है और तपिश सुकून दे जाती है 
देख लूँ आसमां की तरफ तो उस की मेहरबानी हो जाती है

जब भी कारवां-ए-नाशाद किसी भी गली से गुज़रता है  
हर दरीचा खुल जाता है गलीयाँ गुलज़ार हो जाती है 

शम्मां खुद रोशन हो जाती है हर महफ़िल जवां हो जाती है 
जब भी नाशाद की उस महफ़िल में ग़ज़लें गूँज  जाती है 


गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

फासले

जिंदगी से फासले भी कितने अजीब होते हैं
जिन्हें हबीब समझते हैं वो ही रकीब होते हैं

चाहे कोई कितना ही सोचे चाहे कितना समझाये
चेहरे वही खिलते हैं जिनके अच्छे नसीब होते हैं

कभी खुद से ही दूर रहकर हम अक्सर खुश रहते हैं
खुद से खुद के फासले भी कितने अजीब होते हैं

कभी जो याद आती है किसी की लम्बी काली रातों में
लगता है जो बिछुड़े हैं हमसे क्या वो ही हबीब होते हैं

सफ़र लगता है लंबा जिंदगी का कुछ भी नज़र नहीं आता
नाशाद कभी कभी ये जिंदगी के रास्ते बदनसीब भी होते हैं

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ कोई अपना भी बेगाना सा लगता है
क्यूँ हर कोई दिल तोड़ने की बात करता है 
क्यूँ हर कोई खुद को अलग समझता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल  में ख़याल आता है
क्यूँ अब रिश्तों गहराईयाँ कम है
क्यूँ अब इंसानों में मौहब्बतें कम है
क्यूँ अब हरसू रंजिशों का मौसम है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
क्यूँ अब हर दिन एक बोझ है
क्यूँ हर रात एक काला साया है
क्यूँ खुद से ही जुदा अब अपना साया है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
अब जब कोई आरज़ू बाकी नहीं
अब जब कोई रौशनी नज़र आती नहीं
तो क्यूँ ये निगाहें कुछ तलाशती हैं
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर तरफ जब रास्ते ही रास्ते हैं
जब कोई मंजिल नज़र नहीं आती
तो बेवजह क्यूँ ये राहें चल रही है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
हर नाता अब झूठा क्यूँ लगता है
हर धागा अब कच्चा क्यूँ लगता है
हर सांस अब बोझ क्यूँ लगती है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
नाशाद ये दिल अब डूबता जाता है
देखते हैं कोई मसीहा कब नजर आता है
हर मंज़र खौफज़दा नज़र आता है
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है

 

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

जब से वो दूर हो गया

जब से वो दूर हो गया
यादों के सिलसिले हो गए
नींद किसी की हो गई
ख्वाब किसी के हो गए

जब कोई नामाबर आया
हौसले फिर बुलंद हो गए
उसके खतों में मेरे नाम से
फिर से चश्मतर हो गए

जब भी कहीं कोई तारा टूटा
दिल डूब कर बहुत रोया
उसकी कही बातों से नाशाद
ग़ज़लों के शेर हो गए

उसकी गलीयाँ उसकी महफ़िल
अब तो बस किस्से हो गए
उसकी आँखों के नूर से
राहों के चिराग रोशन हो गए

पहले पहल जब उसे देखा था
दिल में वो तभी से बस गए
जब उसने मुस्कुराकर देखा तो
हम बस उसी के हो गए

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

तुम बिन सब अधूरा होगा

फिर वो ही चाँद होगा
वो ही सितारों का कारवां होगा
फिर वो ही बहारें होगी
वो ही फूलों का नजारा होगा
सब कुछ होगा मगर फिर भी
तुम बिन सब अधूरा होगा

फिर वो ही गाँव और चौबारा होगा
वो ही पनघट का नजारा होगा
फिर वो ही आपस में बतियाती सहेलीयां होगी
वो खिलखिलाहट और मुस्कानें होगी
सब कुछ होगा मगर फिर भी
एक चेहरा वहाँ नहीं होगा

फिर वो ही पीपल की छाँव होगी
वो ही इंतज़ार होगा
फिर वो ही दोपहर की धूप होगी
वो ही तेरी यादें होगी
सब कुछ होगा मगर फिर भी
जब तू नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा

फिर वो ही डायरी होगी
वो ही तेरा नाम होगा
मगर हाथ ना अब उठेंगे
आँखों से अश्कों का इक नया रिश्ता होगा
डूबते दिल को तेरी यादों का सहारा होगा

फिर वो ही महफिले  होगी
वो ही ग़ज़लों का सफ़र होगा
फिर वो ही शमा होगी
मगर इक आवाज ना होगी , जब
नाशाद उस महफ़िल में ना होगा

जब तू ही नहीं होगा तो
नाशाद अब कहाँ होगा
नाशाद कहीं नहीं होगा .......

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

     बच्चा ही रहे आदमी

एक दूसरे को देखकर आज सहमा हुआ है आदमी
ना जाने कौन दुश्मन हो कोई अपना ही आदमी 

एक कहता है मंदिर बने तो दूजा कहे कि मस्जिद
पर इन्हें ना अपने साथ ले जा पायेगा कोई आदमी 

मजहब नहीं कहता आदमी का दुश्मन हो आदमी 
हर मजहब यही सिखाता है बस जिन्दा रहे आदमी 

सारी धरती एक सी है सारा आसमान भी है एक
फिर उन्हें क्यूँ बांटता जब खुद खुदा नहीं है आदमी 

बच्चे को पता नहीं क्या धर्म; क्या हिंद, क्या पाकिस्तान 
नाशाद कहे खुदा से बस बच्चा ही रहे ता-उम्र आदमी 

बुधवार, 8 सितंबर 2010



फिर जनम लेंगे हम
हर जनम मिलेंगे हम



आज से ठीक एक साल पहले ८ सितम्बर २००९ को पापा हम सभी से बहुत दूर चले गए. हमारे पापा को आज हम से दूर हुए पूरा एक साल बीत गया है. इस एक साल में हमने हर सांस में उन्हें याद किया है. हर बात में उनकी कमी को महसूस किया है. हर घटना में उनकी सलाह को अपनाया है. जब भी अकेले हुए हैं तो आँखें बरसी हैं. दिल जोरों से धड़का है. हर आहट में उनकी आवाज सुनाई दी है. हर सांस उनके नाम की ली है. पापा का जाना एक ऐसी कमी है जो अगले जनम तक खलेगी क्यूंकि अगले जनम में वो फिर से हमारे पापा बनेंगे और हमें फिर से मिल जायेंगे. 
हमारे पापा एक सिद्धान्वादी व्यक्ति थे. जीवन भर अपने सिद्धांतों पर चले. हमें भी बार बार यही सिखाया कि अगर सिद्धांत बनाकर जिया जाये तो ही जीवन सार्थक है. उन्होंने हमें अपने प्यार और दुलार से बड़ा किया और समाज में हमारी भूमिका समझाई और उसे निभाना भी सिखाया. घर में किसकी क्या अहमियत है. किसका क्या कर्त्तव्य है यह भलीभांति समझाया. 
वो हमारी एक एक कमजोरी को दूर करने की हर पल कोशिश करते थे. उन्हें डर रहता था कि कहीं ये कमजोरी हमारी आदत ना बन जाय और हम डर कर कहीं हार ना मान लें.
पापा हमें हर समय सभी को साथ लेकर चलने की सीख देते थे. वे हमेशा कहते थे कि एक अकेला कभी सब कुछ नहीं पा सकता. अपनों का सहारा और सहयोग बहुत जरुरी होता है. पापा का यह मानना था कि आज के युग में जो जितना साथ दे वो साथ ही काफी समझो. समय और जमाना बहुत बदल चुका है. जो हमें जितना चाहे वो ही बहुत बड़ी बात है. जितना हो सके दूसरों की मदद करो लेकिन वापसी में ये कभी मत सोचो कि कोई हमारी मदद भी करेगा. क्यूंकि अब वो पहले वाला जमाना नहीं रहा और ना ही वैसे लोग ही रहे हैं, लेकिन हमारी कोशिश यही होनी चाहिये कि फिर भी लोग थोड़े-बहुत पहले जैसे बन जाए और एक दूसरे की मदद करें.
पापा को अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों पर बहुत फक्र था. वे हर किसी की बहुत तारीफ करते और हमेशा यह कहते कि देखो सभी अपने साथ है वर्ना आजकल कितना सुनने को मिलता है कि आपस में कितने ही रिश्तेदार एक दूसरे से बोलते नहीं है और एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं है. पापा हमेशा यह कहते कि कोई हमारा भला करे या ना करे अगर हम किसी का भला करने में सक्षम हैं तो हमें भला करना चाहिये. जब हम खुद सक्षम हैं तो फिर क्यूँ किसी और की मदद की अपेक्षा की जाए. 
पापा को कबीर वाणी बहुत पसंद थी. अक्सर वे कबीर के भजन और दोहे सुना करते थे.  हरी ओम शरण पापा के पसंदीदा भजन गायक थे. श्री चन्द्र शेखरजी कल्ला के गाये गंग्श्यामजी के भजन और राजस्थानी लोकगीत और विवाह गीत तो लगातार सुनते थे.
राज कपूर पापा को सर्वाधिक पसंद थे. आम आदमी की समस्याओं पर बनी सभी फ़िल्में उन्हें बहुत पसंद आती. 
पापा हमारे सभी करीबी और दूर के सभी रिश्तेदारों की समय समय पर ताजा जानकारी लेते रहते थे. हर रविवार को सुबह पापा के पास फुर्सत नहीं होती थी. ये समय उनका सभी रिश्तेदारों और मित्रों से फोन पर बतियाने का होता था. सभी को रविवार का इंतज़ार भी रहता था कि आज उनके पास एक फोन जरुर आनेवाला है. पापा ने अपने मोबाइल में सभी रिश्तेदारों और मित्रों के जन्मदिन के दिन अलार्म सेट कर रखे थे. रात के बारह बजते ही वो अलार्म बजने लग जाता और पापा तुरंत उस व्यक्ति को जन्मदिन का आशीर्वाद और शुभ-कामना देने के लिए फोन लगा देते. हर कोई अपने जन्मदिन के दिन रात के बारह बजे पापा के फोन का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से करता था / करती थी. 
आनेवाला हर दिन उनके बिना एक अधूरा दिन रहेगा. हर ख़ुशी अधूरी लगेगी. हर मुस्कान में कहीं ना कहीं उदासी अवश्य छुपी रहेगी. 
उन्होंने जो भी ख्वाब हमारे परिवार के लिए देखे थे उन्हें पूरा करना ही हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है. सभी को साथ लेकर चलने का उनका सिद्धांत हम जीवन भर अपनाए हुए रखेंगे. उनके जैसा बनना असंभव है. सौ जन्मों तक शायद हम पापा का सौंवा हिस्सा भी ना बन सकेंगे. लेकिन उनके सिद्धांतों को अपनाकर , उनकी बताई राह पर चलकर हम अपना जीवन बिताएंगे तो वो हमें ऊपर से देखकर बहुत खुश होंगे. 
पापा अगले जनम हम फिर से मिलेंगे. फिर से एक साथ रहेंगे. हर पल उसी तरह बिताएंगे जिस तरह इस जनम में बिताये थे.

फिर जनम लेंगे हम
हर जनम मिलेंगे हम

नरेश , धर्मेश और राजेश बोहरा

बुधवार, 18 अगस्त 2010



अनिल कल्ला ( बेटूसा ) : एक श्रद्धांजलि 

बेटूसा मेरा सबसे प्यारा और करीबी दोस्त १२ अगस्त को हमेशा हमेशा के लिए हम सबसे और मुझसे दूर हो गया. उसके मैं शायद अधुरा हो गया हूँ. उसके साथ बिताया हुआ एक एक पल मुझे आज तक याद है और हमेशा रहेगा. वो हर रोज याद आयेगा और रुलाएगा. उसकी आवाज अब मैं कभी ना सुन सकूंगा लेकिन उसकी बातें हमेशा मुझे याद रहेगी. उसकी वो मुस्कराहट और मिलते ही कहना " वाह वाह , नरेशजी वाह वाह " अब इस तरह से मुझे कौन कहेगा?" जब भी मैं कोई ग़ज़ल लिखता था तो सबसे पहले उसे ही सुनाता था. वो सुनते ही दाद देता और कहता " कोई धुन बना ताकि हम दोनों इसे गुनगुनायेंगे." कुछ समय पहले भी मैंने उसे मेरी लिखी एक ग़ज़ल उसे फोन पर सुनाई तो वो बोल उठा था " वाह वाह नाशाद साहब, वाह वाह , आज कुछ अलग ही रंग है." अब मैं किसे अपनी ग़ज़ल पढ़कर सुनाऊं? मेरा यार मेरा दोस्त और मेरा हमखयाल मुझे बहुत दूर चला गया है.
हम दोनों ने कॉलेज के दिनों में हर रोज हर पल एक साथ बिताया. ना जाने कितनी ही गज़लें हमने एक साथ गाई थी. कोई सुने या ना सुने हम दोनों जब भी मूड होता गुनगुनाने लग जाते. कॉलेज के फेयरवेल के दिन मैंने जो ग़ज़ल सबके सामने पढ़ी थी उसका एक हिस्सा मैं उसके लिए श्रद्धांजलि के रूप में लिख रहा हूँ - 

***** मेरे यार ******

" तुमसे जुदा हो रहा हूँ यारों
तुम्हें मेरा आखिरी सलाम यारों

तुम्हारे साथ गुज़रे ये ज़माने हर दम याद आयेंगे 
शाम ढलेगी तो यादों के साये और भी गहराएंगे 
तुम भी हर शाम मुझे याद करना यारों

तनहा वादियों में तुम्हारी यादें ही गूंजेंगी
दिल की महफ़िल में तुम्हारी कमी खलेगी
तुम भी अपनी महफ़िल में मेरा ज़िक्र करना यारो

हर सुहाना मौसम तुम्हारी याद दिलाएगा
तुम्हें भी तो मेरा गम कभी कभी सताएगा
मगर मेरी याद में कभी ग़मगीन ना होना यारों

हर बहारों का मौसम तुम्हारी याद ले आयेगा
तुमसे मिलने का वो मौसम फिर लौट आयेगा
महफिलों में मिलन-बहार के गीत गाना यारों

दूर रहेंगे तो क्या दोस्ती युहीं बनी रहेगी
तुमसे मिलने की ईच्छा हर वक्त दिल में रहेगी
तुम भी मुलाकात के लिए दुआ करना यारों 

ना जाने अब तुमसे कब मुलाक़ात होगी
हर शाम अब सुहानी कभी ना होगी 
मगर हर शाम तुम युहीं गुजारना यारों

तुमसे जुदा हो रहा हूँ मेरे यारों
तुम्हें मेरा आखिरी सलाम यारों  
 हर सुहाना मौसम तुम्हारी याद दिलाएगा
तुम्हें भी मेरा गम कभी कभी सताएगा
मगर मेरी याद में कभी ग़मगीन ना होना यारों ....

तुमसे जुदा हो रहा हूँ यारों
तुम्हें मेरा आखिरी सलाम यारों 
अनिल  , तू बहुत याद आयेगा ,..........
अब जब तू मुझसे हमेशा के लिए दूर हो गया है तो आज मैं मेरी ये ग़ज़ल तेरे नाम करता हूँ और तुझे सुनाता हूँ. आज के बाद मैं ये ग़ज़ल  कभी नहीं पढूंगा. 

सोमवार, 16 अगस्त 2010

कभी तुम भी थे मेरे अपने 

कभी तुमने भी हमें बहुत चाहा था
कभी हमारा भी रास्ता निहारा था


कभी तुमने भी देखे थे ख्वाब मेरे
कुछ दिन ही सही चले थे साथ मेरे


कभी तुमने भी थामा था हाथ मेरा
कभी तुमने भी संवारा था मुकद्दर मेरा 


कभी तुम भी तड़पते थे मेरी याद में
कभी हम भी शामिल थे तेरी फ़रियाद में 


कभी तुम भी आए थे महफ़िल में मेरे
कभी तुमने भी सराहे थे अशआर मेरे 


कभी तुम भी तो हुए थे मेरे अपने 
अब तो वो रह गए हैं फ़कत सपने 


नाशाद जिनके देखे थे ख्वाब हमने
हकीकत में ना हो सके मेरे अपने 



रविवार, 25 जुलाई 2010

















इश्क इबादत है खुदा की

इश्क इबादत है खुदा की बस इश्क ही इश्क कीजै
ता उम्र नाशाद  बस इश्क ही लीजै  इश्क ही दीजै

हर दिल में है नफ़रत  परेशां है हर शख्स यहाँ
हर शख्स को यहाँ बस पैगाम-ए-इश्क ही दीजै

ना जाने कब कोई हम से बेसाख्ता दूर हो जाए
जब भी मिले कोई तो उसे सलाम-ए-इश्क दीजै

बहुत हुए जुदाई के किस्से; टूटे दिल औ' हिज्र की बातें
सजाइये अपनों की महफ़िल औ' इश्क की बातें कीजै

चार दिनों की जिंदगी है  आरजुओं में कहीं  निकल ना जाए
खोजिये कोई हमखयाल औ' दिल पर उसके इश्क लिख दीजै

सफ़र जिंदगी का नहीं आसां कब तक चलोगे अकेले तुम
करिए किसी से सच्चा इश्क औ' साथ उसे अपने ले लीजै

नफरतें फैलाओगे तो नहीं रखेगा ये जहां तुम्हें याद
फैलाइये हर सू इश्क औ' जहाँ में अपना नाम कर लीजै

पढ़े होंगे कई सुखनवर और भी कई जहाँ में मिल जायेंगे
महफ़िल खूब जम जायेगी यारों बस नाशाद को बुला लीजै

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

मैं जैसे महक गया हूँ


तेरी आँखों में
तेरी मुस्कानों में
मैं जैसे खो गया हूँ


तेरी जुल्फों में
तेरी बातों में
मैं जैसे उलझ गया हूँ


तेरे वादों से
तेरे ईरादों से
मैं जैसे बहक गया हूँ


तेरी गलीयों में
तेरी महफिलों में
मैं जैसे भटक गया हूँ


तेरी तस्वीर से
तेरी याद से
मैं जैसे महक गया हूँ
मैं जैसे महक गया हूँ

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

मौहब्बत  

मौहब्बत आसां नहीं तो मुश्किल भी नहीं होती है
नाशाद लेकिन ये सबके नसीब में भी नहीं होती है

ख्वाब चाहे जितने भी आप महबूब के देख लो मगर
सभी की किस्मत में ख्वाबों की ताबीर नहीं होती है

जुदाई के बाद मिलन की बात ही कुछ और होती है
सब की किस्मत में लेकिन ऐसी जुदाई नहीं होती है

चाहे कोई लाख छुपाये अपनी मौहब्बत की बात को
आँखों की हया होंठों की मुस्कान से ये बयाँ होती है

ना बातों से ना ही खतों से ये कभी महसूस होती है
ये दिल से दिल की बात है दिल ही से महसूस होती है

चाहे कोई लाख बचाए खुद को मौहब्बत के असर से
नाशाद ये मौहब्बत है एक बार तो होकर ही रहती है

सोमवार, 5 जुलाई 2010

                                 तेरी ज़ुल्फें



बन कर घटाएं कभी बरसती  हैं
बन कर हवाएं कभी लहराती हैं
तेरी ज़ुल्फें

बन कर नागिन कभी डसती हैं
बन कर खुशबु कभी महकती है
तेरी ज़ुल्फें

बन कर नशा ये मदहोश कर देती हैं
बन कर साया ये आगोश में लेती हैं
तेरी ज़ुल्फें

बन कर तूफां ये दिल को हिला देती हैं
बन कर अदा ये  ईमां डगमगा देती हैं
तेरी ज़ुल्फें

बिखर कर गालों पर कातिल बन जाती हैं
लहरा कर कांधों पर  घायल कर देती हैं
तेरी ज़ुल्फें

रविवार, 4 जुलाई 2010

                           याद को विदा कर आया 


याद को तुम्हारी मैं आज विदा कर आया
तेरी यादों को मैं गंगा किनारे भुला आया


तेरे लिखे खतों  को मैं आज जला  आया
तेरे वादों को ताज के सामने भुला  आया


तेरी तस्वीर को आज हवाओं में उड़ा आया
तेरी मुस्कान को मैं  फूलों को लौटा आया 


तेरी चाहत को मैं पैमाने में मिला आया 
तेरी आहट को मैं वीरानों में छोड़  आया


अब ना सजेगी कभी तेरी महफ़िल ए सनम
"नाशाद" शम्मां-ए-महफ़िल ही बुझा आया 

शनिवार, 3 जुलाई 2010

















बरखा की ऋतु  

बरखा की ऋतु आई है सजनिया
याद  तेरी संग लाई है सजनिया

जब जब तन पर पड़े पानी की बुंदिया
यूँ लगे जैसे तूने  हो  मुझे छु  लिया

ठंडी हवा जब जब है शोर मचाती
यूँ लगे तू आई है पायल छनकाती

नदिया जब जब है कल कल बहती
तेरी बातें हैं मुझे याद तब तब आती

दूर कहीं जब बोलती है कोयलिया
यूँ लगे जैसे तूने हो मेरा नाम लिया

यूँही ना चली जाए बरखा ओ सजनिया
अब तुम बिन ना रहा जाए ओ सजनिया

गुरुवार, 1 जुलाई 2010



















जब से तुम से इश्क हुआ है 

जब से तुम से इश्क हुआ है
हर गली में मेरा चर्चा हुआ है
जब भी कहीं से गुजरता हूँ मैं
लिए तस्वीर तेरी हाथ में
कहते हैं सभी लो फिर रांझा आया है

खुद से ही करता हूँ बातें
तारे गिन काटता हूँ रातें
अब से मेरा एक एक पल
बस तेरे ही नाम हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है

तुझ को ही खुदा मानता हूँ
तुझ से ही तुझ को माँगता हूँ
तेरे आगे करता हूँ सजदा
तेरे घर के आगे सर झुका हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है

दिल ये कहे तुझे कहीं ले जाऊं
चाँद सितारों की  सैर कराऊं
लेकिन कैसे कहूँ दिल की बातें
ना जाने कब होगी ऐसी मुलाकातें
अब दिल तेरे ही सपनों में खोया हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है

हर दिन सूना सूना लगता था
हर घडी उदास मैं रहता था
जब तुम ना थे तो मैं था अधुरा
तुझसे ही मेरा जीवन पूरा हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है

कसम है तुम्हें ना मुझे ठुकराना
मेरे सिवा किसे भी ना अपनाना
सुन लो जानम तुम मेरी ये बात
सारा जग छोड़ ये जोगी तेरे संग हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है
जब से तुम से इश्क हुआ है

मंगलवार, 29 जून 2010

सुनो सजना

सुनो सजना
तुमरे बिना
मोरा जिया
अब लागे ना

जबसे हमने देखा तुम्हें
चाहा तुम्हें माँगा तुम्हें
आ भी जाओ
अब तुम तड़पाओना
मोरा जिया अब लागे ना


ख़्वाबों में आते हो
बस तुम ही तुम
ख्यालों में छाए हो
बस तुम ही तुम
तुम बिन एक पल भी
चैन आए ना
मोरा जिया अब लागे ना

निभायेंगे तुम्हारा साथ
हम जीवन  भर
होंगे ना तुमसे जुदा
कभी भी पल भर
अब तो सजना मान भी जाओ ना
मोरा जिया अब लागे ना

गुरुवार, 24 जून 2010

















                                कब आओगे साजना


बदरा बरसे
जियरा तरसे
कब आओगे साजना


सूनी अंखियाँ
सूनी रतियाँ
सुना है घर आंगना


पपीहा बोले
मन मोरा डोले
अब तो आजा साजना


पलकें बिछाए
राह निहारूं
सपनों में भी
मैं तुझे पुकारूं
अब तो सुन ले साजना




ये सावन भी
बीत ना जाए
अपना मिलन फिर
कब हो पाए
एक बार तो मिल जा साजना

मंगलवार, 22 जून 2010

तू मेरे सामने हैं

अब और कहीं मैं क्या देखूं
जब तू मेरे सामने हैं
अब राहों के बारे में क्यों सोचूं
जब मंजिल मेरे सामने हैं

अब सितारों के बारे में क्यों सोचूं
जब चाँद खुद मेरे सामने है
अब कड़क धूप से क्यों घबराऊं
जब तेरी जुल्फों के साये मेरे सामने हैं

अब बहारों का इंतज़ार मैं क्यों करूँ
जब तेरा नजारा मेरे सामने है
अब ग़मों की मैं परवाह क्यों करूँ
जब तेरा हाथ मेरे हाथ में है

अब कोई ख्वाब मैं क्यों देखूं
जब हकीकत मेरे सामने हैं
नाशाद किसी महफ़िल में क्यों जाऊं
जब ग़ज़ल खुद मेरे सामने हैं

रविवार, 20 जून 2010

आज फादर्स डे है. आज हम यह फादर्स डे हमारे पापा के बिना पहली बार मना रहे हैं. हमारे पापा; हमारे जन्मदाता भले ही आज हमारे बीच में जिस्मानी तौर से मौजूद नहीं है लेकिन वो हममे; हमारे जिस्म में मौजूद हैं. उनकी रूह हममे समां चुकी है. हर सांस में हमें उनका एहसास होता है. हर धड़कन में उनकी मौजूदगी महसूस होती है. वे हमसे  कभी जुदा नहीं होंगे. जो दिल में बस जाता है / जो रूह में समां जाता है; वो कभी भी जुदा नहीं हो सकता. हमारी आँखें उनके ही ख्वाब देखती हैं. उनके लिए एक बहुत ही छोटा  सा प्रयास भर है ये कविता. जो मैं उनके चरणों में श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत कर रहा हूँ.


मैं आपको नमन करता हूँ

ओ हमारे जन्मदाता
मैं आपको नमन करता हूँ
शीश को अपने झुकाकर
मैं आपका वंदन करता हूँ

भरकर आँखों में आंसू
मैं स्मरण आपको करता हूँ
सदा रहना हम में समाये
मैं आपसे निवेदन करता हूँ

अपनी सारी खुशीयाँ
अपनी सारी इच्छाएं
अपने सारे सपने
अपना शेष जीवन
मैं आपको अर्पण करता हूँ




हर जनम आपसे हम मिलें
हर जनम हमें आपसे मिलें
हर जनम हम यूहीं साथ रहें
हर जनम ये घर यूहीं आबाद रहे
हे परम पिता परमेश्वर
मैं तुमसे आज ये मांगता  हूँ

आपकी बतलाई राह पर चलेंगे
आपकी हर सीख याद रखेंगे
जो भी रह गए आपके ख्वाब अधूरे
उन्हें पूरा करने का
मैं आज प्रण करता हूँ
जो भी राह दिखलाई थी आपने
उसकी ओर मैं आज गमन करता हूँ

ओ हमारे जन्मदाता
मैं आपको नमन करता हूँ
शीश को अपने झुकाकर
मैं आपका वंदन करता हूँ

शनिवार, 12 जून 2010

मैं तोहे पुकारूं  

सांवरे तोरी सुरतिया
ले गयी मोरी निंदिया
ना रहो मोसे दूर
ओ मोरे मन बसिया



बिन तोरे मोहे चैन ना आवे
जागूं सारी रैन मोरा जी घबरावे
दिन कट जावे पर कटे ना रतियाँ
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया

कासे कहूँ अब मैं  मन की पीरा
लगूं  मैं बिरहन जैसे श्याम बिन मीरां
नीर बहे नैनों से जैसे कोई नदिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया

कब से खड़ी राह मैं तोरी निहारूं
पवन संग दे आवाज मैं तोहे पुकारूं
ना आ सको तो भेजो अपनी कोई खबरिया
ना रहो मोसे दूर ओ मोरे मन बसिया

गुरुवार, 10 जून 2010

अब कुछ नहीं

जब बिखर गई सारी दुनिया
अब सिवाय पछतावे के कुछ नहीं

जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं

जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं

जब बिछुड़ गया कोई हमसे
अब सिवाय यादों के कुछ नहीं

जब दूर  हो गई सभी  आहटें
तो सिवाय सन्नाटों के कुछ नहीं

जब ओझल हो गई हैं मंजिलें
अब सिवाय सहरा के कुछ नहीं

जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं

जब सूनी हो गई हैं सभी महफिलें
"नाशाद" सिवाय तनहाईयों के कुछ नहीं

बुधवार, 9 जून 2010

























सामने भी आया कर 

मेरे खयालों ही में ना रह तू
हकीकत में सामने भी आया कर

लबों पे नहीं आती दिल की हर बात
कभी मेरी ख़ामोशी भी समझा कर

मेरे महबूब ज़िन्दगी संवर जायेगी तेरी
युहीं आकर मुझसे हर रोज़ मिला कर

ना रख जिंदगी के सफहों को खाली
हर सफ़हे पर मेरा नाम लिखा कर

तेरी मुस्कान से बहारें है मेरे जीवन में
बस हर वक्त युहीं तू मुस्कुराया कर

रविवार, 6 जून 2010

जुदा कर सकता नहीं

जिस्म को जान से  जुदा कर सकता नहीं
तेरी याद को खुद से जुदा कर सकता नहीं

मंजिल को राहों से  जुदा  कर सकता नहीं
तेरी गलीयों से राह अपनी बदल सकता नहीं

साये को खुद से जुदा कर सकता नहीं
तेरी तस्वीर को आँखों से हटा सकता नहीं

दिल को दर्द से  जुदा कर सकता नहीं
तेरे लिखे खतों को मैं जला सकता नहीं

सावन को घटाओं से जुदा कर सकता नहीं
तेरे नाम को अपने से जुदा कर सकता नहीं

खुद को भुला सकता हूँ मगर तुम्हे भुला सकता नहीं
अपने इश्क का कोई और वास्ता मैं दे सकता नहीं

शुक्रवार, 4 जून 2010























मौहब्बत ये क्या रंग लाई है देखो

मौहब्बत ये क्या रंग लाई है देखो
हर सिम्त तुम ही नज़र आते हो देखो

ख़त तो लिखा था हमने तुम्हे मगर
लिफाफे पर अपना ही पता लिख दिया है देखो

तुम्हारे चेहरे से नज़र नहीं हटती मगर
अब तुम्हारी तस्वीर से शरमा रही हूँ देखो

हर वक्त जुबां पर रहता था नाम तुम्हारा मगर
अब कहते हुए तुम्हारा नाम जुबां काँप रही है देखो

हर रोज़ तेरा नाम ऊंगलीयाँ लिखती थी मगर
अब लिखते हुए नाम तुम्हारा ऊंगलीयाँ काँप रही है देखो

बुधवार, 2 जून 2010























तुम यकीन करोगी !

तुम यकीन करोगी !
क्या तुम यकीन करोगी !!

तुम्हारे लिए,

मैं हर रात एक नया ख्वाब देखता था
हर दरख़्त पर तुम्हारा नाम लिखता था
तुम्हारी किताबों में फूल रखता था
तुम्हारे नाम की पतंग उड़ाता था
तुम्हे पाने की कल्पना करता था
तेरे ही ख्यालों में खोया रहता था
रेत पर अपनी किस्मत लिखता था
तुम्हें ख़त हर रोज़ एक  लिखता और
फिर उन्हें खुद ही पढ़ा करता था
सितारों में तुम्हारी तस्वीर तलाशता था
हर मोड़ पर तुम्हारी राह तकता था
खुद के साये को तेरा साथ समझता था
तेरी तस्वीर से हर दिल की बात कहता था
हर सांस तुम्हारे नाम की लेता था

क्योंकि मैं तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था
तुमसे बेपनाह मौहब्बत करता था

उस वक्त भी नहीं किया
अब क्या करोगी
क्या तुम यकीन करोगी ?
तुम यकीन नहीं करोगी
कभी नहीं करोगी

मंगलवार, 1 जून 2010

































तुझ में बसी है मेरी जान रे

तोहे कैसे भुलाऊँ सजनवा
तुझ में बसी है मेरी जान रे
मोहे ना तू बिसराना कभी
तुझ बिन तज दूंगी प्राण रे

मोहे ना आए एक पल भी चैन
तारे गिन गिन काटू मैं रात रे
होरी खेले सखियाँ पिय के संग
मोरा साजन नहीं मोरे साथ रे

गए हो जब से परदेस सजनवा
आया ना कोई संदेस रे
भेजो अब अपनी कोई खबरिया
तन से उखड रही सांस रे

आ गई फिर रुत बरखा की
बरस रहा आसमान रे
ताना मारे हैं सारी सखियाँ
तन मन में लग रही आग रे

राह तोहरी निहारते सजनवा
पथरा गई है अब आँख रे
लौट आओ नहीं तो चल दूंगी
अब लेकर मैं चार कहार रे