शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

अभी बाकी है 


सूखे हुए  उन फूलों में  अभी भी  खुशबूएं बाकी है 
जिनमे रखे थे फूल वे किताबें खुलना अभी बाकी है


लौट आया सावन  पर घटाओं का  छा जाना  अभी बाकी है 
बरस रही है घटाएं पर तेरी जुल्फों का बिखरना अभी बाकी है


ढल गई है शाम पर तेरी यादों का आना अभी बाकी है 
दिल लगा है डूबने पर अश्कों का आना अभी बाकी है 


आ गई है बहारें मगर कलियों का चटकना अभी बाकी है 
खिलने लगे है फूल मगर  तेरा  मुस्कुराना  अभी बाकी है


मिल तो गई हैं राहें मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी है 
आ गई तेरी गलीयाँ मगर तेरा दरीचा खुलना अभी बाकी है


थक गया है मुसाफिर मगर उम्मीदों का टूटना अभी बाकी है
ढलती जा रही है शाम  मगर सूरज का  डूबना अभी बाकी है  


हो गए हैं ज़ख्म बहुत पुराने मगर उनका भरना अभी बाकी है 
दिल में लगी है  बहुत चोटें  मगर उसका टूटना अभी बाकी है 


तोड़ लिए  हों लोगों  ने   नाते  मगर  तेरा  साथ अभी बाकी है
आजमाए सभी दोस्त मगर रकीबों को आजमाना अभी बाकी है

सज संवर  गईं हैं  महफिलें  मगर  तेरा आना अभी बाकी है 
पढ़ लिए सभी ने शेर मगर "नाशाद" का पढना अभी बाकी है       


तू और ........


तेरी मुस्कान से होती है  सुबहें 
तेरी खुशबु को तरसती है दोपहरें


तेरे नाम से महकती है शामें 
तेरी यादों से  सजती है रातें  


तेरे  क़दमों से चलता है ज़माना 
तेरी अदाओं से बदलते हैं मौसम 


तेरी हया से अदब है ज़माने में 
तेरी आँखों से नशा है पैमाने में 


तेरे आने से सजती है महफ़िलें 
तेरे इशारे से जलती है शम्में 


तेरी आवाज से  शायरी है जिंदा
तेरे होने से ही "नाशाद" है जिंदा