शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

याद आऊँगा मैं 

जितना तुम भुलाना चाहो 
उतना ही याद आऊँगा मैं
सोने ना दूंगा चैन से कभी
तेरे हर ख्वाब में आऊँगा मैं

जब भी बहारें आयेंगी
हर फूल में नज़र आऊँगा मैं
सावन की भीगी फुहारों में
एक मीठी अगन लगाऊंगा मैं

चाहे जितनी राहें बदल लो
हर मोड़ पर नज़र आऊँगा मैं
चाहे अपना लो किसी गैर को
हर चेहरे में नज़र आऊँगा मैं

जब भी देखोगे तस्वीर मेरी
तुम्हारी साँसें मह्काऊँगा मैं
जब रातों में लेटोगे छत पर
चाँद में भी नज़र आऊँगा मैं

मौहब्बत की है मैंने तुमसे
तुम्हें ही अपनाऊँगा मैं
नहीं आसान "नाशाद" को भुलाना
हर सांस में याद आऊँगा मैं