गुरुवार, 10 जून 2010

अब कुछ नहीं

जब बिखर गई सारी दुनिया
अब सिवाय पछतावे के कुछ नहीं

जब टूट गए सारे रिश्ते
अब सिवाय दूरीयों के कुछ नहीं

जब तिनके तिनके हुई उम्मीदें
अब सिवाय ख़्वाबों के कुछ नहीं

जब बिछुड़ गया कोई हमसे
अब सिवाय यादों के कुछ नहीं

जब दूर  हो गई सभी  आहटें
तो सिवाय सन्नाटों के कुछ नहीं

जब ओझल हो गई हैं मंजिलें
अब सिवाय सहरा के कुछ नहीं

जब जीवन से लम्बी हो गई राहें
अब सिवाय मोड़ों के कुछ नहीं

जब सूनी हो गई हैं सभी महफिलें
"नाशाद" सिवाय तनहाईयों के कुछ नहीं