सोमवार, 20 दिसंबर 2010

कोई चेहरा

कोई चेहरा जो अब तक निगाहों में हैं
कोई ख्वाब जो अब तक नींदों  में है

कोई मुलाकात जो अब तक यादों में है
कोई जज्बात जो अब तक दिल में है

कोई चाहत जो आज भी यूँहीं ज़िंदा है
कोई दिल जो टूट जाने से शर्मिंदा है

कोई मोड़ जो आज भी वहीँ खडा है
कोई सफ़र जो आज भी वहीँ रुका है

कोई शाम जो आज भी उदास है
कोई जिसकी आज भी तलाश है

कोई जिस के आने की आज भी आस है
कोई चेहरा जो आज भी कहीं आसपास है

कोई चेहरा जो अब तक निगाहों में है
कोई ख्वाब जो अब तक नींदों में है

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

मैं तुम्हारी याद हूँ 

अभी भी तुम्हारी सांसों की महक
मेरे चारों ओर है
अभी भी तुम्हारी हंसी की आवाज़
मेरे जहाँ में समाई है

अभी भी तुम्हारी ना ख़त्म होनेवाली बातें
मेरे कानों में गूंजती है
अभी भी तुम्हारे दिल की धड़कन
मेरे दिल में धड़कती है

अभी भी तुम्हारे होने का अहसास
मेरी आँखों में बसा हुआ है
अभी भी मेरी छाया में
अक्स तुम्हारा छुपा हुआ है

अभी भी तुम्हरे लौट आने की आस
मेरी उम्मीद में जिंदा है

तुम्हारी साँसे लेता हूँ
तुम्हारी बातें बोलता हूँ
तुम्हारी हंसी हँसता हूँ
तुम्हारी याद में जिंदा हूँ
क्योंकि मैं तुम्हारी याद हूँ
मैं तुम्हारी याद हूँ


रविवार, 12 दिसंबर 2010

छोटे छोटे लम्हात --

"अजब जहां है ये , सब कुछ मिलता है मगर प्यार नहीं मिलता
सारा शहर भरा है ऊंची ऊंची इमारतों से 
मगर इनमे कोई मुस्कुराता चेहरा नहीं मिलता 
लोग तो बहुत दिखते हैं यहाँ वहां मगर
कोई सच्चा दोस्त नहीं मिलता
चलो नाशाद गाँव ही चलकर रहा जाय
अब तो शहर में हमारा मन नहीं लगता " 
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जिंदगी को जिंदगी कहना आसां ना था 
पीकर ज़हर भी कहना पडा आब-ए-हयात 
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सजा लो ग़ज़लों की महफ़िल
दोस्ती की शमा जला लो
प्यार से पढ़ दो कोई भी ग़ज़ल
नाशाद खुद-ब-खुद आ जायेंगे
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"जिंदगी का सफ़र कभी इतना सख्त ना था
तेरे दर का रास्ता कभी इतना लंबा ना था
सूरज की रौशनी भी अन्धेरा लगने लगी है
नाशाद अब तो मंजिल ही ओझल होने लगी है "

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हर दरीचे में तुझे ही तलाशते हैं
हर चेहरे में तुझे ही देखते हैं
लोग कहते हैं दीवाना हमको
नाशाद हम तो जिंदगी को ढूंढते हैं 

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कोई ये बता दे उनके चेहरे पर नकाब का मतलब
क्या हमसे खुद को छुपाये जा रहे हैं  
या फिर हमपे नज़र रखी जा रही है
नाशाद यही उलझन दिन-रात खाए जा रही है

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ज़माने की हवा खराब है
नाशाद खुद को बचा कर रखिये 
लोगों की नज़रें खराब है
रुख पर अपने नकाब रखिये 
राह-ए-मंजिल में अन्धेरा है बहुत 
यादों के चराग जलाए रखिये

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मेरा सबसे पहला लिखा शेर आपको बताना चाहता हूँ-- 
कौन कहता है आजकल कि अकेले हैं हम
मेरे साथ हैं मेरी तनहाईयाँ और मेरे गम 
( लिखने का  समय - अगस्त १९८१ ) 
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किस से उम्मीद करें यहाँ ,  हर कोई उम्मीद में बैठा है
किस का इंतज़ार करें यहाँ ,हर कोई इंतज़ार में बैठा है 
किस को कहें अपना यहाँ , हर कोई जब खुद को ढूंढ रहा है
किस से पूछें अब राह-ए-मंजिल, हर कोई मंजिल भूल चुका है
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वो कोई और है जो मुझमे बसा है
मैं कोई और हूँ जो सामने आया हूँ
वक्त ने मुझे सताया है 
चाहत ने मुझे बहकाया है
कुछ और पाने की चाह में मैं बदल गया हूँ
कुछ अच्छा सा नाम था मेरा
जो अब बदल गया है
अपना नाम तक भूल गया हूँ 
बस नाशाद नाम याद आया है 
वो कोई और है जो मुझमे बसा है
मैं कोई और हूँ जो सामने आया हूँ
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दिल है बहुत ही छोटा-सा मगर ज़माने ने दिए हैं गम बहुत 
कोई ना समझ सका हमें, हमने तो सभी  को समझा बहुत 
दिल में है फिक्र और मौहब्बत और सभी को चाहते है बहुत 
नाशाद क्या कहें किसी से ज़माने ने हमको सताया बहुत

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जुबां खामोश रहती है
निगाहें बात करती है
जब मैं उठकर चलता हूँ
मंजिल मिलने को तरसती है
= नरेश नाशाद


शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010











कुछ छोटे छोटे सफ़हे --



और कुछ नहीं था अपना मेरे दिल के सिवा   
तेरे इश्क में नाशाद वो भी हार गया 
तेरी इक नजर क्या पड़ी मुझ पर
मैं तुझ पर आज सब कुछ हार गया  

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जब वो सामने होते हैं
हर मंज़र बहार होता है
जब वो करीब होते हैं
तो दिल को करार होता है
यूहीं होता है नाशाद जब
किसी को किसी से प्यार होता है 

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घटाओं में जिसका चेहरा छिपा है
हवाओं में जिसकी महक घुली है
बहारों में जिसकी मस्ती छाई है 
वो मौहब्बत किसी में नज़र आई है
जिसे देखा था अक्सर ख़्वाबों में
वो सूरत आज सामने नज़र आई है 

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यूँ सामने आकर ना 
तुम मिला करो हमसे
हमें हया आ जाती है
बस ख़्वाबों में आया करो 
जब हम नींद में सोये रहते हैं

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मैंने उनमे क्या देखा
बस अपना मुकद्दर देखा
मैंने उनकी आँखों में
प्यार का समंदर देखा
उनकी झील सी आँखों में
मैंने देखा और दिल डूब गया 
जंगल सी उनकी आँखों में
नाशाद जैसे राह ही भूल गया 

= नरेश नाशाद 









गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

 मेरी तरह अकेला

मेरी तरह वहाँ कोई अकेला ना था
धूप में मेरा कहीं साया तक नहीं था

सुनसान थी राहें उसके घर की मगर
उसकी यादों का कारवां  मेरे संग था

हर तरफ थी खामोशीयाँ और थी तन्हाईयाँ
याद आती उसकी बातों से सफ़र आसां था

वक्त की धूल ने मिटा दिए थे सभी रास्ते
उसके बदन की खुशबू उसके दर का रास्ता था 

बुझी हुई थी शम्मां महफ़िल में भी कोई ना था
फ़कत एक था नाशाद और एक खाली सफहा था

बुधवार, 8 दिसंबर 2010


धुंधली यादें 

यादें भी धुंधली हो जाती है
जब वक्त की धूल जम जाती है
किसी की याद का झोंका जब आता है
तस्वीरों से धूल उड़ जाती है

याद आते हैं कुछ चेहरे
जो कभी हमारे सामने थे
जो कभी हमारे साथ थे
एक एक लम्हा याद आता है
हर एक लम्हा रुला जाता है

वक्त क्यूँ बीत जाता है
आखिर कोई क्यूँ दूर हो जाता है
आखिर कोई क्यूँ दूर हो जाता है