गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

क्या खबर थी कि इक दिन ऐसा मंज़र भी आएगा
वो होगा मेरे सामने मगर  मुझसे नज़र चुराएगा

जिसके साथ चले थे दूर तलक जानिब-ए-मंजिल हम 
इक दिन वो किसी और राह हम ही से दूर हो जाएगा

जिसे देखा करते थे हम हर रात अपने ख़्वाबों में
नाशाद वो कोई और के ख़्वाबों  की ताबीर हो जाएगा 

जिंदगी की किताब के हर सफ्हे पर था जिसका नाम
नाम उसका एक दिन कहीं लिखा हुआ देखा जाएगा

लोग कहते थे जिसे नाशाद इक इंसान बहुत ही अच्छा है
क्या खबर थी वो इक दिन शान-ए-मयकदा हो जाएगा