रविवार, 4 जुलाई 2010

                           याद को विदा कर आया 


याद को तुम्हारी मैं आज विदा कर आया
तेरी यादों को मैं गंगा किनारे भुला आया


तेरे लिखे खतों  को मैं आज जला  आया
तेरे वादों को ताज के सामने भुला  आया


तेरी तस्वीर को आज हवाओं में उड़ा आया
तेरी मुस्कान को मैं  फूलों को लौटा आया 


तेरी चाहत को मैं पैमाने में मिला आया 
तेरी आहट को मैं वीरानों में छोड़  आया


अब ना सजेगी कभी तेरी महफ़िल ए सनम
"नाशाद" शम्मां-ए-महफ़िल ही बुझा आया