जिन्दगी में बहुत गम है और वक्त बहुत कम है. आइये महफ़िल सजाएं ग़ज़लों की . कविताओं की और कुछ देर के लिए ही सही हम थोडा वक्त निकालकर अपने को तरोताजा कर लें.
गुरुवार, 24 जून 2010
कब आओगे साजना
बदरा बरसे
जियरा तरसे
कब आओगे साजना
सूनी अंखियाँ
सूनी रतियाँ
सुना है घर आंगना
पपीहा बोले
मन मोरा डोले
अब तो आजा साजना
पलकें बिछाए
राह निहारूं
सपनों में भी
मैं तुझे पुकारूं
अब तो सुन ले साजना
ये सावन भी
बीत ना जाए
अपना मिलन फिर
कब हो पाए
एक बार तो मिल जा साजना
जन्म भूमि - जोधपुर ; कर्म भूमि - मुंबई ; व्यवसाय - रेडिमेड वस्त्र ;
मैं लोगों को अच्छे साहित्य और पुस्तकों के संसार से फिर से जोड़ने का प्रयास मेरे ब्लॉग के माध्यम से कर रहा हूँ. सभी लोग मिलकर रहें और प्रेम से रहें. मनुष्य का जीवन जो केवल एक बार मिलाता है ; उस जीवन की हर सांस को हम चैन और ख़ुशी से जीयें.