बुधवार, 24 मार्च 2010

ये ना जाने कोई 

कितना लम्बा ये सफ़र है
ये ना जाने कोई
कहाँ तक अब ये डगर है
ये ना जाने कोई

कौन देखेगा कल की सहर
ये ना जाने कोई
किसकी है ये आखिरी शब
ये ना जाने कोई

कब तक हवाएं साथ है
ये ना जाने कोई
कब तक सूरज में आग है
ये ना जाने कोई

कब तक चाँद में शीतलता है
ये ना जाने कोई
कब तक सितारों का कारवाँ है
ये ना जाने  कोई

कब तक कदमों की चाल है
ये ना जाने कोई
कब तक सभी को ये आस है
ये ना जाने कोई

कब तक हम यहाँ है
ये ना जाने कोई
कब तक ये जहां है
ये ना जाने कोई

कब तक  दुआओं में असर है
ये ना जाने कोई
कब तक उसकी हम पर नज़र है
ये ना जाने कोई



 
तू क्यों मौन है 

मैंने सुना था तू
हम सब को बनाता है
हम सब को तारता है 
हम सब को पालता है
हम सब को खुश रखता है
हम सब का अन्नदाता है
हम सब का घर बसाता है
हम सब के दुःख दूर करता है
हम सब के बिगड़े काम बनाता है
हम सब की राहें आसान करता है
हम सब को भवसागर पार कराता है

पर अक्सर मैंने
लोगों को भूख से तड़पते  देखा है
लोगों को खून के आंसू बहाते देखा है
लोगों के घर उजड़ते देखा है
लोगों को खाली पेट सोते देखा है
लोगों को रोते बिलखते देखा है
लोगों को ग़मों के समंदर में डूबते देखा है
लोगों को टूटते बिखरते देखा है
लोगों को राहों में भटकते बिछुड़ते देखा है
लोगों को बिना कारण मरते देखा है
लोगों को अपनों के लिए तरसते देखा है
लोगों को छोटी सी ख़ुशी के लिए तरसते देखा है

ये मैंने तेरा कैसा संसार देखा है
क्या सभी की किस्मत में तूने यही सब लिखा है
क्या सचमुच ये संसार तेरी ही देन है
क्या सभी जिंदगी जैसे लम्बी काली रैन है

मेरे इन सवालों पर तू क्यों मौन है
बता तू क्यों मौन है