सोमवार, 19 दिसंबर 2011


             बर्फ सी मौहब्बत 

शायद किसी बर्फ की सी थी तुम्हारी मौहब्बत
जो कुछ ही दिनों में पिघलकर कहीं दूर बह गई 

कुछ यादें ही थी तुम्हारी मेरी किस्मत में शायद
वो भी वक्त की आंधी में रेत सी कहीं दूर उड़ गई

तन्हाईयों में ही साथ था तुम्हारा; मेरे ख्यालों में 
सन्नाटों के आते ही तन्हाई भी कहीं गुम हो गई 

डायरी के पन्नों में थी सिमटी तेरी कुछ मुलाकातें
उन पन्नों के पलटते ही वो भी कहीं पीछे छूट गई 

नाशाद इक खुशबू की तरह थी तुम्हारी याद शायद
हवा के चलते ही उड़कर वो भी कहीं और चली गई 



शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

             लम्हे 

वो लम्हे जब वक्त भी ठहर गया था 
नाशाद अलविदा जब तुमने कहा था
इस जुदाई से चाँद भी हिल गया था 
बादलों के बीच वो भी छुप गया था 
खामोशी ही कर रही थी बातें मुझ से 
तुमने तो कह अलविदा सब कह दिया था


उस मोड़ पर तुम राह बदल चले गए थे 

सफ़र में मुझे तनहा छोड़ गए थे 
मैं ये सोच रहा था ये राह कहाँ तक है
मंजिल का सफ़र अब क़यामत तक है
वो लम्हे बर्फ की तरह जम गए थे 
आँखों के आंसू भी जैसे वहीँ थम गए थे 
    

मुझे अब भी याद है वो लम्हे वो मोड़ 
जहाँ हम आखिरी बार मिले थे 
सोचता हूँ जुदाई ही ज़रिया था मिलने का 
हम चलते रहे थे दरिया के दो किनारों जैसे 
साथ साथ मगर इक दूजे से जुदा जुदा 
मिलकर समंदर में ही शायद हम मिल सकें 
नाशाद तब ही हम साथ साथ चल सकें  


बुधवार, 16 नवंबर 2011


आवारा दोपहरें 

याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 
तेरी तलाश में वो आवारा दोपहरें 

हर मोड़ पर तेरी राह तकना 
हर आहट में तेरे आने का धोखा होना 
पर अगले ही पल दिल का बैठ जाना 
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 

वो बेमतलब तेरी गलीयों से गुज़रना
वो तेरे इक नज़ारे के लिए घंटों ठहरना 
तेरी मुस्कान पर सारी थकान भुला देना 
याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 

मुझे याद है अभी भी वो आवारा दोपहरें 
कभी ना भूलेगी वो आवारा दोपहरें 
= नरेश नाशाद 



शनिवार, 10 सितंबर 2011


उठ कर चल दे जानिब-ए-मंजिल तू 

उठ कर चल दे जानिब-ए-मंजिल तू 
किसी ईशारे का इंतज़ार ना कर तू 
खुद ही तराश पहाड़ों में उसकी सूरत
किसी करिश्मे का इंतजार ना कर तू 

हर तरफ पथरीली राहें  ही मिलेगी
खुशनुमा राह का इंतजार ना कर तू 
बढा अपने हाथों को आस्मां की तरफ 
उसके आने का इंतजार ना कर तू  

लिख ले अपने हाथों में खुद अपनी किस्मत 
लकीरों को पढने का इंतज़ार ना कर तू
लिख कोई नई ग़ज़ल और पढ़ ले नाशाद 
शम्मां के जलने का इंतज़ार ना कर तू 

खुद ही रोशन हो सज जायेगी महफ़िल  
जब गूंजेगी तेरी आवाज़ हर तरफ 
ढूंढ कोई लाजवाब शेर औ ग़ज़ल नाशाद
किसी और के पढने का इंतज़ार ना कर तू  



गुरुवार, 8 सितंबर 2011

जिंदगी जैसे थम गई है 

आज अचानक लगता है मुझे जैसे 
किसी मोड़ पर आकर यादें ठहर गई 
इसी मोड़ पर मैंने कुछ खोया था 
दिल अन्दर ही अन्दर बहुत रोया था 
कोई जो चलता रहा सदीयों तक साथ हमारे 
इसी मोड़ से हमसे  दूर हो गया था 

जिसकी करीबी का अहसास मुझे हर पल था 
जिसका साया हर कड़ी धूप में मेरे सर था 
मेरी सांसें उसी के दम पर चलती थी 
मेरी जिंदगी उसी के इर्द-गिर्द रहती थी 
वो अहसास वो साथ बहुत दूर हो गया है 

दिल उसकी याद में बहुत रोया 
मगर आँखों से कोई कतरा बाहर नहीं आया 
आंसू जैसे जम चुके थे 
साँसें जैसे कहीं थम चुकी थी 
आज ऐसा लगता है नाशाद 
जिंदगी थम सी गई है 
राह तो है मगर मंजिल कहीं गुम गई है 
जिस्म है  मौजूद इस जहां में 
मगर रूह मेरी कहीं दूर हो गई है 
ऐ मेरे खुदा  मेरे जन्मदाता 
आपके बिना दिन छोटे और रातें लम्बी हो गई है 
मैं जिंदा हूँ मगर जिंदगी कहीं खो गई है 
नाशाद मेरी जिंदगी कहीं खो गई है 

( हमारे पापा की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि ) 



रविवार, 8 मई 2011

यह कविता मेरी मम्मी के चरणों में अर्पित कर रहा हूँ. मेरी मम्मी जिनकी ऑंखें हम तीनों भाईयों के लिए सपने देखती हैं. जिनका दिल हमारे पूरे परिवार के लिए धडकता है. जिनकी मुस्कान हमें हर वक्त हिम्मत दिलाती है और यह कहती है कि जीवन में कभी हार मत स्वीकारना. जीतना ही जीवन है.

माँ

इस धरती पर भगवान का रूप है माँ
जीवन के इस सफ़र में ठंडी छाँव है माँ

माँ, दुखों की कड़ी धुप में
शीतलता का एहसास है
माँ, अगर हमारे पास है तो
सारे जहाँ की खुशीयाँ पास है

माँ के आँचल में जैसे
हर फूल की खुशबू है
माँ की गोद में जैसे
हर उलझन का हल है

माँ की मुस्कान में जैसे
खुदा खुद मुस्कुराता है
माँ के दुलार से जैसे
हर चमन में बहार है

माँ की ममता से जैसे
सारी दुनिया पलती है
माँ की आँखों में जैसे
तीनों लोकों का ज्ञान है

इन आँखों में कभी आंसू ना आए
इन होठों से कभी मुस्कान ना जाए
इस आँचल पर कोई आंच ना आए
चाहे हमसे हर ख़ुशी छिन जाए

माँ से दूर कभी कोई लाल ना जाए
चाहे सारी दुनिया से साथ छूट जाए
= नरेश नाशाद


सोमवार, 18 अप्रैल 2011

मेरा गाँव कहीं खो गया है 


कभी कभी मुझे लगता है जैसे 
सुख तो मिला पर चैन खो गया है 

दोस्त तो मिलें है हमें बहुत मगर 
अपनापन जैसे कहीं खो गया है 

हर ऐश-ओ-आराम मिल गए हमें 
मगर मन जैसे कहीं भटक गया है 

दौलत शोहरत बहुत मिली सभी को 
इंसान का मोल लेकिन घट गया है
शहरों की चकाचोंध में ऐ नाशाद 
मेरा गाँव कही जैसे खो सा गया है 
मेरा गाँव कहीं जैसे खो सा गया है 


शनिवार, 9 अप्रैल 2011

ये ना जाने कोई 

कितना लम्बा ये सफ़र है
ये ना जाने कोई
कहाँ तक अब ये डगर है
ये ना जाने कोई

कौन देखेगा कल की सहर
ये ना जाने कोई
किसकी है ये आखिरी शब
ये ना जाने कोई

कब तक हवाएं साथ है
ये ना जाने कोई
कब तक सूरज में आग है
ये ना जाने कोई

कब तक चाँद में शीतलता है
ये ना जाने कोई
कब तक सितारों का कारवाँ है
ये ना जाने  कोई

कब तक कदमों की चाल है
ये ना जाने कोई
कब तक सभी को ये आस है
ये ना जाने कोई

कब तक हम यहाँ है
ये ना जाने कोई
कब तक ये जहां है
ये ना जाने कोई

कब तक  दुआओं में असर है
ये ना जाने कोई
कब तक उसकी हम पर नज़र है
ये ना जाने कोई

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

दरख़्त पर तेरा नाम 

उस दरख़्त पर मैंने तेरा नाम लिखा था 
जो अब शायद सुख चुका है 
नहीं आते उस पर अब हरे पत्ते 
नहीं बैठते उस पर अब परिंदे
नहीं आता कोई अब उसकी छाँव के लिए
तुम भी नहीं देखते उस सूखे दरख़्त को 
एक  नाकामयाब मौहब्बत के निशानी को 
नाशाद मैं आज भी वहीँ खडा हूँ 
वो सूखा दरख़्त भी वहीँ खडा है 
लेकिन उस पर तुम्हारा नाम आज भी खुदा है
मैं हर रोज पढता हूँ तुम्हारे नाम को
मैं हर रोज देखता हूँ उस दरख़्त को 
जो शायद एकमात्र निशानी है हमारी मौहब्बत की 
वो दरख़्त जिस पर मैंने तुम्हारा नाम लिखा था 
तेरे नाम के साथ अपना मुकद्दर भी लिख दिया था  


गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

क्या खबर थी कि इक दिन ऐसा मंज़र भी आएगा
वो होगा मेरे सामने मगर  मुझसे नज़र चुराएगा

जिसके साथ चले थे दूर तलक जानिब-ए-मंजिल हम 
इक दिन वो किसी और राह हम ही से दूर हो जाएगा

जिसे देखा करते थे हम हर रात अपने ख़्वाबों में
नाशाद वो कोई और के ख़्वाबों  की ताबीर हो जाएगा 

जिंदगी की किताब के हर सफ्हे पर था जिसका नाम
नाम उसका एक दिन कहीं लिखा हुआ देखा जाएगा

लोग कहते थे जिसे नाशाद इक इंसान बहुत ही अच्छा है
क्या खबर थी वो इक दिन शान-ए-मयकदा हो जाएगा