बुधवार, 8 सितंबर 2010



फिर जनम लेंगे हम
हर जनम मिलेंगे हम



आज से ठीक एक साल पहले ८ सितम्बर २००९ को पापा हम सभी से बहुत दूर चले गए. हमारे पापा को आज हम से दूर हुए पूरा एक साल बीत गया है. इस एक साल में हमने हर सांस में उन्हें याद किया है. हर बात में उनकी कमी को महसूस किया है. हर घटना में उनकी सलाह को अपनाया है. जब भी अकेले हुए हैं तो आँखें बरसी हैं. दिल जोरों से धड़का है. हर आहट में उनकी आवाज सुनाई दी है. हर सांस उनके नाम की ली है. पापा का जाना एक ऐसी कमी है जो अगले जनम तक खलेगी क्यूंकि अगले जनम में वो फिर से हमारे पापा बनेंगे और हमें फिर से मिल जायेंगे. 
हमारे पापा एक सिद्धान्वादी व्यक्ति थे. जीवन भर अपने सिद्धांतों पर चले. हमें भी बार बार यही सिखाया कि अगर सिद्धांत बनाकर जिया जाये तो ही जीवन सार्थक है. उन्होंने हमें अपने प्यार और दुलार से बड़ा किया और समाज में हमारी भूमिका समझाई और उसे निभाना भी सिखाया. घर में किसकी क्या अहमियत है. किसका क्या कर्त्तव्य है यह भलीभांति समझाया. 
वो हमारी एक एक कमजोरी को दूर करने की हर पल कोशिश करते थे. उन्हें डर रहता था कि कहीं ये कमजोरी हमारी आदत ना बन जाय और हम डर कर कहीं हार ना मान लें.
पापा हमें हर समय सभी को साथ लेकर चलने की सीख देते थे. वे हमेशा कहते थे कि एक अकेला कभी सब कुछ नहीं पा सकता. अपनों का सहारा और सहयोग बहुत जरुरी होता है. पापा का यह मानना था कि आज के युग में जो जितना साथ दे वो साथ ही काफी समझो. समय और जमाना बहुत बदल चुका है. जो हमें जितना चाहे वो ही बहुत बड़ी बात है. जितना हो सके दूसरों की मदद करो लेकिन वापसी में ये कभी मत सोचो कि कोई हमारी मदद भी करेगा. क्यूंकि अब वो पहले वाला जमाना नहीं रहा और ना ही वैसे लोग ही रहे हैं, लेकिन हमारी कोशिश यही होनी चाहिये कि फिर भी लोग थोड़े-बहुत पहले जैसे बन जाए और एक दूसरे की मदद करें.
पापा को अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों पर बहुत फक्र था. वे हर किसी की बहुत तारीफ करते और हमेशा यह कहते कि देखो सभी अपने साथ है वर्ना आजकल कितना सुनने को मिलता है कि आपस में कितने ही रिश्तेदार एक दूसरे से बोलते नहीं है और एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं है. पापा हमेशा यह कहते कि कोई हमारा भला करे या ना करे अगर हम किसी का भला करने में सक्षम हैं तो हमें भला करना चाहिये. जब हम खुद सक्षम हैं तो फिर क्यूँ किसी और की मदद की अपेक्षा की जाए. 
पापा को कबीर वाणी बहुत पसंद थी. अक्सर वे कबीर के भजन और दोहे सुना करते थे.  हरी ओम शरण पापा के पसंदीदा भजन गायक थे. श्री चन्द्र शेखरजी कल्ला के गाये गंग्श्यामजी के भजन और राजस्थानी लोकगीत और विवाह गीत तो लगातार सुनते थे.
राज कपूर पापा को सर्वाधिक पसंद थे. आम आदमी की समस्याओं पर बनी सभी फ़िल्में उन्हें बहुत पसंद आती. 
पापा हमारे सभी करीबी और दूर के सभी रिश्तेदारों की समय समय पर ताजा जानकारी लेते रहते थे. हर रविवार को सुबह पापा के पास फुर्सत नहीं होती थी. ये समय उनका सभी रिश्तेदारों और मित्रों से फोन पर बतियाने का होता था. सभी को रविवार का इंतज़ार भी रहता था कि आज उनके पास एक फोन जरुर आनेवाला है. पापा ने अपने मोबाइल में सभी रिश्तेदारों और मित्रों के जन्मदिन के दिन अलार्म सेट कर रखे थे. रात के बारह बजते ही वो अलार्म बजने लग जाता और पापा तुरंत उस व्यक्ति को जन्मदिन का आशीर्वाद और शुभ-कामना देने के लिए फोन लगा देते. हर कोई अपने जन्मदिन के दिन रात के बारह बजे पापा के फोन का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से करता था / करती थी. 
आनेवाला हर दिन उनके बिना एक अधूरा दिन रहेगा. हर ख़ुशी अधूरी लगेगी. हर मुस्कान में कहीं ना कहीं उदासी अवश्य छुपी रहेगी. 
उन्होंने जो भी ख्वाब हमारे परिवार के लिए देखे थे उन्हें पूरा करना ही हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है. सभी को साथ लेकर चलने का उनका सिद्धांत हम जीवन भर अपनाए हुए रखेंगे. उनके जैसा बनना असंभव है. सौ जन्मों तक शायद हम पापा का सौंवा हिस्सा भी ना बन सकेंगे. लेकिन उनके सिद्धांतों को अपनाकर , उनकी बताई राह पर चलकर हम अपना जीवन बिताएंगे तो वो हमें ऊपर से देखकर बहुत खुश होंगे. 
पापा अगले जनम हम फिर से मिलेंगे. फिर से एक साथ रहेंगे. हर पल उसी तरह बिताएंगे जिस तरह इस जनम में बिताये थे.

फिर जनम लेंगे हम
हर जनम मिलेंगे हम

नरेश , धर्मेश और राजेश बोहरा