मंगलवार, 4 अगस्त 2009


अब और तुम्हें क्या चाहिए


रंग गया मैं तेरे रंग में अब और तुम्हें क्या चाहिए

बसा लिया तुम्हें पलकों में अब और तुम्हें क्या चाहिए


राँझा होकर भी हीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

तेरी याद में फ़कीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए


तेरा प्यार मेरी तकदीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

मेरा चेहरा तेरी तस्वीर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए


मेरा दिल तुम्हारा घर हो गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

तुम्हें पाकर मैं सब हार गया अब और तुम्हें क्या चाहिए

तुम्हें भी तो मेरी याद आती होगी


सोचता हूँ कभी कभी तुम्हें भी तो मेरी याद आती होगी

जब भी तुम सड़क के उस मोड़ से गुजरती होगी


जब भी तनहाइयों में तुम ख़ुद को अकेला पाती होगी

जब भी उस बंद दरीचे को तरसती आंखों से देखती होगी


जब भी मेरे लिखे खतों को तुम दोबारा पढ़ती होगी

जब भी मेरी तस्वीर को तुम चुपके से देखती होगी


इस उम्मीद से के कभी मैं फ़िर गुजरुंगा उस मोड़ से

गली के उस मोड़ पर तुम ठिठक कर रुक जाती होगी


जब भी देखती होगी आईना ख़ुद से ही शर्मा जाती होगी

फ़िर उसी आईने में तुम्हें मेरी शक्ल दिखाई देती होगी


सोचता हूँ कभी कभी तुम्हें भी मेरी याद आती होगी

शनिवार, 1 अगस्त 2009


भूली बिसरी यादें

नज़रों में तो था मगर दिल से दूर था
वो मेरा होकर भी कभी मेरा ना था

बे चराग गलियों में उसकी आवाजें तो थी
दरीचों से झाँका मगर गलियों में कोई न था

उसके जाने के बाद दिल तो बहुत रोया
मगर आंखों में उसके एक आंसू ना था

दूर तलक फैले तो थे उसकी यादों के काले साये
मगर धूप का कहीं नाम ओ निशान तक ना था